महाराष्ट्र: कोरोना वायरस से जूझ रही महाराष्ट्र सरकार के सीएम उद्धव ठाकरे इसस समय एक और बड़े संकट की ओर जाते दिखाई दे रहे हैं. इस बार उनकी कुर्सी पचड़े में जाते दिखाई दे रही है. लेकिन इसकी वजह कोई राजनीतिक दांव पेच नहीं है, कोरोना वायरस है. दरअसल नियम यह है कि मुख्यमंत्री सहित मंत्रिमंडल के सभी सदस्यों को सदन दोनों सदनों में से एक यानी विधानसभा या विधानपरिषद की सदस्यता लेना जरूरी है. अगर कोई सदस्य इन दोनों सदनों में से किसी एक सदस्यता के बगैर मंत्रिमंडल में शामिल होता है फिर चाहे वह मुख्यमंत्री ही क्यों न हो, उसे 6 महीने के अंदर दोनों में से किसी एक सदस्यता लेना होता है. मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे ने 28 नवंबर 2019 को एक बड़े ही नाटकीय घटनाक्रम के बाद मुख्यमंत्री पद की शपथ ली थी. इस हिसाब से 28 मई को उनके 6 महीने पूरे हो जाएंगे. इससे पहले उनको दोनों सदनों में से किसी एक सदस्यता लेनी होगी. अगर उद्धव ठाकरे ऐसा कर पाने में नाकाम होते हैं तो उन्हें इस्तीफा देना होगा लेकिन मुख्यमंत्री के इस्तीफे का मतलब पूरी कैबिनेट का इस्तीफा माना जाता है. 24 अप्रैल को विधानपरिषद की 9 सीटें 24 अप्रैल को खाली हो रही थीं और इन्हीं में से किसी एक से उद्धव ठाकरे को चुनकर आना था लेकिन कोरोना वायरस की रोकथाम के लिए लगाए गए लॉकडाउन की वजह से चुनाव आयोग ने इस इलेक्शन को टाल दिया है.  अब इन हालात में उद्धव ठाकरे के सामने इलेक्शन का इंतजार नहीं कर सकते हैं.

राज्यपाल के पास है रास्ता
विधानपरिषद में राज्यपाल के कोटे से दो सीटें खाली हैं. इन पर उद्धव ठाकरे नाम भेजा जा सकता है. लेकिन अब यह राज्यपाल पर निर्भर करता है कि वे इस पर मंजूरी देते है या नहीं. इन हालात में एक बार फिर महाराष्ट्र का मुद्दा सुप्रीम कोर्ट पहुंच सकता है. या फिर महामारी के बीच ही चुनाव कराए जाएं.
या फिर इस्तीफा देकर फिर शपथ लें उद्धव ठाकरे
एक रास्ता ये है कि उद्धव ठाकरे इस्तीफा दें और दोबारा शपथ लें जिससे फिर उन्हें 6 महीने का रास्ता मिल जाएगा. लेकिन इसमें पेंच ये है कि उनके साथ ही समूचे मंत्रिमंडल को भी इस्तीफा देकर दोबारा शपथ लेनी पड़ेगी. लेकिन इस तरह की परिस्थितियों का संविधान में भी कोई जिक्र नहीं है. हां ये बात जरूर है कि उद्धव ठाकरे के पास सदन में बहुमत है और संख्याबल के हिसाब से उनकी सरकार को कोई संकट नहीं है. लेकिन इस बार जो तकनीकी पेंच है वह भी किसी सिरदर्द से कम नहीं है