डॉ. संकेत ठाकुर
कृषि वैज्ञानिक 

टीआरपी। 20 सितंबर को अंततः कृषि सुधारों को लेकर बिल लोकसभा और राज्यसभा से पास हो गया। प्रधानमंत्री ने इसे किसानों के लिए ऐतिहासिक दिन कहा। सच कहा है इस बार कि यह ऐतिहासिक दिन है क्योंकि मोदीयुग में किसानों के लिये अंधा युग की शुरुआत है।

याद है ना आपको भूमि अधिग्रहण संशोधन का अध्यादेश मोदी सरकार के प्रथम कार्यकाल के प्रथम वर्ष 2014 में लाया गया था और भारी विरोध की वजह से उसे वापस लेना पड़ा । कारपोरेट को किसानों की भूमि आदिवासियों की भूमि पर संवैधानिक रूप से अधिकार देने का अध्यादेश अंततः मोदी सरकार को भारी दबाव में वापस लेना पड़ा था । लेकिन इस बार सरकार पर कोई दबाव नहीं है क्योंकि कोरोनावायरस ने इसे हल्का कर दिया है ।  आपदा को अवसर में बदलने वाले प्रधानमंत्री मोदी ने यह अवसर नहीं खोया है ।  अब सीधे सीधे किसानों के खेतों पर कारपोरेट का कब्जा करने का दूसरा रास्ता निकाल लिया है ।

कार्पोरेट किसानों के उपज की कीमत तय करेंगे। रिलायंस जियो मार्ट ने घर-घर चावल, दाल, तेल, केचप, चटनी, सब्जी, आदि बेचने की तैयारी फेसबुक के साथ मिलकर कर ली है । अब जियोमार्ट के लिये माल किसानों के खेतों से लाने की व्यवस्था संसद में करतल ध्वनि से हो गई है !

वाकई ऐतिहासिक दिन है सिर्फ 2 साल बाकी है किसानों की आय को दोगुना करने के वादों को पूरा करने के लिए । तो उससे क्या वादों को राष्ट्रवाद से जोड़ना बड़ा आसान है । काला धन, 15 लाख, 5 करोड़ रोजगार सब के सब राष्ट्रवाद के लिये शहीद हो गए ।

किसान के जरिये कारपोरेट आत्मनिर्भर बनेंगे

अब कार्पोरेट के जरिये किसान आत्मनिर्भर बनेंगे जी नहीं इसे सुधारकर पढ़े किसान के जरिये कारपोरेट आत्मनिर्भर बनेंगे । वर्तमान हालात ऐसे हैं कि दोगुनी आय तो छोड़िए लागत निकल जाए तो बड़ी बात है ।  गत वर्ष भरपूर उत्पादन के बावजूद किसानों को अपनी फसल की सही कीमत नहीं है ।
कोरोनावायरस काल में इस साल बर्बादी के रुझान आने शुरू हो गए हैं …. मध्य प्रदेश की मंडियों में मक्का न्यूनतम समर्थन मूल्य (1850 प्रति क्विंटल) से लगभग एक तिहाई कीमत (रु 550-700 प्रति क्विंटल) पर बिक रहा है और यहां भाजपा की सरकार है,  जो कोरोना काल में बनी है । कपास की भी दुर्गति हो कर रखी है ।

कपास का न्यूनतम समर्थन मूल्य 5500 प्रति क्विंटल है और बिक रहा है 3000-3500 प्रति क्विंटल की दर से । अभी तो फसल आने की शुरुआत हुई है, देखते जाइये आगे आगे होता है क्या । लेकिन यह तो स्पष्ट है कि किसानों की कमर लगातार कमजोर होती जा रही है । केंद्र के आधा दर्जन वरिष्ठ मंत्री इस किसान बर्बादी बिल के समर्थन में प्रधानमंत्री का साथ देने के लिए एक साथ मीडिया के सामने आए ।

वह मीडिया जिसके सामने आने से प्रधानमंत्री सदैव कतराते रहे हैं और सब ने एक सुर में कहा आज यह किसानों की आजादी का दिन है ।  लगता है मोदी युग में पारंपरिक शब्दों को नया अर्थ मिलने लगा है…. जैसे आजादी का अर्थ गुलामी,  विकास का अर्थ विनाश,  नोटबंदी का अर्थ नोट गायब होना  और जीएसटी का अर्थ डकैती हो गया है ।

विकसित देशों में किसानों की बर्बादी

संघ की भाषा में कहें कि किस प्रकल्प को आधार बनाकर प्रधानमंत्री ने आज के दिन को किसानों के लिए ऐतिहासिक दिन कहा है कृपा कर बतायें ।

विश्व का इतिहास गवाह है कि जब जब किसानों की उपज को बाजार में खुला छोड़ने की कोशिश सरकारों ने की है किसान तबाह हुए हैं । अमेरिका, फ्रांस, इटली, ब्रिटेन आदि विकसित देशों में किसानी के वे सारे प्रयोग असफल हो गए हैं जिनकी शुरुआत मोदी सरकार भारत में करने जा रही  है ।  कुछ उदाहरण देखिये गत वर्ष नवम्बर 2019 में पेरिस की सड़कों पर फ्रांस के किसानों ने ट्रेक्टर्स से जाम लगा दिया गया था । क्योंकि वे विदेशों से कृषि उपजों के आयात का विरोध कर रहे थे ।

किसानों  का कहना था कि फ्री ट्रेड के नाम पर फ्रांस के किसान खत्म हो जायेंगे । इस वर्ष मई में अमेरिका में कोरोना महामारी की वजह से रेस्टोरेंट-होटल्स के बंद होने से 2 ट्रिलियन डॉलर (14 लाख करोड़ रुपये) की फ़ूड इंडस्ट्री जो सप्लाई चैन के भरोसे चलती है तबाह हो गई । शुक्र है कि हमारे यहां सप्लाई चैन अभी बनी नहीं है ।

इन विकसित देशों में किसानों को बाजार के हवाले करने का परिणाम है कि इन राष्ट्रों में के जीडीपी में कृषि का योगदान घटकर 1 से 2% रह गया है । भारत में तो अभी यह योगदान 2 अंको में बना हुआ है । लेकिन आज की तरह किसानों के साथ अत्याचार होते रहे भारत भी इन कथित विकसित राष्ट्रों की कतार में शामिल हो जाएगा और किसान मजदूर बनकर कारपोरेट के भरोसे अपनी पूरी जिंदगी नौकरी गुलामी करते गुजारने मजबूर हो जायेंगे ।

एमएसपी पर खरीदी नहीं तो डेढ़ गुना जुर्माना

स्वदेशी, राष्ट्रवाद, आत्म निर्भर भारत, मेक इन इंडिया इन सबका झुनझुना का पकड़ाने की बजाय बेहतर होता कि मोदी सरकार किसानों की उत्पादक कम्पनियों को सप्लाई चैन से जोड़ती, कि मंडियों को मजबूत करती, किसानों को अपना उपज कहीं भी किसी को भी बेचने की स्वतंत्रता तो देती लेकिन एमएसपी पर उपज खरीदी ना किया जाने पर व्यापारियों-उद्योगपतियों पर डेढ़ गुना जुर्माना करती । काश !  ऐसा कभी हो पाता तो किसानों की आय निश्चय ही दोगुनी हो जाती !!

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