छत्तीसगढ़ में आगे-आगे कोरोना, पीछे-पीछे राजनीति
छत्तीसगढ़ में आगे-आगे कोरोना, पीछे-पीछे राजनीति
श्याम वेताल   

छत्तीसगढ़ में पिछले 15 दिनों में कोरोना का प्रकोप इतनी तेजी से बढ़ा है कि इस ढाई करोड़ की आबादी वाले छोटे से राज्य का नाम देश के महाराष्ट्र जैसे बड़े राज्य के बाद लिया जा रहा है। कोरोना पर काबू पाने के लिए भी छत्तीसगढ़ ने महाराष्ट्र जैसी ही लेटलतीफी की। हफ्ते – दस दिन तक तो नाइट कर्फ्यू से ही काम चलाया जाता रहा।

लेकिन, बेकाबू होती स्थिति को देख कर 6 अप्रैल को दुर्ग जिले में लॉकडाउन लगाया गया। जबकि, राजधानी रायपुर कोरोना की तीव्रता कहीं अधिक थी।  इतना ही नहीं, संक्रमितों की संख्या बढ़ने की दर और मौतों का आंकड़ा भी पूरे राज्य में सबसे ज्यादा रहा। इसके बावजूद राजधानी में 9 अप्रैल की शाम से लॉकडाउन लगाया गया।          

इस बीच यह देखा जा रहा है कि प्रदेश में विपक्षी दल भारतीय जनता पार्टी ने आक्रामक रुख अपना लिया है।  पूर्व मुख्यमंत्री डॉ. रमन सिंह, पूर्व मंत्री बृजमोहन अग्रवाल, अजय चंद्राकर, राजेश मूणत और नेता प्रतिपक्ष धरमलाल कौशिक राज्य की कांग्रेस सरकार और मुख्यमंत्री भूपेश बघेल के खिलाफ ‘हल्ला -बोल’ की तर्ज़ पर वार पर वार करते जा रहे हैं।

इधर कांग्रेस भी चुप नहीं बैठी है। वह भी भाजपा नेताओं के आक्रमण का तत्काल मुंहतोड़ जवाब दे देती है। ज्यादातर ये जवाब पार्टी के मीडिया प्रमुख शैलेश नितिन त्रिवेदी ही देते हैं। लेकिन, कई बार अन्य प्रवक्ताओं को भी मौका मिल जाता है। 

     
खैर, राजनीति है तो विपक्ष के सवाल और पक्ष के जवाब का सिलसिला तो चलेगा ही लेकिन, विपक्ष की कार्यप्रणाली या विपक्ष के जनहित की कार्ययोजनाओं का अनुशरण सत्तारूढ़ दल को शोभा नहीं देता। अब ,यदि भाजपा के कोर ग्रुप की बैठक में यह तय हुआ कि कोरोना मरीजों को अस्पताल में भर्ती कराने में पार्टी के सांसद और विधायक लोगों की मदद करेंगे तो यह जनहित में एक अच्छा कदम था और इससे लोगों ने राहत की साँस ली क्योंकि, महामारी की प्रचंडता के कारण अस्पतालों में भर्ती या दवाओं के लिए मारामारी मची हुई है।

ऐसे समय में किसी प्रभावशाली व्यक्ति की जरूरत सभी को सुकून पहुंचाएगी। लेकिन, कांग्रेस पार्टी को लगा कि भाजपा इसके जरिये लोगों की सहानुभूति कमा लेगी। इसलिए, भाजपा के इस फैसले के दिन ही कांग्रेस के प्रदेश अध्यक्ष मोहन मरकाम ने राज्य के सभी पार्टी पदाधिकारियों एवं कार्यकर्ताओं को निर्देश दिया कि कोरोना संक्रमितों की मदद के लिए निस्वार्थ भाव से आगे आएं। 

