-उचित शर्मा
छत्तीसगढ़ में डीएमएफ का इस्तेमाल कलेक्टर्स एटीएम की तरह करने लगे हैं। डीएमएफ की इसी फिजूलखर्ची को आड़े हाथ लेते हुए मुख्यमंत्री ने कुछ समय पहले साफ-साफ कहा था कि इसका सही ढंग से उपयोग नहीं हो पा रहा। इस पैसे से बड़ी बिल्डिंग बनाने से कोई फायदा नहीं होगा। इस राशि से टीचर, डॉक्टर अपाइंट करेंगे तो बेहतर होगा। डीएमएफ माईनिंग प्रभावित लोगों का जीवन स्तर उठाने के लिए, उनके कल्याण के लिए है न कि ठेकेदारों के लिए। इस पैसे को इन्फ्रास्ट्रक्चर पर खर्च न करें। नक्सल प्रभावित दंतेवाड़ा में डीएमएफ की राशि में गड़बड़ी के आरोप में जिले के तीन अफसरों पर एफआईआर दर्ज हुई। इन पर सात करोड़ 47 लाख रुपए के फर्जीवाड़े का आरोप लगा। तो वहीं दंतेवाड़ा के पूर्व कलेक्टर पर भी 6.33 करोड़ और कोरबा के सहायक आयुक्त पर 313.66 लाख रुपए के घपले का आरोप लगा। ये तो महज कुछ मामले बतौर बानगी हैं। कायदे से जांच की जाए तो राज्य के 27 जिलों में से ज्यादातर जिलों में इसको लेकर भ्रष्टाचार हुआ है। मुख्यमंत्री की अगर मानें तो इस रकम का उपयोग माइनिंग प्रभावित एरिया के लोगों के जीवन स्तर को ऊपर उठाने पर खर्च होना चाहिए था। इसके बजाय इस राशि को दीगर कामों में खर्च किया जा रहा है। जिस कलेक्टर की जहां भी मर्जी आती है डीएमएफ से पैसा जारी कर देता है। जिनको असल में इसकी जरूरत है वो निरीह जनता तो ये भी नहीं समझ पाती कि उसके हिस्से का पैसा किस ओर से आया और विद्वान अधिकारी ने किस ओर उसे खर्च कर दिया। अशिक्षा, गरीबी और कुपोषण जैसी समस्याओं से जूझ रहे ये लोग, इतनी भी हिम्मत नहीं जुटा पाते कि कम से कम जिम्मेदार अधिकारी से ये तक पूछ सकें कि डीएमएफ मद में कितनी राशि आई, कितनी खर्च हुई और कितनी शेष है? ये तो वो लोग हैं जिनको अगर कलेक्टर के सामने खड़ा कर दिया जाए तो उनकी टांगे कांपने लगती हैं। जुबान हलक में अंटक जाती है।
सरकार को इस मद पर कड़ी निगहबानी करने की जरूरत है, जिसके लिए ये फंड आता है, उसी के कल्याण के लिए खर्च होना चाहिए। इसके साथ ही साथ इस मद के उपयोग की भी पूरी मॉनिटरिंग होनी चाहिए। समय-समय पर ऐसे मद से कराए गए कार्यों का निरीक्षण- परीक्षण कराया जाना चाहिए, ताकि यह पता चलता रहे कि डीएमएफ मद में आई रकम का सदउपयोग हो भी रहा है या नहीं?