-श्याम वेताल

राज्यसभा अर्थात उच्च सदन जो राजनीतिक, सामाजिक मूल्यों तथा सांस्कृतिक विविधता का पोषण करने वाली एक संस्था है। इसके सदस्य वे होते हैं जो जनप्रतिनिधियों के भी प्रतिनिधि होते हैं। माना जाता है कि राज्यसभा के सदस्य अतिशालीन, बुद्धिमान तथा तार्किक मेधा के धनी और समाज के लिए एक आदर्श नेता होते हैं। ऐसे गुणी लोगों के आचरण पर अगर उंगली उठाई जाती है तो सभी को हैरानी होना स्वाभाविक है। उंगली उठाने वाले और कोई नहीं बल्कि स्वयं राज्यसभा के सभापति हैं इसलिए अविश्वास का कोई प्रश्न ही नहीं उठता।

जुलाई के अंतिम सप्ताह में पेगासस मामले पर विरोध पक्ष की ओर से सदन की कार्रवाई में बराबर बाधा डाली जा रही थी। इसी दौरान कुछ सदस्यों ने सीटियां बजाई जो सदन के अन्य सदस्यों को भी नागवार लगीं। इस अशोभनीय कृत्य की जानकारी सभापति वेंकैया नायडू को भी दी गयी जो उस समय सदन में मौजूद नहीं थे।

बाद में उन्होंने सदन में आकर इस कृत्य पर अपनी नाराजगी व्यक्त की और चिंता जताते हुए कहा कि इससे सदन की मर्यादा और प्रतिष्ठा गिरी है। उन्होंने चेतावनी देते हुए कहा कि धैर्य की भी एक सीमा होती है और हमें सदन के धैर्य को समाप्त नहीं होने देना चाहिए। सदन को बाजार न बनने दें।

इससे पूर्व, सूचना प्रौद्योगिकी एवं संचार मंत्री अश्विनी वैष्णव सदन के हो – हल्ले के बीच पेगासस मामले पर बयान दे रहे थे तब तृण मूल कांग्रेस के एक सांसद ने उनके हाथ से कागज छीन कर फाड़ दिए थे।

अब प्रश्न उठता है कि इतने गुणी और बुद्धिमान सदस्यों वाले सदन में सीटी बजाने जैसी घटिया हरकत करने की सोच कैसे पैदा हुई ? क्या सदस्यों ने सदन को सिनेमा हाल समझ लिया या किसी रियलिटी शो का प्लेटफार्म कि सीटी बजाकर अपनी ख़ुशी या विरोध जाहिर कर लें ?

विरोध करने का ये कौन सा नया तरीका ईजाद कर लिया गया है ? क्या यह कृत्य उच्च सदन की मर्यादा के अनुकूल है ? सत्ता पक्ष के कान में विरोध की आवाज नहीं पहुंच रही है या वह आपके विरोध को महत्व नहीं दे रहा है तो कोई और तरीका अपनाएं जो आपकी प्रतिष्ठा के अनुकूल हो। मंत्री के हाथ से कागज छीन कर फाड़ना भी गंभीर दुराचरण है।

बहरहाल,जनप्रतिनिधियों के आचरण में गिरावट आना चिंता का विषय है और इस पर राजनीतिक दलों को मनन करना होगा क्योंकि इस पर यदि रोक नहीं लगाई गयी तो हो सकता है कि आने वाले समय में विरोध व्यक्त करने के लिए गाली-गलौज और हाथापाई होने लगे।

पिछले साल सितम्बर महीने में राज्यसभा को अनिश्चित काल के लिए स्थगित करते हुए अपने समापन भाषण में सभापति वेंकैया नायडू ने कहा था कि यद्यपि विरोध करना विपक्ष का हक़ है फिर भी प्रश्न यही है कि इस अधिकार का प्रयोग कैसे और किस पद्धति से किया जाना चाहिए। सभापति ने याद दिलाया कि 1997 और 2012 में सदन ने यह संकल्प लिया था कि सभी सदस्य सदन के नियमों और प्रणालियों का पालन करेंगे तथा सदन की गरिमा बनाये रखेंगे।

आश्चर्य होता है कि सांसदों को बार-बार यह बताया जाता है कि उच्च सदन की गरिमा बनाये रखना उनकी पहली और अहम् जिम्मेदारी है। बावजूद इसके, वे आवेश में ऐसी हरकत करते हैं कि उनकी जग हंसाई होती है। कई बार तो लगता है कि वे निगेटिव पब्लिसिटी पाने के लिए ऐसा करते हैं।

यही हाल विधानसभाओं का भी है। विधानसभाओं का इतिहास भी ऐसी घटनाओं से भरा पड़ा है। विधानसभाओं में भाषा की मर्यादा का भी हनन हो रहा है तभी मध्यप्रदेश में विधायकों के लिए गाइडलाइन जारी की जा रही है जिसमे करीब 300 ऐसे शब्द चुने गए हैं जिन्हे असंसदीय बताया गया है और जिनका उच्चारण वर्जित होगा। इनमें ‘पप्पू’ और ‘फेकू’ जैसे शब्द शामिल हैं।

-टीआरपी ​के लिए विशेष आलेख

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