निजी अस्पतालों में कोरोना मरीज़ों का मुफ्त इलाज़ हो
निजी अस्पतालों में कोरोना मरीज़ों का मुफ्त इलाज़ हो

-श्याम वेताल

तमिलनाडु के नव-निर्वाचित मुख्यमंत्री एम.के. स्टालिन ने शपथ लेने के तुरंत बाद राज्य की जनता के हित में कुछ बड़ी घोषणाएं कीं जिनमें सबसे प्रमुख कोरोना वायरस के संक्रमितों का मुफ्त इलाज है।

उन्होंने यह स्पष्ट किया कि मुफ्त इलाज का यह फैसला उन नागरिकों पर भी लागू होगा जो निजी अस्पतालों में अपना उपचार कराएंगे। इस फैसले का महत्त्व दूसरे राज्यों के वे लोग समझेंगे जो निजी अस्पतालों में अपना या अपनों का इलाज करा रहें हैं अथवा करा चुके हैं और अपनी जमा-पूंजी अस्पतालों में लुटा चुके हैं।

वैसे तो कोरोना महामारी अमीर-गरीब नहीं देख रही है। जो इसकी चपेट में आ रहा है उसे अस्पताल तक ले जा रही है। धनी लोगों के सामने इस बीमारी से सिर्फ जान बचाने की समस्या है जबकि, मध्यम वर्ग के समक्ष जान बचाने के साथ पैसों का इंतजाम करने का भी संकट है। इस वर्ग के लोगों की जमा-पूंजी कोरोना हवन कुंड में स्वाहा होने के साथ उन्हें उधारी का भी मुंह देखना पड़ रहा है।

गरीबों और ग्रामीणों का हाल तो बेहाल है। इन बेचारों के लिए सरकारी अस्पतालों के अलावा और कोई ठौर नहीं है। वहां भी कई सारी दवाएं उन्हें बाजार से खरीदनी पड़ रही हैं।

कोरोना की मौज़ूदा दूसरी लहर ने शहरों के साथ गांवों पर भी हमला बोल दिया है। भोले-भाले ग्रामीण समझ ही नहीं पा रहें हैं कि यह साधारण सर्दी-बुखार है या और कुछ। झोलाछाप डॉक्टरों के यहाँ ग्रामीणों की भीड़ बढ़ रही है। गांवों में टेस्टिंग की भी उचित व्यवस्था नहीं है, जिस कारण हालात बिगड़ रहें हैं। इन बिगड़ते हालात की वज़ह से ही पिछले कई दिनों से देश में संक्रमितों की संख्या प्रतिदिन चार लाख से ऊपर चल रही है।

अब, यदि अस्पतालों की हालत देखते हैं तो समझ में आता है कि जान बचाने की एकमात्र जगह में कहीं बेड नहीं है तो कहीं ऑक्सीजन ख़त्म हो गई है। कई अस्पतालों ने ‘नो एडमिशन’ का बोर्ड लगा रखा है। ऐसी स्थिति में आम आदमी कहाँ जाए? कुछ अस्पताल दाखिल होने आये मरीज़ की पहले ज़ेब देख रहें हैं, कुछ पूरा पेमेंट के बिना मृतक देह देने से मना कर रहें हैं। वहीं आपदा में अवसर छीनने की कोशिश….! समझ में नहीं आता कि धरती के भगवान की जमीन पर इस दानवी प्रवृत्ति ने क्यों जन्म ले लिया?

इस परिस्थिति में यदि एक मुख्यमंत्री सभी कोरोना मरीज़ों का मुफ्त इलाज कराने की घोषणा करता है तो उसकी सराहना करनी होगी क्योंकि, सरकारी अस्पतालों में तो मुफ्त इलाज होता ही है लेकिन, निजी अस्पतालों में भी निशुल्क इलाज की व्यवस्था करना आज आम आदमी की जरूरत है। इस राहत के फैसले का स्वागत किया जाना चाहिए। अन्य राज्यों को तमिलनाडु के मुख्यमंत्री के इस निर्णय का अनुकरण करना चाहिए।

हालांकि सभी निजी अस्पताल मरीज़ से लूट-खसोट की मंशा नहीं रखते लेकिन, आईसीयू और वेंटिलेटर के खर्चे अपने आप में इतने ज्यादा हैं कि आम आदमी के बस की बात नहीं है। कई जगह ऐसी भी शिकायतें आईं हैं कि हेल्थ इंश्योरेंस होने के बावजूद अस्पताल कैशलेस की सुविधा नहीं दे रहें हैं।

कुछ राज्य सरकारों ने हॉस्पिटल चार्जेज की अधिकतम सीमा निर्धारित भी कर दी है लेकिन, अस्पताल उसे नहीं मान रहें हैं। एक मध्यमवर्गीय परिवार के लिए यह कोढ़ में खाज जैसी स्थिति है। मरीज़ मरणासन्न है और अस्पताल पहले इलाज करने के बजाय पैसे जमा करने के लिए कह रहा हो। इतना ही नहीं , कई जगह यह भी सुनने को मिला कि आईसीयू और वेंटिलेटर की जरूरत मरीज़ को नहीं थी फिर भी उसे आईसीयू से बाहर नहीं किया गया या उसका वेंटिलेटर नहीं हटाया गया।

हालाँकि इसका कोई प्रमाण नहीं हो सकता क्योंकि, डॉक्टर के अलावा कोई नहीं जान सकता कि मरीज़ को इनकी वास्तव में जरूरत थी या नहीं। फिर भी भुक्तभोगी शिकायत तो करता ही है। ऐसे समय लोगों की संवेदना मरीज़ और उनके घरवालों के साथ ही होती है।

इस समस्या का समाधान या तो अस्पताल और डॉक्टरों के पास है या सरकार के पास।
आम आदमी तो डाक्टर को हमेशा देवता की ही श्रेणी में रखेगा और अस्पताल को देवभूमि ही मानेगा। बेहतर तो यही है कि इस कठिन समय में डॉक्टर अपने देवत्व को न भूलें और अस्पताल अपनी पवित्रता को नष्ट न करें।

केंद्र सरकार के मुख्य वैज्ञानिक सलाहकार के.विजय राघवन ने कोरोना की तीसरी लहर की भविष्यवाणी की है। बताया जा रहा है कि यह तीसरी लहर और प्रचंड होगी एवं बच्चों के लिए भी घातक होगी। ऐसी स्थिति में जहाँ केंद्र एवं राज्य सरकारों की जिम्मेदारी बढ़ जाएगी वहीं धरती के भगवानों का भी दायित्व दोगुना हो जाएगा।

-टीआरपी के लिए विशेष आलेख

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