चीन को पीछे छोड़ रेमिटेंस पाने वाले देश में आगे बढ़ा भारत, जाने क्या हैं Remittance
चीन को पीछे छोड़ रेमिटेंस पाने वाले देश में आगे बढ़ा भारत, जाने क्या हैं Remittance

टीआरपी डेस्क। कोरोना काल का असर सभी देशों में देखने को मिला है। कोरोना लॉकडाउन के चलते कई लोगों का काम बंद हो गया। कई दूसरे देश में रहने वाले श्रमिकों को अपने देश लौटना भी पड़ा। जिससे इसका असर कई देश के रेमिटेंस रिपोर्ट में भी देखने को मिला है। इसके बावजूद भारत इस मामले में टॉप पर पहुंच गया है।

दरअसल विश्व बैंक के द्वारा इसी सप्ताह जारी रिपोर्ट (World Bank Report) के मुताबिक रेमिटेंस के मामले में भारत के बाद चीन, मैक्सिको, फिलीपींस और मिस्र का स्थान है।

जानें क्या है रेमिटेंस

कोई प्रवासी मजूदर या प्रोफेशनल अपने मूल गांव या शहर में बसे माता-पिता या रिश्तेदारों को पैसे भेजते ही रहते हैं। ऐसा ही होता है विदेशों में काम करने वालों के साथ भी। वे बैंक, पोस्ट ऑफिस या ऑनलाइन ट्रांसफर से धनराशि भेजता है। इस तरीके से मिली राशि ही रेमिटेंस कहलाती है। उदाहरण के लिए खाड़ी के देशों में काम कर रहे भारतीय कामगार या अमेरिका और ब्रिटेन जैसे विकसित देशों में डॉक्टर और इंजीनियर की नौकरी कर रहे प्रवासी भारतीय जब भारत में अपने माता-पिता या परिवार को धनराशि भेजते हैं तो उसे रेमिटेंस कहते हैं।

देश के लिए विदेशी मुद्रा प्राप्त करने का जरिया

जो देश रेमिटेंस प्राप्त करता है, उसके लिए यह विदेशी मुद्रा अर्जित करने का जरिया होता है। वहां की अर्थव्यवस्था में इसका महत्वपूर्ण योगदान होता है। खासकर छोटे और विकासशील देशों की अर्थव्यवस्था को गति देने में रेमिटेंस ने अहम भूमिका निभाई है। कई देश ऐसे हैं, जिनके सकल घरेलू उत्पाद (GDP) में रेमिटेंस से प्राप्त राशि का योगदान अन्य क्षेत्रों के मुकाबले काफी अधिक है। मसलन नेपाल, हैती, ताजिकिस्तान और टोंगा जैसे देश अपने जीडीपी के एक चौथाई के बराबर राशि रेमिटेंस के रूप में प्राप्त करते हैं।

इंडिया रेमिटेंस पाने में सबसे आगे

रेमिटेंस (Remittance) के जरिये मिली राशि का हिसाब देखें तो दुनिया भर में सर्वाधिक रेमिटेंस भारत प्राप्त करता है। विश्व बैंक (World Bank) के अनुसार 2021 में विदेशों में बसे प्रवासी भारतीयों ने 87 अरब डॉलर रेमिटेंस के रूप में स्वदेश भेजे। यह राशि भारत के जीडीपी का करीब तीन फीसदी बैठता है। पिछले साल देश में आए प्रत्यक्ष विदेशी निवेश (Foreign Direct Investment) से भी अधिक है।

कोरोना को जन्म देने वाला चीन खुद हुआ पीछे

रेमिटेंस प्राप्त करने के मामले में भारत ने पड़ोसी देश चीन को भी पीछे छोड़ दिया है। एक समय था, जब सबसे ज्यादा रेमिटेंस चीन में ही आता था। विश्व बैंक के अनुसार, रेमिटेंस के मामले में भारत के बाद चीन, मैक्सिको, फिलीपींस और मिस्र का स्थान है। इस साल दुनिया के मध्य एवं निम्न आय वर्ग के देशों में 589 अरब डॉलर का रेमिटेंस भेजा गया। यह 7.3 फीसदी की तेज बढ़ोतरी को दर्शाता है।

रेमिटेंस भेजने की लागत कम नहीं

यूं तो प्रवासी (Non Resident Indian or Non Resident) अपने देश में रेमिटेंस भेजते रहते हैं, लेकिन इसमें उनकी कठिनाई भी आती है। सबसे बड़ी कठिनाई रेमिटेंस भेजने की लागत है। विश्व बैंक के अनुसार इस साल पहली तिमाही के दौरान लगभग 200 डॉलर भेजने पर 6.4 फीसदी की लागत आई है। यह सतत विकास लक्ष्यों में तय किए गए तीन प्रतिशत के लक्ष्य की तुलना में दोगुने से ज्यादा है।

भारतीय अर्थव्यवस्था में क्या है भूमिका

भारतीय अर्थव्यवस्था में रेमिटेंस की महत्वपूर्ण भूमिका है। फिलहाल भारत का चालू खाते का घाटा जीडीपी के दो फीसदी के आसपास है। चालू खाते का घाटा देश के भीतर आने वाली विदेशी मुद्रा और देश से बाहर जाने वाली विदेशी मुद्रा के अंतर को दर्शाता है। विशेषज्ञों का मानना है कि यदि अनिवासी भारतीय रेमिटेंस के रूप में विदेशी मुद्रा नहीं भेजते तो यह पांच फीसदी के आसपास होता और भारत भी तुर्की, अर्जेंटिना जैसे देशों की कतार में खड़ा होता।

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