टीआरपी न्यूज़। इस बार बिहार के विधानसभा चुनाव (Bihar Assembly Election 2020) में एक बार फिर नतीजे उम्मीदों से काफी अलग आ गए। एनडीए (NDA) को निर्णायक बढ़त मिली, अंतिम चुनाव की घोषणा कर चुके मुख्यमंत्री नितीश कुमार को जीवन दान मिल गया और तेजस्वी यादव के नेतृत्व में आरजेडी ने हार के बावजूद प्रभावी प्रदर्शन किया। लेकिन इन सुर्खियों के अलावा भी इस बार बिहार के चुनावों में और भी नई बातें सामने आईं, जिसमें चिराग पासवान, असुद्दीन औवेसी के साथ ही वाम मोर्चा (Left front) ने भी चुनाव के नतीजों को खासा प्रभावित किया। वाम मोर्चा बिहार के पिछले कुछ चुनावों में हाशिए पर जाता दिख रहा था, लेकिन इस बार उसने 3 से सीधे 16 सीटें जीत कर न केवल एक लंबी छलांग दिखाई है बल्कि एक साथ कई संदेश भी दे दिए हैं।

कांग्रेस का स्ट्राइक रेट सिर्फ 27 तक ही सिमट कर रह गया

CPI (वाम मोर्चा) का प्रदर्शन भी कम चौंकाने वाला नहीं रहा है जिसने 29 सीटों पर चुनाव लड़कर 16 में जीत हासिल की। जबकि महागठबंधन की प्रमुख पार्टी कांग्रेस ( congress ) ने 70 सीटों से चुनाव लड़ कर सिर्फ 19 सीटों पर जीत हासिल कर सकी। यानि इसका स्ट्राइक रेट सिर्फ 27 तक ही सिमट कर रह गया।

कन्हैया कुमार का जलवा

तेघड़ा विधानसभा सीट के लिए कन्हैया कुमार ( kanhaiya kumar ) ने प्रचार में कोई कसर भी नहीं छोड़ी थी। इसे उनका जलवा ही कहा जाएगा कि CPI के राम रतन सिंह 85229 वोटों से जीत गए हैं। उन्होंने LJP के ललन कुमार को 47979 के अंतर से करारी शिकस्त दी है। वहीं, JDU के बीरेंद्र कुमार महतो भी 37250 वोट पाकर पीछे रह गए।

इसलिए कहा जा रहा है सीपीआई की वापसी को शानदार

अगर राष्ट्रीय स्तर की बात करें तो लेफ्ट का प्रमुख गढ़ पश्चिम बंगाल और केरल जैसे ही राज्य रहे हैं। पश्चिम बंगाल में वह कमजोर होती जा रही है। बिहार में वह कभी प्रमुखता और व्यापक तौर तो पर प्रभाव नहीं दिखा सकी, लेकिन उसका जितना भी असर था वह काफी असरदार रहा करता है जो इस चुनाव में एक लौटता दिखा है।

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