जीएसटी की विकृतियों को दूर करने हेतु कैट टीम द्वारा जीएसटी आयुक्त को सौपा ज्ञापन!
जीएसटी की विकृतियों को दूर करने हेतु कैट टीम द्वारा जीएसटी आयुक्त को सौपा ज्ञापन!

टीआरपी डेस्क। कन्फ़ेडरेशन ऑफ आल इंडिया ट्रेड (कैट) के पवन बड़जात्या, मोहम्मद अली हिरानी, प्रहलाद रुंगटा, संजय चौबे, रवि केवलतानी ने बता की जीएसटी भारत की अर्थव्यवस्था के लिए एक अनिवार्यता है और पूरी अर्थव्यवस्था जीएसटी पर ही निर्भर है।

इस समय जीएसटी के सम्बन्ध में जो स्तिथी चल रही है। उससे भारतवर्ष के व्यापारी वर्ग की स्थिती अब असहनीय हो गई है और आप इस पर तुरंत ध्यान देने और इसके लिए सुधारात्मक कदम उठाये जाने हेतु आज भारत सरकार के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नाम ज्ञापन जीएसटी आयुक्त एवं दुर्ग जिलाधीश को एक ज्ञापन व्यपारियों एवं व्यपारिक संगठनों के द्वारा सौपा गया।

इसी तारतम्य में प्रहलाद रुंगटा एवं बड़जात्या ने बताया की जीएसटी भारतीय उद्योग एवं व्यापार के लिए एक दीर्घकालीन समस्या बनकर इसे नुक्सान पहुंचायेगा। अब इनका संशोधन नहीं होने से अब व्यापारी वर्ग परेशान हो रहा है, जब कि यह कर सरकार को मिल भी चूका होता है। अब इसे फिर से वसूलना और उस पर ब्याज लेना ये केवल तकनीकी खामी के कारण व्यापार को दंड देना ही हुआ।

जब कि जीएसटी में प्रारम्भ से लेकर आज तक सरकार से भी कई तकनीकी गलतियां हुई है। जिसे भी लगातार अधिसूचनाएं एवं परिपत्र जारी कर सुधार करने की कोशिश की गई है। इसी कड़ी में मोहम्मद अली हिरानी एवं केवलतानी ने कहा की एक छोटी सी सुविधा व्यापारी वर्ग में देने में कहीं कोई भी परेशानी नहीं होनी चाहिए। इसे आप व्यापार एवं उद्योग की और से अनुरोध मान कर इस सुविधा देने का कष्ट करें.! गौर तलब है की जो राशि सरकार के खजाने में आ चुकी है। उस पर ब्याज लगाने का ना तो कोई औचित्य है ना ही कोई व्यवहारिक और आर्थिक तार्किकता और इस तरह से यह व्यापारिक वर्ग पर एक अनुचित बझ है। जीएसटी कानून भारत में एक सरल अप्रत्यक्ष कर कानून लाने के लिए लाया गया था लेकिन यह एक नया कानून था और गलतियां और देरी भी सभी पक्षों के द्वारा किया जाना स्वाभाविक है!

कैट के प्रदेश मिडिया प्रभारी संजय चौबे ने कहा की जीएसटी के कई प्रावधान ने भी व्यापारी वर्ग को बहुत परेशान कर रखा है। इस तरह की “कागजी मांग” खड़ी करना वह भी इस समय जब कि जीएसटी खुद ही प्रयोगात्मक दौर से गुजर रहा है व्यापारी वर्ग पर बोझ डालने का कोई तर्क नहीं है। जो पैसा कर के रूप में सरकार को मिल चुका है उस पर सिर्फ इसलिए ब्याज लगा देना कि उसे सेट ऑफ नहीं किया है, जो कि एक तकनीकी खामी है। उचित भी नहीं है और व्यवहारिक भी नहीं है। आयकर कानून में भी जो रकम चालान के द्वारा बैंक में जमा करा दी जाती है उसी तारीख से ही इसे जमा मान लिया जाता है। इसी तरह से ही जीएसटी में भी बैंक में राशि जमा करा देने से इसे जमा मान लिया जाना चाहिए।

