मशहूर पर्यावरणविद सुंदरलाल बहुगुणा का कोरोना से निधन, PM मोदी समेत कई नेताओं ने दी श्रद्धांजलि
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टीआरपी डेस्क। कोरोना वायरस की दूसरी लहर लगातार अपना कहर दिखा रही है। इस बीच उत्तराखंड से एक बुरी खबर सामने आ रही है। बता दें, आज शुक्रवार को मशहूर पर्यावरणविद सुंदरलाल बहुगुणा का कोरोना के कारण निधन हो गया है। जानकारी अनुसार, 8 मई को कोरोना संक्रमित होने के बाद उन्हें एम्स में भर्ती कराया गया था। जहां इलाज ले दौरान दोपहर 12 बजे 95 वर्ष की उम्र में उनका निधन हो गया। जिसके बाद प्रधामंत्री नरेंद्र मोदी समेत कई दिग्गजों ने उनके निधन पर शोक व्यक्त किया है।

पीएम मोदी ने बताया एक बड़ी क्षति

पीएम मोदी ने ट्वीट करते हुए लिखा, ”श्री सुंदरलाल बहुगुणा जी का निधन हमारे देश के लिए एक बड़ी क्षति है। उन्होंने प्रकृति के साथ सद्भाव में रहने के हमारे सदियों पुराने लोकाचार को प्रकट किया। उनकी सादगी और करुणा की भावना को कभी भुलाया नहीं जा सकेगा। मेरे विचार उनके परिवार और कई प्रशंसकों के साथ हैं। ओम शांति।”

CM तीरथ सिंह रावत ने जताया शोक 

वहीं उत्तराखंड के मुख्यमंत्री तीरथ सिंह रावत ने भी सुंदरलाल बहुगुणा के निधन पर दुख व्यक्त किया है। उन्होंने शोक व्यक्त करते हुए लिखा कि चिपको आंदोलन के प्रणेता, विश्व में वृक्षमित्र के नाम से प्रसिद्ध महान पर्यावरणविद् पद्म विभूषण श्री सुंदरलाल बहुगुणा जी के निधन का अत्यंत पीड़ादायक समाचार मिला। यह खबर सुनकर मन बेहद व्यथित हैं। यह सिर्फ उत्तराखंड के लिए नहीं बल्कि संपूर्ण देश के लिए अपूरणीय क्षति है।

चिपको आंदोलन के प्रणेता

महात्मा गांधी के सिद्धांतों पर चलने वाले सुंदरलाल बहुगुणा ने 70 के दशक में पर्यावरण सुरक्षा को लेकर अभियान चलाया। जिसने पूरे देश में अपना एक व्यापक असर छोड़ा। इसी दौरान चिपको आंदोलन की भी शुरुआथ की गई।

तब गढ़वाल हिमालय में पेड़ों की कटाई के विरोध में शांतिपूर्ण ढंग से आंदोलन चलाया गया। मार्च 1974 को कटाई के विरोध में स्थानीय महिलाएं पेड़ों से चिपक कर खड़ी हो गईं। जिसके बाद पूरी दुनिया में इसे चिपको आंदोलन के नाम से जाना गया।

हिमालय के रक्षक

सुंदरलाल बहुगुणा का जन्म उत्तराखंड के टिहरी के पास एक गांव में 9 जनवरी 1927 को हुआ था। अपने जीवन काल में उन्होंने कई आंदोलनों की अगुवाई की। फिर चाहे वो शुरुआत में छुआछूत का मुद्दा हो या फिर बाद में महिलाओं के हक में आवाज़ उठाना हो। इसके अलावा उन्होंने हिमालय के बचाव का काम भी शुरू किया और उसके लिए ही जिंदगीभर आवाज़ उठाई। यही कारण है कि उन्हें हिमालय का रक्षक भी कहा जाता है।

उत्तराखंड में कोरोना के हालात 

बता दें, कोरोना की दूसरी लहर में उत्तराखंड में काफी भयावह स्थिति बन गई है। लगातार राज्य में नए मामलों की संख्या बढ़ रही है, लेकिन चिंता का विषय उत्तराखंड के अंदरूनी हिस्सों में मौजूद गांवों का है। यहां कोरोना के मामले बढ़ रहे हैं, लेकिन ढंग से इलाज नहीं हो पा रहा है। बीते दिनों ही अल्मोड़ा से तस्वीरें सामने आई थीं, जहां कोविड मरीजों के शवों को जंगल के बीच में ही जलाना पड़ रहा है।

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