दुनिया बड़ी तेजी से बदल रही है। लोगों तक जो खबरें पहले आने में कई घंटे कई दिन लग जाया करते थे, आज वही खबरें सोशल मीडिया से होती हुई कुछ सेकेंडों में लोगों तक पहुंच जाती हैं। इनसे अगर कोई अछूता रह जाता है तो वो है गांव का एक आम इंसान, क्योंकि उसके पास अत्याधुनिक संसाधन नहीं होते। तो वहीं चकाचौंध की पत्रकारिता भी उनके इर्दगिर्द मंडराती फिरती है, जिनके पांव जमीन पर कम आसमान पर ज्यादा रहते हैं!

ऐसे में यहां तक देश की उस गरीब जनता की आवाज नहीं पहुंच पाती।

यहां तक पहुंचने से पहले ही उसकी आवाज बेअसर हो जाती है। उसी की आवाज बनने के प्रयास का नाम है द रूरल प्रेस।

हमारी नजर में जब आम आदमी की आवाज होती हो बेअसर तभी बनती है बड़ी खबर। जब इंसानियत पर हावी हो बाजार तब बनता है बड़ा समाचार। हम किसी भूखे गरीब की रोटी तो नहीं बन सकते? किसी आत्महत्या कर चुके किसान को जिंदा तो नहीं कर सकते,मगर हमारी कोशिश ये जरूर है कि हम उसकी आवाज बनें। हम उसकी बात को उस तबके तक पहुंचाएं जो वातानुकूलित कमरों में बैठकर उनके लिए रणनीति तैयार करते हैं, ताकि ऐसे मजलूम लोगों के परिजनों को आने वाली तकलीफों से बचाया जा सके। तभी हमारी पत्रकारिता को सार्थक माना जाएगा। और अंत में बस इतना ही कहना चाहेंगे कि –

रख दी है किसी शख्स ने दहलीज पे आंखें, रौशन कभी इतना तो दिया हो नहीं सकता।

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