अब यह प्रश्न उठना स्वाभाविक है कि कांग्रेस अपना यह निर्णय भाजपा से पहले नहीं कर कर सकती थी ? कांग्रेस की बुद्धि का दरवाजा बाद में क्यों खुला ? क्या सिर्फ इसलिए कि इस जनहित के फैसले से लोगों में भाजपा के प्रति सहानुभूति जन्म लेगी ?  इतना ही नहीं, मुख्यमंत्री ने सभी स्वास्थ्य अधिकारियों और अस्पतालों को निर्देशित भी किया कि कोरोना संक्रमितों को उनकी बीमारी की गंभीरता को देखते हुए ही बेड दिए जाएँ। किसी के दबाव या सिफारिश के आधार पर बेड न दिए जाएँ।

मुख्यमंत्री के इस आदेश में कहीं कोई खोट नहीं नज़र आएगी। लेकिन, जिन्हें यह आदेश दिया गया है वे इसका क्या अर्थ निकालेंगे यह सभी समझ सकते हैं। भाजपा के लोग भी यह समझ गए होंगे कि संक्रमितों की मदद के लिए आगे आने का कोई फायदा नहीं होगा। अगर, उन्होंने कुछ मरीजों की मदद करने की कोशिश भी की और उसका श्रेय लेने का प्रयास किया तो उस अस्पताल या डॉक्टर को भी मुश्किलों का सामना करना पड सकता है। लिहाज़ा, अस्पताल या डॉक्टर भी उन्हीं नेताओं या अधिकारियों की सिफारिशें मानेंगे जिन्हें मान लेने से उन पर कोई आंच नहीं आएगी।

मुख्यमंत्री इस आदेश के दो पहलू  हैं , पहला तो यह कि  कोरोना संक्रमितों की अस्पताल – भर्ती में कोई भेदभाव नहीं किया जाएगा। जो ज्यादा गंभीर हैं उन्हें बेड प्राथमिकता के आधार पर दिया जाएगा और दूसरा पहलू यह है कि सिफारिश किसकी सुनी जा रही है , इस बात का ध्यान रखा जाए। फिर भी यह विश्वास किया जा सकता है कि  भाजपा के लोग यदि किसी गंभीर मरीज़ की मदद करेंगे तो अस्पताल या डॉक्टर उसे सिरे से खारिज नहीं करेंगे। हाँ… मरीज़ को अपना इलाज कितना महंगा पड़ेगा, इसकी कोई गारंटी नहीं है।

वैसे भी, इस समय निजी अस्पतालों पर सरकार का कोई अंकुश नहीं है। वे किसी का इलाज चाहें जितना महंगा कर सकते हैं। जो  सामर्थ्यवान हैं उन्हें विशेष परेशानी नहीं होती लेकिन, मध्यमवर्ग के लोग लुट रहे हैं और उनकी सुनवाई कहीं नहीं है। क्या सरकार निजी अस्पतालों पर कोई अंकुश लगा सकती है ? क्या सरकार कोरोना मरीज़ों के इलाज़ के लिए एकमुश्त पैकेज़ की व्यवस्था करने निजी अस्पतालों को बाध्य कर सकती है ? यही वक़्त है जब सरकार मध्यमवर्ग और गरीबों के लिए मददगार सिद्ध हो सकती है। 

सरकारी अस्पतालों का विकल्प लोगों के पास है। लेकिन, महामारी की प्रचंडता के कारण सरकारी अस्पतालों में भी स्थान शेष नहीं रहते और यह भी सच है कि मध्यमवर्ग के लोग निजी अस्पतालों को पहले चुनते हैं। ऐसा करते समय उन्हें यह अनुमान नहीं होता कि वे लम्बे खर्चे में आ जाएंगे। 


बहरहाल, इस वैश्विक संक्रामक बीमारी के कठिन काल में दलगत राजनीति से हटकर मरीजों की सेवा और सहायता के लिए आगे आना चाहिए। सत्तादल को अपना बड़प्पन दिखाते हुए मरीजों की सेवा में आगे आने वाले विपक्ष के लोगों को भी पूरी सहूलियत देनी चाहिए। ऐसा करने से सत्तारूढ़ दल को भी मनुष्य मात्र की सेवा करने का पुण्यफल प्राप्त होगा।

TRP के लिए विशेष आलेख

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