रेमडेसिविर इंजेक्शन

टीआरपी डेस्क। देशभर में एक महीने पहले तक रेमडेसिविर इंजेक्शन की मारा मारी मची थी। इस दवा की ब्लैक मार्केटिंग के चलते तब रेमडेसिविर मिलना भी मुश्किल था। अब उत्तर प्रदेश के कानपुर में रेमडेसिविर की कमी के पीछे एक अस्पताल प्रशासन की ही मिलीभगत सामने आई है। बताया गया है कि कानपुर के हैलट अस्पताल में कोविड वॉर्ड में तैनात नर्सिंग स्टाफ ने मुर्दों के नाम पर कई दिनों तक रेमडेसिविर इंजेक्शन स्टोर से निकलवाए और जिनको असल में इस इंजेक्शन की जरूरत थी, उन्हें ये मिले तक नहीं।

स्टोर से लिए गए मृत मरीजों के नाम पर रेमडेसिविर के कई इंजेक्शन

नर्सिंग स्टाफ आमतौर पर रेमडेसिविर इंजेक्शन डॉक्टरों की ओर से पर्चे जारी करवा कर निकलवाता है। लेकिन न्यूरो साइंसेज विभाग की जांच में सामने आया कि रेमडेसिविर के कई इंजेक्शन मृत मरीजों के नाम पर स्टोर से लिए गए। यानी किसी कोरोना मरीज की मौत के बाद भी उसके नाम पर रेमडेसिविर अलॉट होते रहे। अब इस फर्जीवाड़े का खुलासा होने के बाद मामले में कई बड़े नामों के उजागर होने की आशंका जताई गई है।

कैसे हुआ मामले का खुलासा?

30 अप्रैल को क्राइम ब्रांच की टीम ने हैलट के दो कर्मचारियों को रेमडेसिविर इंजेक्शन की कालाबाजारी करते रंगेहाथ दबोचा था। इसके बाद जब अमर उजाला अखबार ने हैलट सरकारी अस्पताल के रिकॉर्ड खंगाले तो सामने आया कि यहीं से रेमडेसिविर की भारी हेराफेरी हुई।

बताया गया कि डॉक्टरों के हस्ताक्षर वाले पर्चों के जरिये नर्सिंग स्टाफ और वार्ड ब्वॉय स्टोर से कोरोना से मृत लोगों के नाम से भी रेमडेसिविर इंजेक्शन ले आते थे। आशंका है कि वे इन इंजेक्शन्स को भारी मुनाफे में बेच देते थे। न्यूरो साइंसेज विभाग के एक कर्मचारी ने अखबार को बताया कि अगर हैलट के सभी कोविड वॉ़र्डों के रिकॉर्ड निकाल लिए जाएं, तो फर्जीवाड़े में कई कर्मचारियों के नाम सामने आ जाएंगे।

मेडिकल कॉलेज ने बिठाई जांच कमेटी

इस मामले में कानपुर के गणेश शंकर विद्यार्थी मेडिकल कॉलेज के प्राचार्य डॉक्टर आरबी कमल ने जांच बिठा दी है। उन्होंने न्यूज एजेंसी एएनआई को बताया कि रेमडेसिविर की ब्लैक मार्केटिंग और मृत लोगों के नाम पर इंजेक्शन अलॉट करने की घटना का संज्ञान लिया गया है। इसके लिए एक जांच समिति का गठन किया गया है, जो कि डेटा जुटाने के साथ इंजेक्शन के फर्जी आवंटन के आरोपों की पुष्टि करेगी।

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