रायपुर/जशपुर। राज्य के सीमावर्ती जशपुर जिले के पठारी क्षेत्र स्थित सारूडीह चाय बागान

की महक दूरदराज तक जहां तेजी से फैलने लगी है, वहीं इसमें कार्यरत महिला समूहों की

आमदनी भी दिनों-दिन बढ़ने लगी है। इस तरह चाय बागान ने समूह की महिलाओं के

जीवन में मिठास घोल दी है।

 

बता दें कि जशपुर नगर वनमंडल के अंतर्गत सारूडीह चाय बागान स्व-सहायता समूह

द्वारा चाय की खेती की जा रही है। यह समूह घुरवा कोना की 20 एकड़ भूमि में चाय की

खेती करता है। समूह की महिलाओं ने बताया कि इसकी पहली फसल में ही कुल दो लाख

रूपए की चाय का उत्पादन हुआ है।

 

 

वर्ष 2011 में स्थापित किया गया था चाय बागान :

प्रधान मुख्य वन संरक्षक राकेश चतुर्वेदी ने बताया कि यह चाय बागान वर्ष 2011 में स्थापित

किया गया था। कतिपय कारणों से यह कुछ वर्षो तक बंद पड़ा रहा। वर्ष 2017 से इसे पुनः

शुरू किया गया है। यहां चाय बागान में महिलाओं के दो समूह कार्य करते हैं। एक समूह

मुख्य रूप से उत्पादन तो दूसरा समूह विपणन और प्रसंस्करण का काम देखता हैै। इनमें

लक्ष्मी स्व-सहायता समूह की अध्यक्ष मधु एक्का हैं और सारूडीह स्वसहायता की अध्यक्ष

एम्बाबुलेटा तिर्की हैं।

 

लक्ष्मी समूह की सचिव पूर्णिमा बताती हैं कि विगत आठ माह में वे लोग करीब 10 क्विंटल

चाय का हरा पत्ता तोड़े हैं। लगभग पांच किलो हरी चायपत्ती सूखकर-सिर्फ एक किलो चायपत्ती

बनती है। समूह द्वारा तोड़ी गई 10 क्विंटल चायपत्ती सूखकर दो क्विंटल हुई है। इस पत्ती से समूह

द्वारा तैयार ग्रीन टी को दो हजार रुपए प्रति किलो ग्राम तथा सीटीसी चाय को 400 रुपए प्रति

किलो ग्राम की दर से बिक्री की जा रही हैै। कुल मिलाकर अभी तक दोनों महिला समूहों

द्वारा पहली फसल में ही दो लाख रूपए की चायपत्ती का उत्पादन किया जा चुका है।

 

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