रायपुर। कांग्रेस (Congress) ने अमित जोगी (Amit Jogi) के ट्वीट का जवाब भाजपा को कटाक्ष करते हुए दिया है। पार्टी ने कहा है कि ए टीम को गोडसे और सावरकर पर घिरते देख अब बी टीम कवर फायर मोड़ पर अनर्गल सवाल खड़े करने लगी है। प्रदेश कांग्रेस के महामंत्री एवं संचार विभाग के अध्यक्ष शैलेश नितिन त्रिवेदी ने कहा है कि स्वतंत्रता संग्राम से जुड़े हुए संदर्भों के संबंध में कांग्रेस का आरंभ से ही स्पष्ट मत रहा है कि आजादी की लड़ाई के दौरान किसी का भी ‘‘तिनका’’ भर भी योगदान रहा है, तो उसे रेखांकित किया जाए।

1911 के पहले भारत की आजादी की लड़ाई में था योगदान

स्वतंत्रता संग्राम के निर्णायक दौर में सावरकर के द्वारा रचे गए तमाम षड्यंत्रों के बावजूद 1970 में सावरकर पर डाक टिकट (Stamp on Savarkar) जारी करने के संदर्भ में भी यही बात लागू होती है। गांधी जी की हत्या के लिए गठित न्यायिक कमेटी जस्टिस जीवनलाल कपूर आयोग ने भी स्पष्ट कहा है कि ‘‘सभी तथ्यों और साक्ष्यों को सामने रखने पर निश्चित रूप से साबित हो जाता है कि गांधी जी की हत्या की साजिश सावरकर और उनके ग्रुप ने की।’’ बावजूद इसके कांग्रेस यह मानती है कि सावरकर का जो भी योगदान जेल जाने से पहले 1911 के पहले भारत की आजादी की लड़ाई में था उसी को रेखांकित करते हुए उक्त डाक टिकट जारी किया गया था!

उक्त टिकट को ध्यान से देखें तो उसमें सेल्यूलर जेल (Cellular Jail) को रेखांकित किया गया है, जो स्पष्ट लाईन है सावरकर की भूमिका के संदर्भ में। उसमें जो सावरकर की फोटो लगी है निश्चित रूप से वह 1921 से पूर्व की है। सावरकर की बात करें तो उसके जीवन को स्वतंत्रता आंदोलन के संदर्भ में निश्चित रूप से दो भागों में बांटा जा सकता है। सेल्यूलर जेल जाने से पहले और सेल्यूलर जेल से बाहर आने के बाद।

बाद में उन्होंने अंग्रेजों को खुश रखना शुरू कर दिया

सावरकर नासिक के जिला मजिस्ट्रेट एमटी जैक्सन की हत्या की साजिश रचने और इंग्लैंड से पिस्तौल भेजने के आरोप में 4 जुलाई 1911 को अंडमान की सेल्युलर जेल Cellular Jail Andman) लाया गया। इस बात के भी तथ्य हैं कि 1911 के पूर्व सावरकर एक विद्रोही षड्यंत्रकारी क्रांतिकारी के रूप में अंग्रेजो के खिलाफ काम करते रहे। लेकिन जेल जाने के 2 महीने से भी कम समय में 30 अगस्त 1911 को उन्होंने अंग्रेजों से क्षमा के लिए याचना की। इससे स्पष्ट होता है कि एकांत कारावास के कुछ ही दिनों ने उनको तोड़ दिया।

उन्होंने अंग्रेज अफसरों को खुश रखना शुरू कर दिया ताकि उनसे क्षमा प्राप्ति की कोशिश की जा सके। उसके बाद पश्चात लगातार स्वयं और अपनी पत्नी के माध्यम से अंग्रेजी हुकूमत से क्षमा याचना करते रहे। सावरकर ने अपने लिखित क्षमा याचना में अंग्रेजी हुकूमत से कहा कि ‘‘मैं आप ही का नालायक बेटा हूं मुझे छोड़ दें तो मैं आप ही के काम आऊंगा।’’

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