टीआरपी डेस्क। यूनिसेफ और डब्ल्यूएचओ की साझा मॉनिटरिंग रिपोर्ट 2019 के मुताबिक दुनिया में 300 करोड़ लोगों के पास हाथ धोने के लिए संसाधन नहीं है। कोरोना वायरस महामारी के दौरान हाथ धोना सबसे ज्यादा जरूरी काम हो गया है। हालांकि अभी भी दुनिया में करोड़ों लोगों के लिए साफ पानी और साबुन से हाथ धोना एक सपने जैसा है।

हाथ धोना अब एक व्यक्तिगत पसंद नहीं बल्कि सामाजिक अनिवार्यता है

यह संख्या दुनिया की जनसंख्या का 40 फीसदी है। कोरोना वायरस के दौरान यह काफी बड़ी संख्या है, जिसके पास हाथ धोने के लिए पर्याप्त साफ पानी और साबुन नहीं है। यूनिसेफ के भारतीय प्रतिनिधि डॉ यसमीन अली हक का कहना है कि जैसे महामारी फैलती जा रही है, यह याद रखना बेहद जरूरी हो गया है कि हाथ धोना अब एक व्यक्तिगत पसंद नहीं बल्कि सामाजिक अनिवार्यता है।

कोरोना वायरस और दूसरे इंफेक्शन से खुद को बचाने के लिए यह प्रक्रिया कारगर

कोरोना वायरस और दूसरे इंफेक्शन से खुद को बचाने के लिए इस प्रक्रिया को अपनाया जा सकता है और यह सबसे सस्ती प्रक्रिया है। भारत में पानी से हाथ धोने की सुविधाएं एक बड़ी चिंता है, रिपोर्ट में बताया गया है कि भारत में केवल 60 फीसदी परिवारों के पास ही साबुन के साथ हाथ धोने की सुविधा है। 

पांच में से तीन के पास ही आधारभूत हाथ धोने की सुविधाएं

ग्रामीण इलाकों में यह सुविधा ना के बराबर है या फिर बहुत कम है। विश्वव्यापी तौर पर देखा जाए तो पांच में से तीन के पास ही आधारभूत हाथ धोने की सुविधाएं हैं। इससे पहले राष्ट्रीय सैंपल सर्वे 2019 की रिपोर्ट के मुताबिक, खाना खाने से पहले 25.3 फीसदी ग्रामीण परिवार और 56 फीसदी शहरी परिवार साबुन या डिटरजेंट से अपने हाथ धोते हैं। 

2.7 फीसदी लोग राख, मिट्टी या फिर रेत का इस्तेमाल हाथ धोने के लिए करते हैं

जबकि खाना खाने से पहले 2.7 फीसदी लोग राख, मिट्टी या फिर रेत का इस्तेमाल हाथ धोने के लिए करते हैं। बता दें कि 15 अक्तूबर को दुनियाभर में ग्लोबल हैंड वॉशिंग डे मनाया गया था, जिसका लक्ष्य लोगों को समझाना है कि हाथ धोना कितना जरूरी है और सिर्फ हाथ धोने से ही कई बीमारियों को खत्म किया जा सकता है।

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