हुगली: यहां 229 वर्षों से मह‍िलाएं नहीं बल्क‍ि पुरुष साड़ी पहनकर करते आ रहे हैं देवी पूजा
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टीआरपी डेस्क। हुगली जिले के चंदननगर में इस बार जगधात्री पूजा का अद्भुत नजारा था। बांग्ला संस्कृति की सदियों से आ रही देवी वरण की परंपरा के विपरीत रव‍िवार को विसर्जन के दिन अलग ही नजारा था। सिंदूर और पान से मां जगधात्री की पूजा महिलाओं ने नहीं बल्कि पुरुषों ने साड़ी पहनकर क‍िया।

मां जगधात्री को 13 पुरुषों ने साड़ी पहनकर सिर पर पल्लू डालकर वरण किया। इस दृश्य को देखने के लिए मंडप परिसर के भीतर और बाहर सैकड़ों श्रद्धालुओं की भीड़ शामिल हुई थी।

पुरुषों ने साड़ी पहनकर की देवी मां की पूजा.

इस अनोखी पूजा के बारे में पूजन कमेटी के संरक्षक श्रीकांत मंडल ने बताया कि अंग्रेजों के शासन में आज से 229 वर्ष पहले शाम ढलने के बाद महिलाएं डर के मारे अपने घरों से नहीं निकलती थीं। उस दौर में इस पूजा आयोजक के पूर्वजों ने खुद साड़ी पहनकर मां जगधात्री के वरण करने की परंपरा को निभाया। तब से आज तक यह परंपरा आज भी कायम है।

पूजा कमेटी के संचालकों के अनुसार लगभग 250 वर्ष पहले बंगाल के राजा कृष्णचंद्र दीवान दाताराम सूर की बेटी का घर चंदननगर के गौरहाटी में था जहां पर मां जगधात्री की आराधना होती थी। कुछ समय बाद आर्थिक तंगी के कारण राजा की बेटी ने इस पूजा को तेतुलतला जगधात्री पूजा के रूप में इलाके के लोगों को हस्तांतरित कर दी।

उस दौर में राजा और जमींदार परिवारों में महिलाओं के लिए पर्दा प्रथा का प्रचलन था। किसी भी सामाजिक कार्य में हिस्सा लेने के लिए महिलाओं को इजाजत नहीं दी जाती थी। साथ ही अंग्रेजी शासन का भी डर महिलाओं के मन में था।

इसी कारण चंदननगर के गौरहाटी के राज परिवार में मां जगधात्री के विसर्जन के दिन पुरुषों ने बकायदा साड़ी पहनकर व अपने सिर को पल्लू से ढंककर मां जगधात्री के वरण की प्रक्रिया को पूरा करने का बीड़ा उठाया। अंग्रेजों के शासन काल से आज के इस दौर में भी यह प्रथा जारी है।