टीआरपी डेस्क। भारत के मुख्य न्यायाधीश रंजन गोगोई शुक्रवार को उच्चतम न्यायालय के कक्ष संख्या

एक में अंतिम बार बैठे। रविवार 17 नवंबर को वे रिटायरमेंट लेंगे पर उन्हें हमेशा ऐसे जज के तौर पर जाना

जाएगा जो कड़े फैसले लेने में जरा भी नहीं चूका।

 

सालों से लंबित अयोध्या विवाद का निपटारा हो या असम में एनआरसी लागू करवाने, जस्टिस गोगोई ने

अपनी छवि के मुताबिक काम किया। न खुद कोई मसला टाला, न सरकारी एजेंसियों को उसे लटकाने दिया।

 

न्यायमूर्ति गोगोई कड़े और कभी-कभी चौंकाने वाले फैसले देने को लेकर जाने जाते हैं लेकिन अयोध्या मामले में

उन्होंने तय किया कि दलीलों को लंबे समय तक खींचे जाने की इजाजत नहीं दी जाएगी।

 

उन्होंने 161 साल से लंबित रामजन्म भूमि के विवाद का शानदार निपटारा किया।  उन्होंने मंदिर के लिए भूमि जरूर

हिन्दू पक्ष को दी बल्कि मुस्लिम पक्ष को भी सांत्वना स्वरूप मस्जिद के लिए पांच एकड़ जमीन देने का आदेश दिया।

 

इस केस की सुनवाई उन्होंने बहुत ही संतुलित ढंग से की और जल्द निपटाने के लिए सुनवाइयां शनिवार को भी कीं।

खास बात यह है कि इस मुद्दे का फैसला भी उन्होंने शनिवार 9 नवंबर को दिया। दूसरा फैसला राफेल लड़ाकू विमान

की खरीद पर सरकार को क्लीन चिट देने का है। इसमें एक बार नहीं बल्कि दो बार उन्होंने सरकार को क्लीन चिट दी।

 

जब जस्टिस काटजू को कोर्ट में बुला लिया

जस्टिस गोगोई के मुख्य न्यायाधीश बनने से पहले ही उनकी सख्त छवि उस वक्त उभरकर सामने आई थी, जब

उन्होंने शीर्ष अदालत के पूर्व जज जस्टिस मार्कंडेय काटजू को अवमानना के एक मामले में कोर्ट में तलब कर लिया।

जस्टिस काटजू ने केरल के सौम्या बलात्कार कांड में कोर्ट के फैसले की बेहद तल्ख लहजे में आलोचना की थी।

 

जस्टिस गोगोई ने इसे अदालत की अवमानना की तरह लिया और काटजू को कोर्ट में पेश होने के लिए नोटिस जारी

कर दिया। इतिहास में ऐसा पहली बार हुआ, जब सुप्रीम कोर्ट का कोई पूर्व जज कोर्ट में इस तरह से पेश हुआ हो।

हालांकि, बाद में वकीलों की दरख्वास्त पर जस्टिस गोगोई ने काटजू को चेतावनी देकर जाने दिया।

 

जजों की रिक्तयां पूरी कीं

जस्टिस गोगोई के कार्यकाल के दौरान दस सालों में यह पहला मौका आया था कि उच्चतम न्यायालय में जजों की

एक भी रिक्ति नहीं रही। उनके कार्यकाल में कोर्ट में सभी 34 पदों पर जजों की नियुक्ति की गई।

 

इन बड़े फैसलों के लिए याद किए जाएंगे

 

मुख्य न्यायाधीश का कार्यालय आरटीआई के दायरे में

मुख्य न्यायाधीश रंजन गोगोई की नेतृत्व वाली पीठ ने मुख्य न्यायाधीश के कार्यालय को सूचना के अधिकार

(आरटीआई) के दायरे में आने को लेकर फैसला सुनाया। इसमें कोर्ट ने कहा कि मुख्य न्यायाधीश का कार्यालय

भी पब्लिक अथॉरिटी है। लिहाजा यहां भी आरटीआई के तहत जानकारी मांगी जा सकती है।

 

सबरीमाला मामला सात सदस्यीय बेंच को भेजा

रंजन गोगोई के नेतृत्व वाली 5 न्यायमूर्तियों की संविधान पीठ ने सबरीमाला मंदिर में महिलाओं के प्रवेश के

खिलाफ दायर पुनर्विचार याचिका पर सुनवाई की। साथ ही मामले को सात सदस्यीय बड़ी बेंच को भेज दिया।

इस दौरान कोर्ट ने यह भी कहा कि केरल के प्रसिद्ध सबरीमाला मंदिर में महिलाओं का प्रवेश जारी रहेगा।

जैसा कि कोर्ट 2018 में दिए अपने फैसले में कह चुका है।

 

सरकारी विज्ञापन में नेताओं की तस्वीर पर पाबंदी

मुख्य न्यायाधीश गोगोई और पीसी घोष की पीठ ने सरकारी विज्ञापनों में नेताओं की तस्वीर लगाने पर पाबंदी लगा

दी थी। कोर्ट के फैसले के बाद से सरकारी विज्ञापन में राष्ट्रपति, प्रधानमंत्री, मुख्य न्यायाधीश, संबंधित विभाग के

केंद्रीय मंत्री, राज्यपाल, मुख्यमंत्री, संबंधित विभाग के मंत्री के अलावा किसी भी नेता की सरकारी विज्ञापन पर

तस्वीर प्रकाशित करने पर पाबंदी है।

 

अंग्रेजी और हिंदी समेत 7 भाषाओं में फैसला

अंग्रेजी और हिंदी समेत 7 भाषाओं में कोर्ट के फैसलों को प्रकाशित करने का फैसला गोगोई ने ही लिया। इससे

पहले तक शीर्ष अदालत के फैसले सिर्फ अंग्रेजी में ही प्रकाशित होते थे। अब फैसले अंग्रेजी और हिंदी समेत 7

भाषाओं में आएंगे। कई बार किसी मामले के पक्षकार अंग्रेजी भाषा को समझ नहीं पाते थे और उनकी मांग होती

थी कि उनको उस भाषा में फैसले की कॉपी मुहैया कराई जाए, जिसको वो बोलते और पढ़ते हैं।

 

परिचय

– 18 नवंबर, 1954 को जन्मे जस्टिस रंजन गोगोई ने 1978 में बार काउंसिल से जुड़े थे।
– 3 अक्तूबर 2018 को बतौर मुख्य न्यायाधीश उन्होंने पदभार ग्रहण किया।
– शुरुआत गुवाहाटी हाईकोर्ट से की, 2001 में गुवाहाटी हाईकोर्ट में जज भी बने।
– पंजाब और हरियाणा हाईकोर्ट में बतौर जज 2010 में नियुक्त हुए।
– 2011 में वह पंजाब-हरियाणा हाईकोर्ट के मुख्य न्यायाधीश बने।
– 23 अप्रैल, 2012 को जस्टिस रंजन गोगोई उच्चतम न्यायालय के जज बने।

 

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