अवधेश शर्मा जगदलपुर। शनिवार को बस्तरवासियों ने इंद्रावती नदी में जल सत्याग्रह किया। इसमें बड़ी तादाद में लोग इकट्ठे हुए। उनकी चिंता 185 गांवों के लोगों के पेयजल और विश्व विख्यात चित्रकूट जलप्रपात के सूखने को लेकर थी। घुटने तक पानी में उतर कर लोगों ने अपने हिस्से के पानी के लिए हुंकार भरी। इन आदिवासियों ने सरकार को चेताया, कि अगर बस्तरवासियों के हिस्से का पानी उनको नहीं दिया गया, तो आने वाले दिनों में ये सत्याग्रह एक बड़े आंदोलन का रूप लेगा।

क्या है इसके पीछे की कहानी:

इसके पीछे का कारण ये है कि उड़ीसा से निकलकर छत्तीसगढ़ में आने वाली इंद्रावती नदी का जलस्तर काफी कम हो गया है, जिसके चलते नदी में पानी का प्रवाह कम हो गया है। स्थिति इतनी गंभीर हो चली है कि विश्व विख्यात चित्रकूट जलप्रपात पूरी तरह सूख गया है। ऐसा पहली बार हो रहा है कि चित्रकूट जलप्रपात में पानी ही नहीं है। दरअसल उड़ीसा के कालाहांडी जिले में स्थित कातीगुड़ा डैम से समझौते के तहत दिया जाने वाला पानी भी बस्तर को नहीं मिल रहा है। जदलपुर से 28 किलोमीटर दूर इंद्रावती नदी के दिशा बदल जाने के चलते सारा का सारा पानी जोरा नाला के माध्यम से सबरी में जाकर मिल रहा है । यही वजह है कि इंद्रावती नदी को पर्याप्त पानी नहीं मिल पा रहा है।

जोरा नाला में स्ट्रक्चर का निर्माण शुरू किया गया था ताकि पानी का प्रवाह छत्तीसगढ़ की ओर आ सके, लेकिन 8 साल बीत गए स्ट्रक्चर बनकर तैयार नहीं हुआ, लिहाजा ज्यादातर पानी जोरा नाला में बहने लगा।

185 गांवों में पेयजल का संकट:

इसके कारण स्थिति इतनी खराब हो गई है कि बस्तर में नदी किनारे पड़ने वाले 185 गांव पानी के लिए तरसने लगे हंै। सबसे खराब स्थिति चित्रकूट जलप्रपात की है। इंद्रावती को बचाये जाने को लेकर शहर के दंडक दल ने जल सत्याग्रह अभियान की शुरुआत की है। पहले चरण में इंद्रावती नदी के बीचोबीच घुटने तक पानी में खड़े होकर सत्याग्रह किया गया। सत्याग्रह के माध्यम से मांग की गई कि उड़ीसा सरकार पर दबाव बनाकर स्ट्रक्चर का निर्माण जल्द किया जाए । इसके साथ ही समझौते के तहत 50% पानी छत्तीसगढ़ को दिया जाए।

इंद्रावती नदी को बचाने की मांग:

जल सत्याग्रह में बड़ी संख्या में नगर के लोग शामिल हुए और आधे घंटे तक पानी में खड़े होकर नदी बचाने हेतु नारेबाजी करते रहे। लोगों का कहना है बस्तर की इंद्रावती नदी प्राणदायनी है। इसके चलते ही बस्तर का हरिहर स्वरूप में जीवित है। नदी न होती तो बस्तरवासी पानी के लिए तरस जाते । अब इसे बचाए रखने के लिए उन्हें कुछ भी करना पड़े करेंगे । .स्थानी निवासियों ने सरकार से भी मांग की है कि उड़ीसा सरकार पर दबाव बनाकर बटवारा समझौता के तहत पानी मंगवाए नहीं तो स्थिति काफी गंभीर हो जाएगी।  

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