हाथी के शावक की मनाई गयी छट्ठी, आदिवासी समुदाय का अनूठा आयोजन, पूजा-पाठ के साथ वनभोज भी कराया ग्रामीणों ने
हाथी के शावक की मनाई गयी छट्ठी, आदिवासी समुदाय का अनूठा आयोजन, पूजा-पाठ के साथ वनभोज भी कराया ग्रामीणों ने

रायगढ़। मानव-हाथी द्वंद्व के बीच एक अच्छी खबर रायगढ़ जिले के लैलूंगा क्षेत्र से आयी है, यहां प्रकृति की पूजा करने वाले आदिवासियों ने हाथी के एक शावक का जन्मोत्सव मनाया। इनके बीच मान्यता है कि जंगल में वन ग्राम के नजदीक अगर किसी हथिनी के द्वारा शावक को जन्म दिया जाता है, तो उससे आसपास के गांवों में समृद्धि आती है और हाथी इलाके को छोड़कर कहीं और चले जाते हैं।

वन कर्मी भी भोज में हुए शामिल

रायगढ़ जिले के लैलूँगा तहसील अंतर्गत वन ग्राम मुकडेगा के रहने वाले आदिवासी ग्रामीणों ने प्रकृति से तालमेल बिठाने की अपनी पारंपरिक शैली का पालन करते हुए नवजात हाथी के शावक की छट्ठी (जन्मोत्सव) मनाई। मुकडेगा में पूरे विधि-विधान से सैकड़ों ग्रामीणों और वन विभाग के कर्मचारियों की उपस्थिति में हाथी के नवजात शावक का जन्मोत्सव आयोजित किया गया।

हाथियों ने काफी पहुंचाया है नुकसान

गौरतलब है कि ग्राम मुकडेगा के अलावा उसके आसपास के आधा दर्जन गांवों, सोनाजोरी,करवाजोर, मुहड़ापानी और बेसकीमुड़ा में बीते एक महीने से करीब 40 की संख्या में जंगली हाथियों का एक दल सक्रिय रहा है। इस हाथी दल ने काफी उत्पात मचाया और गांवों में 40 से अधिक घरों में न केवल तोड़फोड़ की है, बल्कि खेतों में फसलों को भी काफी नुकसान पहुचाया है।

जहां हुआ शावक का जन्म वहीं किया आयोजन

हाथियों द्वारा पहुंचाए गए भारी नुकसान के बावजूद इन गांवों में रहने वाले आदिवासी ग्रामीणों को जब इस बात की जानकारी मिली कि इस हाथी दल की एक वयस्क हथिनी ने एक शावक को जन्म दिया है, तो गांवों के बुजुर्गों की सलाह पर अपनी परम्परा के अनुसार घने जंगल मे जहां शावक का जन्म हुआ था, वहीं बड़ी संख्या में ग्रामीण पूरी तैयारी के साथ उपस्थित हुए।

परंपरा का किया गया निर्वाहन

दिन भर चले इस कार्यक्रम में यहां उपस्थित होने वाले लोगों में गांव के धोबी, नाई, बैगा, पुजारी के अलावा राउत समाज के हाथी गोत्र के व्यक्ति और पण्डित भी शामिल हुए। वहीं ग्रामीणों के विशेष निमंत्रण पर वन विभाग के कर्मचारी भी इस कार्यक्रम में शामिल हुए। यहां सभी ने मिलकर पूरे उत्साह से शावक का जन्मोत्सव मनाया। इनके द्वारा पहले आदिवासी परम्परा के अनुसार पूरे विधि-विधान से प्रकृति की पूजा की गई फिर वन भोज का आयोजन किया गया।

आदिवासियों की ये है मान्यता

इस कार्यक्रम के आयोजक ह्रदय राम दाऊ ने बताया कि ग्रामीणों का मानना है कि जंगल में वन ग्राम के नजदीक अगर किसी हथिनी के द्वारा शावक को जन्म दिया जाता है, तो उससे आसपास के गांवों में समृद्धि आती है, साथ ही हाथी उस इलाके को छोड़कर अन्यत्र चले जाते हैं, चूंकि आदिवासी ग्रामीण प्रकृति प्रेमी और प्राचीन परम्पराओं का पालन करने वाले होते हैं, अतः सबने मिलकर शावक का जन्मोत्सव मनाने का निर्णय लिया।

पर्यावरण प्रेमियों ने की आयोजन की सराहना

इस जन्मोत्सव की खबर छनकर जब जिला मुख्यालय रायगढ़ तक पहुंची तो यहां के पर्यावरण प्रेमियों ने न केवल आयोजन की सराहना की बल्कि शहर वासियों को उनसे प्रकृति संरक्षण का पाठ सीखने की सलाह दी।
पर्यावरण विद राजेश त्रिपाठी ने TRP न्यूज़ से बातचीत में कहा कि औद्योगिकरण के इस दौर में जहां जंगलों की अंधाधुंध कटाई जारी है। वहीं वन्य जीवों और इंसानों के बीच अप्रिय मुठभेड़ की खबरें बेहद भी आम हो चुकी हैं। खासकर हाथी और इंसानों का आमना-सामना तो रोज होने वाली घटना बन चुकी है। ऐसे में अगर ग्रामीण सबकुछ भूलकर जन्मोत्सव जैसे आयोजन कर रहे हैं तो यह अच्छे संकेत हैं।

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