योगेंद्र यादव

आप आलोचना ही करते रहेंगे या बताएंगे कि सरकार क्या करे? सरकारी पैकेज फिजूल लगता है तो अपना प्रस्ताव क्यों नहीं देते? विरोध ही करेंगे या विकल्प भी देंगे? पिछले एक सप्ताह से यह सवाल उठ रहा है, जिसका जवाब जरूरी है। जबसे देश ने वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण के 20 लाख करोड़ के लिफाफे को खोला और वो खाली निकला, तबसे हर कोई ठोस विकल्प तलाश रहा है। इसके लिए कुछ अग्रणी अर्थशास्त्रियों, बुद्धिजीवियों और मुझ जैसे कार्यकर्ताओं ने मिलकर एक सात सूत्री कार्ययोजना तैयार की है। ‘मिशन जय हिंद’ नाम से बनी यह योजना ठोस प्रस्ताव रखती है कि देश के आर्थिक, स्वास्थ्य और मानवीय संकट का सामना कैसे करें।

सबसे पहला बिंदु प्रवासी मजदूरों के पलायन संकट से निपटने के लिए है। सरकार खो-खो खेलने की बजाय इसे जिम्मेदारी माने। आपात राष्ट्रीय योजना बनाकर 10 दिन में हर इच्छुक मजदूर को घर पहुंचाए। केंद्र सरकार मुफ्त रेल और इंटर स्टेट बस चलाए। स्टेशन या बस अड्डे पहुंचने के बाद राज्य में गांव तक पहुंचाने की जिम्मेदारी राज्य सरकार उठाए। अभी भी पैदल चल रहे मजदूरों को खाना-पानी देने, स्टेशन-बस अड्डे पहुंचाने की जिम्मेदारी स्थानीय प्रशासन ले। जितनी चिंता विमान चलाने की हो रही है, उससे आधी भी ट्रेन, बस की कर लें तो अब भी संक्रमण और फैलने से पहले मजदूर घर पहुंच सकते हैं।

दूसरा प्रस्ताव कोविड-19 के इलाज से जुड़ा है। अब यह मान लें कि संक्रमण देशभर में पहुंचेगा। इसलिए केंद्र व राज्य जिम्मेदारी स्वीकारें। कोरोना लक्षण वाले हर व्यक्ति का तुरंत और फ्री टेस्ट हो। पॉजिटिव निकले तो क्वारेंटाइन से लेकर अस्पताल तक का इंतजाम मुफ्त करें। डॉक्टर, स्वास्थ्यकर्मी और सफाई कर्मी और उनके परिवार की बीमारी और आर्थिक स्थिति की जिम्मेदारी सरकार उठाए।

तीसरा तात्कालिक बिंदु भूख से निपटने का है। सरकार ने राशन कार्ड वालों को महीने में 5 से बढ़ाकर 10 किलो अनाज देने की घोषणा की, जो काफी नहीं है। भारत पर भुखमरी के दाग से बचने के लिए अगले छह महीने सरकार उन 20 करोड़ जरूरतमंदों को भी राशन दे, जिनके पास राशन कार्ड नहीं हैं। ऐसा आधार या अन्य पहचान-पत्र या पंच-सरपंच की शिनाख्त से कर सकते हैं। साथ में प्रति व्यक्ति राशन बढ़ाकर महीने में 10 किलो अनाज, 1.5 किलो दाल, 800 मिली तेल, 500 ग्राम चीनी किया जाए। जब तक स्कूल और आंगनवाड़ी न खुलें तब तक मिड-डे-मील और पौष्टिक आहार का राशन घर भेजा जाए।

इस सात सूत्री योजना में अर्थव्यवस्था को पटरी पर लाने के लिए तीन बड़े सुझाव भी हैं। पहला तो बेरोजगारी से बचाने के लिए ग्रामीण क्षेत्रों में मनरेगा में रोजगार गारंटी बढ़ाकर 200 दिन प्रति परिवार की जाए। सरकार ने मनरेगा के बजट में बढ़ोतरी की घोषणा की है, लेकिन वह फंड तो पिछले साल का बकाया भुगतान करने और बजट में निर्धारित लक्ष्य पूरा करने में खर्च हो जाएगा। इसी तरह शहरों में इस साल के लिए 100 दिन रोजगार की गारंटी दी जाए। रोजगार मिलेगा तो अर्थव्यवस्था का इंजन दोबारा चालू हो सकेगा।

दूसरा सुझाव उन नौकरी पेशा या स्वरोजगार में लगे लोगों के लिए है जिनका वेतन रुक गया या काम-धंधा चौपट हो गया है। सुझाव यह है कि छंटनी के शिकार कर्मचारियों को सरकार कुछ हर्जाना दे। जो कंपनी मंदी की शिकार हो उसे कर्मचारियों को कुछ वेतन देने के लिए बिना ब्याज का लोन मिले। किसान को फसल के नुकसान और दाम गिरने का तुरंत मुआवजा मिले। रेहड़ी-पटरी वाले या छोटे दुकानदार को धंधा दोबारा शुरू करने के लिए एकमुश्त अनुदान मिले।

बुजुर्ग, विधवा, दिव्यांंग को कम से कम 2000 रुपए प्रतिमाह की सहायता मिले। लोग खर्च करेंगे और मांग बढ़ेगी। कर्ज के बारे में प्रस्ताव यह है कि सब तरह के लोगों को और कर्ज देने की बजाय जो कर्ज लोगों पर है, उसमें कुछ राहत दें। संकट के पहले 6 महीने किसान क्रेडिट कार्ड पर फसल लोन लेने वालों को और मध्यम वर्ग के जिन लोगों ने पहले मकान के लिए लोन लिया है, उन्हें भी कम से कम 3 महीने भुगतान में छूट और ब्याज माफी मिले। यही सुविधा मुद्रा योजना के तहत ‘शिशु’ व ‘किशोर’ लोन लेने वाले छोटे व्यापारी को भी मिले।

कुल मिलाकर प्रस्ताव यह है कि इस संकट की घड़ी में सरकार लोगों को अपने हाल पर छोड़ न दे। सवाल उठेगा कि इस सब के लिए पैसा कहां से आएगा? इस प्रस्ताव का सातवां बिंदु इस सिद्धांत को स्पष्ट रूप से निरुपित करता है कि युद्ध की तरह इस संकट काल में यह मिशन साधन के अभाव में रुक नहीं सकता। इस वक्त देश के हर संसाधन पर देश का पहला हक है। देश के शीर्ष पर बैठे 1% अमीरों की कुल संपत्ति 300 लाख करोड़ रुपए से अधिक है। क्या इस संकट में उनकी संपत्ति का 2% देश के लिए इस्तेमाल नहीं हो सकता? इस संकट में या तो अमीरों के विशेषाधिकार बचेंगे या फिर देश बचेगा। फैसला सरकार को नहीं हमें, आपको करना है।


— लेखक ‘स्वराज इंडिया’ के राष्ट्रीय अध्यक्ष हैं। उन्होंने ‘मिशन जय हिंद’ नाम से ‘सात सूत्री कार्य योजना’ का मसौदा जारी किया है। टीआरपी के लिए उनका विशेष आलेख।