• 9-10 रुपए प्रति किलो पेंगु के बीज बेंचने को मजबूर हैं आदिवासी

  •  200 रुपए प्रति किलो की कीमत पर बेचते हैं व्यापारी

मृण्मय बरोई, जगदलपुर। तुपकी की गोलियां कह लें या पेंगु के बीज (Pengu Seeds)…. बस्तर (Bastar) के लोग इससे अंजान नहीं हैं। यह अच्छी सेहत का राज होने के साथ ही इससे फूड कलर भी बनाया जाता है। जी हां छत्तीसगढ़ के जंगलों में पाए जाने वाले बेशकीमती पेंगु बीज के इतने उपयोग बेहद कम ही लोग जानते हैं। दवाओं में इसके बीज की उपयोगिता के बारे में आप भी जानकर हैरान रह जाएंगे। मगर कड़ी मेहनत से इसे तोड़कर बाजार तक पहुंचाने वाले आदिवासियों को इस बेशकीमती पेंगु के बीजों का सहीं दाम आज तक नहीं मिल सका है।

दंतेवाड़ा (Dantewada) के साप्ताहिक बाजार में दूरदराज के इलाकों की खाक छांनकर आदिवासी इस बीजों को एकत्र करते हैं। बाद में इन्हें बोरियों में भरकर लाते है। इसके एवज में उन्हें  गल्ला व्यापारियों से 9 से 10 रुपए प्रति किलो का दाम ही। गल्ला व्यापारियों का कहना है कि वे इन बीजों को धूप सुखाते हैं। बाद में बड़े व्यापारियों को 90 रुपए किलो मैं बेच दिया जाता है। आदिवासियों से मात्र 9-10 रु प्रति किलो में खरीद कर इसे  80 से 100 रुपए की कीमत पर बड़े व्यापारियों को बेचा जाता है।

मालकांगनी बीज के नाम से है मशहूर

बड़ी मशक्कत और छानबीन के बाद इस बीज के बारे में जानकारी हासिल की जा सकी, इस बीज को देश में मालकांगनी बीज के नाम से जाना जाता है। जिसे बस्तर के स्थानीय भाषा में पेंगु बीज के नाम से जाना जाता है। मालकांगनी (Malkangani) यह एक औषधीय पौधा (Medicinal Plant) है जिसका वानस्पतिक नाम सिलीस्ट्रस पैनिकुलेटा (Celastrus Paniculatus) है। यह बीज भारत के अमूमन पहाड़ी इलाकों में पाया जाता है।

मलकांगिन या पेंगू बीज

सौ सालों से किया जा रहा है उपयोग

मालकांगनी (Malkangani) के बीजों में भरपूर मात्रा में पोषक तत्व पाए जाते हैं। जो दिमाग को तेज करने के साथ-साथ कई बीमारियों को भी एकदम ठीक कर देते हैं। यहीं वजह है कि आयुर्वेद और औषधि के रूप में मालकांगनी के बीजों को सौ साल पहले से भी इस्तेमाल किया जाता रहा है। इसके बीज से निकलने वाले तेल का उपयोग मसाज ऑयल एवं दर्द रोधक दवाई (Pain Relief Medicine) बनाने में किया जाता है। साथ ही फूड कलर (Food Colour) बनाने में भी इसके बीज का इस्तेमाल किया जाता है। इस बीज में कोई भी खतरनाक रसायन ना होने के कारण इस बीज को खाया जा सकता है। इन बीजों से सिंदूर भी बनाया जाता है।

गोंचा पर्व के दौरान खास है महत्तव

पेंगु के बीजों का उपयोग बस्तर में 2 दिनों तक चलने वाला गोंचा पर्व (Goncha Festival) में भी किया जाता है। इस पर्व को बस्तर (Bastar) के लोग बहुत ही धूमधाम के साथ मनाते हैं। बस्तर में ‘गोंचा पर्व’ में तुपकी चलाने की एक अलग ही परंपरा है। तुपकी चलाने की परंपरा, बस्तर को छोड़कर पूरे भारत में अन्यत्र कहीं भी देखने नहीं मिलती। दीवाली के पटाकों की तरह तुपकी की गोलियों से सारा शहर गूंज उठता है। यह बंदूक रूपी तुपकी पोले बांस की नली से बनायी जाती है, जिसे ग्रामीण अंचल के आदिवासी तैयार करते हैं।

नहीं मिल रहे बेशकीमती बीजों के सहीं दाम

अपार वन संपदा से भरा पूरा बस्तर में रहने वाले आदिवासियों से इन बेशकीमती बीजों को कौड़ियों के दाम खरीदा जा रहा हैं। वही बीज पैकेजिंग के बाद बाजार में 150 रुपय से लेकर 200 रुपय किलो तक बिक रहा है। सहीं मायने में आदिवासियों तक उनके मेहनत का आधा हिस्सा भी नहीं पहुंच पा रहा है। सरकार ने आदिवासियों के लिए वनोपज समिति से लेकर कई प्रकार की योजनाएं तैयार तो की हैं मगर धरातल पर यह महज एक कागजी बातें साबित हो रही हैं।

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