टीआरपी डेस्क। आयुर्वेद के अनुसार साल में 6 ऋतुएं यानी मौसम होते हैं। हर मौसम के अपने कुछ नियम हैं, जिसे आयुर्वेद में ऋतुचर्या या मौसम की व्यवस्था के रूप में बताया गया है। ये आहार संबंधी वे नियम और आदतें हैं, जो व्यक्ति को मौसम के अनुरूप बदल लेने चाहिए। अलग-अलग मौसम हमारे शरीर के वात, पित्त और कफ तीनों दोषों के स्तर में बदलाव लाते हैं, जिसका शरीर पर असर होता है। एक स्वस्थ शरीर में वात, पित्त और कफ इन तीनों दोषों यानी त्रिदोष के स्तर का संतुलन होता है। एक विशेष मौसम में विशेष दोष का स्तर बढ़ जाता है, जिसके दुष्प्रभाव के कारण शरीर कई बीमारियों से ग्रसित हो जाता है।

अगर हम बात करें तो हेमंत ऋतु यानी ठंड के मौसम की तो इसमें शरीर में कफ दोष बढ़ जाता है, ऐसा इसलिए होता है क्योंकि यह ठंड की शुरुआत होती है और कफ बाधा के रूप में कार्य करता है। इसके साथ ही लोगों में खानपान संबंधी बुरी आदतों जैसे अधिक मीठा और तला-भुना खाने के कारण भी कफ शरीर में बढ़ जाता है।

इसके बाद शिशिर ऋतु में कफ शरीर में जमा हो जाता है। इसके बाद वसंत ऋतु में जब कफ शरीर में जमा रहता है, उसी समय सूर्य उत्तरायण होने लगता है तब गर्मी की शुरुआत होती है। यही वह समय होता है जब बीमारियों की शुरुआत होने लगती है और अधिकांश लोगों में एलर्जी के लक्षण जैसे कफ, गले में खराश, नाक में होने वाली एलर्जी राइनाइटिस आदि की समस्या होने लगती है।

क्यों होता है बदलते मौसम में खांसी-जुकाम

अब यहां सवाल यह उठता है कि गले में इंफेक्शन, एलर्जी, गले में खराश के लक्षण अप्रैल-मई के महीने में क्यों नजर आते हैं। ठंडे आहार और पेय पदार्थ शरीर से अतिरिक्त कफ के बाहर निकलने और कफ के पिघलने की प्रक्रिया में बाधा उत्पन्न करते हैं। इससे शरीर में कफ अतिरिक्त जमा रहता है और वात-पित्त-कफ का असंतुलन बन जाता है। इस तरह हमारे शरीर में पाचन शक्ति कमजोर होने की समस्या को आमंत्रण मिलता है क्योंकि पूरा शरीर कफ को बाहर निकालना चाहता है और हमने इस तरह की ठंडी चीजों को खा-पीकर ऐसा होने नहीं दिया है।

घरेलू नुस्खों

इम्यूनिटी भी होती है कमजोर

ऐसे में कमजोर पाचन शक्ति के कारण अमा यानी अपच खाद्य सामग्री हमारे शरीर में जमा हो जाती है। जो बाद हमारी रोग प्रतिरोधक क्षमता यानी इम्यूनिटी को कमजोर करती है और ऐसे में हवा में मौजूद बैक्टीरिया और वायरस के हमले के हम जल्दी शिकार हो जाते हैं, जबकि मजबूत रोग प्रतिरोधक क्षमता हमारी बैक्टीरिया और वायरस से रक्षा करती है।

रोग प्रतिरोधक क्षमता कमजोर होने के कारण गले की अंदरूनी परत बैक्टीरिया के लिए अधिक संवेदनशील होने लगती है और अधिक बैक्टीरिया जमा होने के लिए ग्रहणशील हो जाती है। वैसे भी कहा जाता है कि शरीर में सबसे अधिक बैक्टीरिया गले में जमा होने लगते हैं। इसके बाद ये बैक्टीरिया हमारे साउंड बॉक्स यानी स्वरतंत्र और ग्रसनी यानी गले के निचले सिरे पर हमला करते हैं। इसकी वजह से टॉन्सिल, टॉन्सिलाइटिस, लेरिंजाइटिस यानी स्वरतंत्र की सूजन और ग्रसनी में सूजन यानी फैरिन्जाइटिस की समस्या होने लगती है।

गले का इंफेक्शन और कोरोना

महामारी के इस चरण में ऐसे में लोग गले के इस संक्रमण को कोविड-19 कोरोना वायरस का इंफेक्शन मानने का भ्रम समझने लगते हैं. हम सभी को इसे समझना चाहिए कि गले में खराश के रोगी को गले में दर्द, सूखी खांसी, भोजन को चबाने में जलन, यहां तक कि पानी पीने में जलन, बोलने में कठिनाई और बुखार भी महसूस होता है।

इन बातों का ध्यान भी अवश्य रखना चाहिए

गले में खराश के दौरान केवल गले के क्षेत्र में दर्द होता है जबकि कोविड-19 में पूरे शरीर में थकान महसूस होती है।
बुखार इन दोनों ही मामलों में सामान्य लक्षण है लेकिन गले के संक्रमण में, एंटीबायोटिक्स का उपयोग करने से लक्षण कम हो जाते हैं, जबकि कोविड 19 जो कि वायरल ऑर्गन डिसीज है इसमें कोई भी एंटीबायोटिक्स काम नहीं करता है।

गले में होने वाली तकलीफ से बचाव के उपाय

वसंत ऋतु के दौरान, हमें अपने आहार में सावधानी रखनी चाहिए। अचानक से ठंडी खाने-पीने की चीजों को आहार में लेने से शरीर को गंभीर नुकसान होता है।

  • इस दौरान आइसक्रीम और अन्य डेयरी उत्पाद के उपयोग से बचें या कम करें।
  • ठंडे पानी के बजाय सामान्य तापमान के पानी या गर्म पानी का इस्तेमाल ही पीने में करना चाहिए।
  • आधा गिलास गर्म पानी में एक चुटकी नमक डालकर गरारे करने चाहिए।
  • एक चम्मच शहद में पिप्पली, काली मिर्च और सोंठ (अदरक पाउडर) जैसे मसाले मिलाकर लेने चाहिए। इससे शरीर की पाचन क्षमता बढ़ती है एवं शरीर के अंदर जमा अतिरिक्त कफ बाहर निकलने लगता है।
  • आधा चम्मच सौंठ यानी अदरक के पाउडर को गर्म पानी के साथ खाली पेट लेने से पाचन शक्ति नियंत्रित होती है और रोग प्रतिरोधक क्षमता बेहतर होती है।

गले की खराश और गले के संक्रमण से राहत दिलाने का आयुर्वेदिक नुस्खा

सितोपलादि चूर्ण, तालीसादि चूर्ण, तुलसी स्वरस, वासा स्वरस, त्रिकटु चूर्ण, यष्टिमधु (मुलेठी), गुडुसी घन वटी, त्रिफला + यष्टिमधु क्वाथ माला, इला, व्योशादि वटी, लवंगादि वटी आदि गले में किसी भी तरह के इंफेक्शन या गले में दर्द की समस्या से राहत देते हैं।

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