सुप्रीम कोर्ट

टीआरपी डेस्क। सुप्रीम कोर्ट ने निर्देश दिया है कि अदालतों को किसी आरोपी को जमानत देने के दौरान इस बात की पड़ताल कर लेनी चाहिए कि क्या उसका रिकार्ड खराब है? क्या वह जमानत पर रिहा होने पर गंभीर अपराधों को अंजाम दे सकता है?

इन टिप्‍पणियों के साथ ही न्यायमूर्ति धनंजय वाई चंद्रचूड और न्यायमूर्ति एमआर शाह की पीठ ने पंजाब हरियाणा हाईकोर्ट की ओर से हत्या और आपराधिक षड्यंत्र के आरोपों का सामना कर रहे एक आरोपी को दी गई जमानत को रद्द कर दिया।

शीर्ष अदालत ने अपने पूर्व के फैसलों का जिक्र करते हुए कहा कि जमानत से इनकार कर स्वतंत्रता से वंचित रखने का मकसद न्याय के हितों पर आधारित है। जमानत याचिका देने वाले आरोपी के पिछले जीवन के बारे में पड़ताल करना तार्किक है। इससे अनुमान लगाने में सहूलियत होती है कि जमानत पर बाहर आने के बाद आरोपी कहीं गंभीर अपराधों को अंजाम तो नहीं देगा।

सुप्रीम कोर्ट ने उक्‍त टिप्पणियां पंजाब-हरियाणा हाईकोर्ट के हत्या और आपराधिक षड्यंत्र के आरोपी को जमानत देने के फैसले पर की। सर्वोच्‍च अदालत ने हाईकोर्ट के उक्‍त फैसले के खिलाफ अपील पर सुनवाई की। हाईकोर्ट ने जालंधर के सदर पुलिस थाने में भारतीय दंड संहिता की धारा-302 (हत्या), 120-बी (आपराधिक षड्यंत्र), 34 (साझा मंशा), 201 (सबूत मिटाना) और शस्त्र कानून, 1959 की धारा-25 के तहत दर्ज की गई प्राथमिकी के मामले में आरोपी को जमानत दे दी थी जिसे सर्वोच्‍च अदालत ने रद कर दिया।

सर्वोच्‍च न्‍यायालय (Supreme Court) ने यह भी कहा कि पंजाब और हरियाणा हाईकोर्ट ने आरोपी के खिलाफ आरोपों की प्रकृति और दोषसिद्धि के मामले में सजा की गंभीरता के साथ ही सबूतों की प्रकृति पर विचार नहीं किया था।

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