नई दिल्ली। भारत के साथ मित्रतापूर्ण संबंध रखने वाले सऊदी अरब के साथ रिश्तों में तनाव देखने

को मिल सकता है। सऊदी अरब ने कश्मीर के मुद्दे पर ऑर्गनाइजेशन ऑफ इस्लामिक कोऑपरेशन

की समिट बुलाने का फैसला लिया है।

 

इसमें इस्लामिक संगठन से जुड़े देशों के विदेश मंत्री शामिल होंगे। माना जा रहा है कि पिछले

सप्ताह ही मलेशिया की ओर से आयोजित इस्लामिक समिट से पाक के दूरी बनाने के एवज में

सऊदी अरब ने यह फैसला लिया है।

 

सऊदी अरब और यूएई ने इस समिट से दूर रहने का फैसला लिया था। सऊदी के इस फैसले

को पाकिस्तान को खुश करने की नजरिए से देखा जा रहा है। इसी सप्ताह सऊदी अरब के

विदेश मंत्री फैसल बिन फरहाद अल-सऊद ने अपने इस्लामाबाद दौरे में पाकिस्तान सरकार

को इस समिट के बारे में जानकारी दी है।

 

कहा जा रहा है कि पिछले सप्ताह कुआलालाम्पुर में मलेशियाई पीएम महातिर मोहम्मद की

अध्यक्षता में बुलाई गई मीटिंग से पाक ने भी किनारा कर लिया था। सऊदी अरब मलेशिया

की इस कोशिश को इस्लामिक ऑर्गनाइजेशन के समानांतर संगठन खड़ा करने का प्रयास

मान रहा है।

 

मलेशिया की ओर से आयोजित समिट में तुर्की के पीएम रेसेप तैयप एर्दोगन के अलावा पाकिस्तान

भी मुख्य तौर पर शामिल था, लेकिन ऐन वक्त पर दूरी बना ली। दुनिया भर में मुस्लिमों से जुड़े मुद्दों

पर आयोजित समिट में ईरान के राष्ट्रपति हसन रूहानी की मौजूदगी भी सऊदी अरब के लिए दूरी

बनाने की एक वजह थी।

 

कश्मीर मुद्दे पर विदेश मंत्रियों की समिट को लेकर सऊदी अरब की ओर से अब तक तारीख का ऐलान

नहीं हुआ है। लेकिन यह साफ है कि उसके इस फैसले से भारत के साथ सऊदी अरब के संबंध प्रभावित

होंगे। बीते कुछ सालों में सऊदी अरब और भारत के बीच मित्रतापूर्ण संबंध देखने को मिले थे। पाकिस्तान

ने कई बार इस बात पर निराशा जताई थी कि आर्टिकल 370 हटाए जाने के बाद सऊदी अरब समेत तमाम

देशों ने उसके प्रॉपेगैंडे का समर्थन नहीं किया था।

सऊदी अरब, यूएई से बेहतर रहे हैं भारत के संबंध

भारत की विदेश नीति में बीते कुछ सालों में बड़ा बदलाव देखने को मिला है। इस्लामिक देशों की बात करें तो

सऊदी अरब और यूएई से भारत के संबंध काफी मधुर हुए हैं। जम्मू-कश्मीर से आर्टिकल 370 हटाए जाने पर

भी इन देशों ने कहा था कि यह भारत का आंतरिक मामला है।

 

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