रिसर्च के नाम पर ठगे जा रहे छत्तीसगढ़ के किसान, नर-नारी धान की खेती करवा रही कंपनियां, फसल खराब होने पर नहीं मिल रहा मुआवजा... विभाग ने भी झाड़ा पल्ला

रायपुर। रिसर्च के नाम पर एक बीज कंपनी इन दिनों छत्तीसगढ़ में बड़े पैमाने पर किसानों से नर-नारी धान की खेती करवा रहीं हैं। मगर जब किसान की फसल ख़राब होती है तो मुआवजा देने से कंपनी इंकार कर रही है। इतना ही नहीं इसके लिए कंपनी द्वारा किसानों को ही जिम्मेदार ठहरा दिया जाता है। वहीं विभाग किसानों को हक दिलाने के बजाए अपना पल्ला झाड़ रहा है।

क्या है नर-नारी धान?

दरअसल नर-नारी धान बायर सीड्स प्रोडक्शन के धान की एक किस्म है। जिसमे नर और मादा दो किस्म के धान होते हैं। कंपनी रिसर्च के नाम पर इसके बीज तैयार करने के लिए किसानों से इसकी फसल लगवाती है। प्रोडक्शन के बाद मादा किस्म के धान को कंपनी किसानो से ऊँची कीमत पर खरीद लेती है।

इस तरह ठगे जा रहे किसान..?

बायर सीड्स प्रोडक्शन कंपनी द्वारा लगभग पूरे प्रदेश में किसानों से रबी की फसल में नर-नारी धान का प्रोडक्शन करवाया जा रहा है। जिसमें नारी किस्म की मादा धान को कंपनी लगभग 7500 रुपये प्रति क्विंटल की दर से खरीदती है। बाद में यही धान पैकिंग के बाद खरीफ की फसल में बीज के रूप में और भी अधिक कीमत पर किसानों को ही बेच दी जाती है। इस तरह कंपनी प्रदेश में रिसर्च कार्य करने के बजाय पूरी तरह व्यवसाय कर रही है।

किसानों को लाखों का नुकसान

बायर सीड्स प्रोडक्शन जैसी कंपनियां इसी तर्ज पर काम कर रही हैं। दुर्ग जिले के धमधा और कोरबा के ग्राम बेंदरकोना से ऐसा ही मामला सामने आया है। इसमें किसानों की नर किस्म की धान तो अच्छे से हुई मगर नारी किस्म की धान पूरी तरह ख़राब हो गई। जिसके बाद किसानों को लाखों का नुकसान हो रहा है। किसानों का कहना है कि कंपनी ने उन्हें भले ही खाद और बीज मुफ्त में दिया, मगर खेत में सारा काम मजदूरों को लगाकर कराया जाता है इसमें काफी रकम भी लगती है। किसानों का कहना है कि अगर उन्होंने दूसरी फसल लगाई होती तो इससे अच्छी पैदावार होती।

लॉक डाउन का बहाना बना रही है कंपनी

बायर सीड्स के सुपरवाइजर दुर्योधन नायक से जब TRP NEWS ने जब धान का उत्पादन नहीं होने के संबंध में बात की, तब उसका कहना था कि वहां केवल 2 किसानों के साथ ऐसा हुआ है। नायक का कहना है कि लॉकडाउन के बावजूद उसका स्टाफ परागण की प्रक्रिया पूरी करने के लिए गांव गया मगर किसान खेत में नहीं पहुंचे। जिसकी वजह से परागण नहीं हो सका और नारी किस्म की धान ख़राब हो गयी। मुआवजे के संबंध में पूछे जाने पर नायक ने कहा कि गलती किसानों की है इसलिए कंपनी कोई मुआवजा नहीं देगी। वहीं बेंदरकोना के किसानों का कहना है कि गांव में लगभग 35 एकड़ भूभाग पर नर-नारी धान की खेती हुई, जिनमे से सभी किसानों की मादा फसल बर्बाद हो गई है।

मुआवजे पर नहीं बनी बात

उधर दुर्ग जिले के धमधा ब्लॉक में किसानो की कई सौ एकड़ में लगी नर-नारी किस्म की धान की फसल बर्बाद हो गई है। प्रभावित किसानों ने जब इस मामले में कार्रवाई की धमकी दी तब कंपनी मुआवजा देने के लिए तैयार हुई है। किसानों की मांग है की उन्हें 50 हजार रुपये प्रति एकड़ मुआवजा दिया जाये। मगर कंपनी केवल 35 हजार रुपये प्रति एकड़ देना चाहती है। अगर बात नहीं बनी तो किसान इस मामले को लेकर उपभोक्ता फोरम जायेंगे।

बीज अधिनियम में नहीं है कोई प्रावधान

इस मामले कृषि विभाग के डायरेक्टर अमृत खलखो से जब हमने पूछा तब उन्होंने बताया कि इस तरह के मामले में बीज अधिनियम में कोई भी प्रावधान नहीं है। ऐसी बहुत सारी कंपनियां रिसर्च के नाम पर छत्तीसगढ़ में व्यवसाय कर रहीं हैं, जो भारत सरकार से लइसेंस लेकर यह कार्य कर रहीं हैं। धमधा में किसानों की फसल की जाँच कराइ गई है। इसमें फसल में जर्मिनेशन नहीं मिला है। वैसे इस तरह के कार्यों में मुआवजे का प्रावधान होता है, अगर मुआवजा नहीं मिल रहा है तो किसान पुलिस में धारा 420 के तहत एफआईआर करा सकते है।

कोरबा के DDA को मामले का नहीं है पता

इस संबंध में जब हमने कोरबा के DDA जेडी शुक्ला से बेंदरकोना के किसानों के बारे में पूछा तो उन्हें इसकी जानकारी ही नहीं थी। जिला मुख्यालय से महज 5 किमी की दूरी पर स्थित इस गांव में किसानों के साथ हो रही धोखाधड़ी की जानकारी यहां के कृषि आधिकारी को नहीं थी। उल्टा हमें इस मामले के बारे में उन्हें बताना पड़ा।

शुक्ला ने बताया कि रबी की फसल का वैसे भी मुआवजे का कोई प्रावधान नहीं होता, और किसानों ने विभाग को इसकी जानकारी ही नहीं दी है, ऐसी काफी कंपनियां किसानो से फसल लगवा रही हैं, किसान ज्यादा लाभ कमाने के फेर में ऐसी कंपनियों के जाल में फंस जाते हैं। मल्टीनेशनल कंपनी बायर सीड्स के बारे में पता चला है कि इसने पूरे छत्तीसगढ़ में किसानों को ज्यादा लाभ का लालच देकर इसी तरह उन्हें फंसाया जा रहा है। किसानों का कहना है कि वे दूसरी फसल लगाते तो इससे कहीं ज्यादा लाभ होता।

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