आखिर लौह पुरुष ने घुटने टेक ही दिए
आखिर लौह पुरुष ने घुटने टेक ही दिए

-श्याम वेताल

आखिर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने उन तीनों कृषि कानूनों को वापस लेने की घोषणा कर ही दी जिनके विरोध में देश के कई राज्यों के किसान पिछले 14 महीनों से आंदोलन कर रहे थे। प्रधानमंत्री द्वारा अचानक यह घोषणा किये जाने से सवाल उठना लाज़मी है। पहला और सबसे बड़ा सवाल तो यही उठता है कि क्या प्रधानमंत्री पांच राज्यों ख़ास तौर पर उत्तर प्रदेश और पंजाब के आगामी विधानसभा चुनाव में भारतीय जनता पार्टी की अपेक्षित सफलता को लेकर आशंकाओं से घिर गए थे ? दूसरा यह कि पार्टी के अंदर ही कई मंत्रियों और नेताओं का मत इन तीनो कृषि कानूनों के ख़िलाफ़ बन चुका था और प्रधानमंत्री पिछली 11 कैबिनेट बैठकों और नेताओं से बातचीत में यह जान चुके थे कि अब अपनी जिद पर अड़े रहना मुश्किल है ? हाल में ही मेघालय के राज्यपाल सत्यपाल मलिक ने एक इंटरव्यू में खुलकर यह बात कही थी कि किसानो की उपेक्षा हुई तो विधानसभा चुनाव में भाजपा हार जाएगी।

सरसरी तौर पर प्रधानमंत्री की इस घोषणा को विधानसभा चुनाव के परिपेक्ष्य में किये गए फैसले के रूप में देखा जा रहा है लेकिन यह भी सही है कि पिछले 14 महीनो से चल रहे किसान आंदोलन से न सिर्फ देश के किसानो बल्कि आम भाजपा समर्थकों का भी पार्टी से मोहभंग होता जा रहा था जिसे प्रधानमंत्री ने जरूर महसूस किया होगा। इसके अतिरिक्त , शायद नागपुर से भी प्रधानमंत्री को इस बाबत कुछ सलाह मिली होगी।

अपने निर्णय पर अटल रहने के लिए मशहूर और लौह पुरुष के रूप में ख्यातिप्राप्त प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने जब यह देखा होगा कि गैरों के अलावा अपने भी उनसे सहमत नहीं हैं तो वे ऐसा फैसला लेने के लिए विवश हो गए होंगे। बहरहाल , देर से ही सही प्रधानमंत्री ने यह निर्णय लेकर अपने नुकसान को कम अवश्य किया है। हालाँकि , किसान नेता अभी भी प्रधानमंत्री की इस घोषणा से पूरी तरह संतुष्ट नहीं हैं। उनका कहना है कि जब तक संसद में इन कानूनों को वापस नहीं लिया जाता हम भरोसा नहीं कर सकते। उनका यह भी कहना है कि हमारी मुख्य रूप से दो मांगें थी। पहली कृषि कानूनों की वापसी और दूसरी एम एस पी की गारंटी। ये दोनों जब तक पूरी नहीं होती आंदोलन ख़त्म न समझा जाए। इसलिए अभी हम अपनी आंशिक विजय ही मान रहे हैं।

ऐसा माना जा रहा है कि कृषि कानूनों की वापसी के लिए प्रधानमंत्री को राज़ी कराने में पंजाब के पूर्व मुख्यमंत्री कैप्टन अमरिंदर सिंह की मुख्य भूमिका रही। मुख्यमंत्री पद एवं कांग्रेस से इस्तीफा देने के बाद कैप्टन गृह मंत्री अमित शाह से मिले थे और बाद में उन्होंने मीडिया को बताया था कि कृषि कानूनों के सम्बन्ध में उनकी चर्चा हुई है। कप्तान ने पंजाब में नयी पार्टी का गठन किया है और उन्होंने यह भी एलान किया है कि वे भाजपा से गठबंधन करेंगे।

वास्तव में , पंजाब में जब से अकाली दल ने भाजपा का हाथ झटक दिया है राज्य में पार्टी का वज़ूद ख़त्म सा हो गया है और पार्टी को वहां किसी की मदद की जरूरत थी। इस जरूरत को पूरा करने के लिए इस समय कैप्टन से बेहतर और कोई नहीं हो सकता था। अब कैप्टन की मदद पाने के लिए कैप्टन की बात मानना भाजपा की मजबूरी थी।

बहरहाल , अब यह देखना है कि केंद्र सरकार किसानो की दोनों मांगों को पूरी तरह से ईमानदारी के साथ मानती है या नहीं। कोई झोल या झटका तो नहीं देने वाली है क्योंकि बिना किसान नेताओं से कोई बातचीत किये इतना बड़ा फैसला और राष्ट्र के नाम सम्बोधन में उसकी घोषणा होना संशय पैदा करता है। सभी का कहना है कि प्रधानमंत्री ने अपने स्वभाव के विपरीत जाकर किसानो के आगे घुटने टेके हैं। यह घोर आश्चर्य का विषय है।

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