टीआरपी डेस्क। प्रदेश में किसान सरकार को 2500 रुपए प्रति क्विंटल धान बेचकर भले ही खुश नजर आ रहे हैं। मगर टीआरपी की रिसर्च में यह खुलासा हुआ है कि किसानों से धान खरीदी केन्द्रों में सूखत और पुराने बोरे के नाम पर अधिक धान लिया गया।

टीआरपी की रिसर्च में यह बात भी सामने आई कि धान खरीदी के दौरान प्रत्येक बोरे में किसानों से निर्धारित मात्रा से अतिरिक्त धान लेने की शिकायतें किसानों ने समय-समय पर की। मगर दोषियों पर किसी प्रकार की कोई कार्रवाई नहीं हो सकी।

बता दें कि प्रदेश में 1 दिसंबर से धान की खरीदी शुरू हुई थी। इस बार की धान खरीदी कई मुद्दों को लेकर चर्चा में रही। राजस्व विभाग द्वारा किसानों की जमीन का आकार कम बताते हुए धान का उत्पादन कम दर्ज करने और गिरदावरी में गड़बड़ी के चलते किसानों में काफी नाराजगी देखी गई। टीआरपी न्यूज़ ने जब पड़ताल की तब पता चला कि अधिकांश धान खरीदी केन्द्रों में किसानों से प्रति बोरा निर्धारित मात्रा से ज्यादा धान लिया गया। किसानों ने बताया कि उनसे बोरे के वजन के अलावा अलग से 200 से 500 ग्राम ज्यादा धान लिया गया।

सूखत और पुराने बोरे के नाम पर बनाते हैं बेवकूफ

धान खरीदी केंद्र में ज्यादा दिनों तक पड़े रहने के चलते धान सूखता है और उसके वजन में कमी आ जाती है। किसानों पर दबाव बनाया गया कि वह बोरे के वजन के साथ ही से अलग से और धान तौल में दे । इसके अलावा किसानों का कहना है कि पुराने और फटे बोरों की एवज में भी अधिक धान देना पड़ा।

कोरबा जिले के ग्राम कनकी के किसान नर्मदा शंकर राजवाड़े ने टीआरपी को बताया कि उनके यहां धान खरीदी केंद्र में 40 किलो धान और बोरे के वजन का 700 ग्राम के अलावा 200 ग्राम से ज्यादा धान लिया गया। अर्थात 40 किलो की बजाय 41 किलो धान लिया गया है। इसी तरह कोरबा जिले के ही ग्राम कोरकोमा में संचालित धान खरीदी केंद्र की समिति के सदस्य उमेश्वर सोनी ने बताया कि उनके यहां 40 किलो 900 ग्राम धान लिया जा रहा है। इस तरह कोरकोमा के केंद्र में किसानों से 200 ग्राम धान की ज्यादा वसूली हुई।

अधिक धान लेने की बनी परंपरा

कोरबा जिले के दूरस्थ वनांचल ग्राम रामपुर के रहने वाले कलम सिंह राठिया भाजपा के पदाधिकारी हैं। उन्होंने बताया कि उनसे प्रति बोरा 41 किलो धान लिया गया, यह जानते हुए भी कि ऐसा करना गलत है, उसने खरीदी केंद्र प्रभारी से कुछ भी नहीं कहा। कलम सिंह का कहना है कि हर साल इसी तरह धान के सूखत के नाम पर ज्यादा धान लिया जाता है, इसलिए किसान इस पर आपत्ति नहीं करते और खुद का नुकसान करते हैं।

धान अधिक लेने के हजारों बहाने

टीआरपी न्यूज़ ने इस संबंध में फड़ प्रभारियों से बात की तो अधिकांश ने ज्यादा धान लेना स्वीकार किया। इसके लिए उनके पास अलग अलग बहाने थे। ग्राम कनकी के फड़ प्रभारी वेद प्रकाश वैष्णव ने स्वीकार किया कि वे प्रति बोरी दो – तीन सौ ग्राम ज्यादा धान लिया गया। बोरों के पुराने और फटे हुए होने के चलते ऐसा किया गया। कोरकोमा के खरीदी केंद्र प्रभारी पी के साहू ने भी फटे और पुराने बोरों का रोना रोया। जिसके चलते किसानों से निर्धारित मात्रा से अधिक धान लिए गए।

हमसे ज्यादा तो दूसरे ले रहे हैं

कोरबा जिले के ग्राम नोनबिर्रा के फड़ प्रभारी डाकेश्वर पांडे ने ना नुकर करते हुए बताया कि उनके केंद्र में थोड़ा बहुत अतिरिक्त धान ही लिए गए। कई अन्य खरीदी केंद्रों में तो यहां से ज्यादा धान लिया गया। उसने कुछ केंद्रों के नाम भी गिनाए।

एक्स्ट्रा धान पर ऐसे होता है खेल..!

अभी तक आप सोच रहे होंगे कि धान के प्रति बोरे में अगर किसान से दो – चार सौ ग्राम ज्यादा ले भी लिया गया, तो इससे क्या फर्क पड़ता है, लेकिन सच तो यह है कि इसी थोड़े से धान को अगर समग्र खरीदी के साथ जोड़ दिया जाए तो बहुत बड़ा आंकड़ा सामने आता है। नियमानुसार धान का तौल होते ही बोरे की सिलाई करना होता है, लेकिन समिति प्रबंधक तत्काल बोरी की सिलाई नहीं कराते। खरीदी के समय तौल में समिति प्रबंधक किसानों से जो अतिरिक्त धान लेते हैं उस धान को वे चुपके से निकाल लेते हैं। इसके बाद वह सिलाई करते हैं। फिर निकाले गए धान को उन किसानों के नाम से खपाया जाता है जिनके पास कृषि जमीन होती है, साथ ही उनका भी पंजीयन भी होता है, मगर वे धान का उत्पादन नहीं करते हैं।

पूरे प्रदेश में करोड़ों के वारे न्यारे

धान के सूखत और फटे बोरे के नाम पर पूरे प्रदेश में हर वर्ष करोड़ों के वारे न्यारे हो जाते हैं। आंकड़ों पर नजर डालें तो इस वर्ष पूरे प्रदेश में 92 लाख मीट्रिक टन धान की खरीदी हुई है। ये पूरा धान जितने बोरे में आयेगा, उतने में अगर प्रत्येक में आधा किलो ज्यादा धान भी जोड़ लिया जाए तो सोचिए कितना अतिरिक्त धान, खरीदी केन्द्रों में एकत्र हो जाता है। एक अनुमान के मुताबिक़ हर खरीदी केंद्र में एक सीजन में 15 से 20 लाख रुपए का अतिरिक्त धान इकट्ठा हो जाता है। इसे कागजों में सही करके केंद्र के लोग अपनी और अधिकारियों की जेबें भरते हैं, तभी तो ग़लत करने के बावजूद इनके खिलाफ कोई भी कार्रवाई नहीं होती।

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