पवन बड़जात्या एवं रुंगटा ने कहा की पहले जीएसटी नेटवर्क अपना काम तो करें। जीएसटी का नेटवर्क जीएसटी लागू होने के बाद कभी भी अच्छी तरह से काम नहीं कर पाया है। जीएसटी की अधिकांश परेशानियों का कारण यही जीएसटी नेटवर्क है। जिसकी गति एवं क्षमता को बढ़ाना अति आवशयक है और आप इस नेटवर्क को शीघ्र दुरुस्त करने का कष्ट करें ताकि जीएसटी की प्रक्रियाओं के पालन में व्यापारी वर्ग को परेशानी ना हो। जीएसटीएन एक राष्ट्रीय नेटवर्क है और इसके लगातार असफल होने को अब आंकड़ों से छुपाया नहीं जा सकता है। अत: आप जीएसटी नेटवर्क के सेवा प्रदाता को इस बात के लिए बाध्य करे कि जीएसटी नेटवर्क की गति एवं क्षमता इस तरह बढ़ाएं कि आने वाले 10 साल तक के बढे हुए काम को यह झेल सके जो कि सुचना प्रोद्योगिकी का एक मूल सिद्धांत होता है। जिसका पालन जीएसटी नेटवर्क की कार्यप्रणाली में नही किया गया है।

इंदिरा मार्केट व्यपारी संघ एवं कैट से जुड़े युवा व्यवसायी अनिल बल्लेवार, हेमू मोहनानी ने बताया की जीएसटी नेटवर्क की असफलता के लिए बार –बार यह प्रयास किये गए हैं। इसके लिए डीलर्स और प्रोफेशनल्स को जिम्मेदार ठहरा दिया जाए या उन्हें यह कहा जाए कि वे आखिरी दिनों में रिटर्न क्यों भरते हैं। आप यह मान कर चलिए कि यह कोई इस समस्या का कोई व्यवहारिक हल नहीं है और इसके लिए आपको जीएसटी नेटवर्क को मजबूत करना होगा ताकि डीलर्स इसका उपयोग करते हुए जीएसटी की प्रक्रियाओं का निर्बाध तरीके से पालन कर सके। जीएसटी नेटवर्क एक सुविधा होना चाहिए जब कि यह एक असुविधा में परवर्तित हो चुका है। जिसमें शीघ्र सुधार की आवश्यकता है और यदि वर्तमान में जो जीएसटीएन सेवा प्रदाता है उनके द्वारा यह सम्भव नहीं है।

तो आप उन्हें दूसरे सेवा प्रदाता से बदल दें जो कि खराब सेवा देने पर इस तरह सेवा प्रदाता बदल देने का व्यवहारिक नियम है और आप भी उसका जनहित में पालन करें। इस कारण से कई किस्म की परेशानियों का सामना व्यापारी वर्ग को करना पड़ रहा है अत; आप इस पर ध्यान दें कि किस उपाय से व्यापारी वर्ग को इस परेशानी से छुटकारा मिल सके। आज ज्ञापन सौपने वाले व्यपारियों में आशीष निमजे,सुशील बाकलीवाल, मनोज गोयल, अरविंद खंडेलवाल, सुनील जैन, राजेन्द्र शर्मा, श्रीकांत गाडगे, संतोष कुकरेजा, रवि केवलतानी, अमर कोटवानी, सुधीर खंडेलवाल, सहित बड़ी संख्या में व्यपारी एवं व्यपारिक संगठनों से जुड़े लोग शामिल रहे। साथ ही सभी ने एक स्वर में मांग करते हुए कहा की आशा है इन सुझावों पर प्रधानमंत्री सकारात्मक सोच के साथ विचार करेंगे और इसी भावना के साथ भारत के उद्योग एवं व्यापार की जीएसटी से जुडी समस्याओं को हल करने का आदेश देकर भारत के उद्योग एवं व्यापार को भारत की अर्थ व्यवस्था में योगदान देने का पूरा अवसर देंगे।

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