कलिंगा यूनिवर्सिटी में 'भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन में आदिवासी विद्रोह की भूमिका' पर संगोष्ठी का आयोजन, बतलाया इतिहास
कलिंगा यूनिवर्सिटी में 'भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन में आदिवासी विद्रोह की भूमिका' पर संगोष्ठी का आयोजन, बतलाया इतिहास

रायपुर। मध्य भारत का एक प्रतिष्ठित शैक्षणिक संस्थान कलिंगा विश्वविद्यालय में शुक्रवार को शहीद वीरनारायण सिंह शोधपीठ के द्वारा ‘‘भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन में आदिवासी विद्रोह की भूमिका’’ विषय पर संवाद संगोष्ठी का आयोजन किया गया। विद्यार्थियों में वैश्विक मापदंड के अनुरूप नयी खोज को विकसित करने के लिए उच्च गुणवत्तापूर्ण एवं शोधपरक शिक्षा प्रदान कलिंगा विश्वविद्यालय हमेशा ही आगे रहा है, इसी तारतम्य में विश्वविद्यालय के शहीद वीरनारायण सिंह शोधपीठ के द्वारा आयोजित ‘‘भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन में आदिवासी विद्रोह की भूमिका’’ विषय पर संवाद संगोष्ठी का आयोजन किया गया।

रचनात्मक रुचि जागृत करते शोधपीठ

विदित हो कि छत्तीसगढ़ के गौरवशाली इतिहास, कला और संस्कृति को नए सिरे से उजागर करने के लिए कलिंगा विश्वविद्यालय में शहीद वीरनारायण सिंह शोधपीठ की स्थापना की गयी है। शहीद वीरनारायण सिंह शोधपीठ के द्वारा छत्तीसगढ़ के इतिहास, कला एवं संस्कृति से जुड़े विभिन्न पक्षों पर विद्यार्थियों की रचनात्मक रुचि जागृत करते हुए उनके माध्यम से नए शोध और नयी खोज के लिए प्रेरित किया जाता है।

क्रांतियों का सूत्रपात आदिवासी समाज- पीयूष कुमार

भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के ढ़ाई सौ वर्षों के इतिहास में अनेकों क्रांतियों का सूत्रपात आदिवासी समाज के द्वारा किया गया है। इसी श्रृंखला में आयोजित इस संवाद संगोष्ठी कार्यक्रम में मुख्य वक्ता के रुप में छत्तीसगढ़ के प्रमुख साहित्यकार और शासकीय महाविद्यालय रामचंद्रपुर के प्रभारी प्राचार्य पीयूष कुमार उपस्थित थें।

संस्कृति और परंपराओं से जुड़े हुए होते है आदिवासी

उक्त कार्यक्रम में मुख्य वक्ता ने कहा कि भारतीय स्वतंत्रता संग्राम में आदिवासी समाज की महत्वपूर्ण भूमिका रही है। आदिवासी सरल, सहज और शांतिप्रिय होते हैं। वह अपनी संस्कृति और परंपराओं से गहरे जुड़े हुए होते हैं। भारतवर्ष के दमनकारी विदेशी शासकों ने जब भी उनके अधिकारक्षेत्र में हस्तक्षेप किया या दमनकारी नीति बनाया, तब उन्होंने संगठित होकर उसका तीव्र विरोध किया है।

गौरवशाली अतीत और वर्तमान काल में भूमिका

उक्त संगोष्ठी के संयोजक एवं शोधपीठ के अध्यक्ष डॉ. अजय शुक्ल ने कहा कि आदिवासी समाज अपनी श्रेष्ठ संस्कृति और उत्कृष्ट परंपरा से जानी जाती है। किसी भी जागरुक समाज की पहचान उसके गौरवशाली अतीत और वर्तमान काल में उसकी भूमिका से तय होती है। प्रकृतिप्रेमी आदिवासी समाज का जीवन उनकी संस्कृति के साथ जल, जंगल और जमीन से जुड़ा हुआ है।

छत्तीसगढ़ के इतिहास में इस समाज ने शहीद वीरनारायण सिंह जैसे सपूत देकर सिर्फ प्रदेश को ही नहीं बल्कि देश को भी गौरवान्वित किया है। जिन्होंने राजसिंहासन त्याग कर देशहित में अपने प्राणों की आहुति देकर देशवासियों का एक नया संदेश दिया है।

यह सभी हुए कार्यक्रम में उपस्थित

उक्त संवाद गोष्ठी कार्यक्रम के उपरांत कला एवं मानविकी संकाय की अधिष्ठाता डॉ. शिल्पी भट्टाचार्य ने मुख्य वक्ता के प्रति धन्यवाद ज्ञापन प्रस्तुत किया। कार्यक्रम में डॉ.अनिता सामल, चंदन सिंह राजपूत, मुकेश रावत, डॉ. ए. विजय आनंद, डॉ. नम्रता श्रीवास्तव, सबलुम पाणी, मेरिटा जगदल्ला के साथ कला एवं मानविकी संकाय के समस्त प्राध्यापक, कर्मचारी एवं विद्यार्थी उपस्थित थें।

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