भैंस चराते मिले बच्चे को कलेक्टर ने कराया स्कूल में दाखिल
भैंस चराते मिले बच्चे को कलेक्टर ने कराया स्कूल में दाखिल

सुकमा। दोरनापाल में रहने वाले बालक कारम दुला को गांधी जंयती पर जीवन का अनमोल तोहफा मिला। अब यह बालक बस्ता लिए अपना भविष्य संवारेगा। दरअसल इस बालक के स्कूल में पढाई करने की बजाय भैंस चराने की खबर प्रकाश में आयी थी, जिसकी जानकारी मिलते ही सुकमा कलेक्टर विनीत नंदनवार ने बालक को तत्काल स्कूल में दाखिला दिलाने का आदेश दिया।

दोरनापाल के कोटवार पारा में निवासरत कारम गंगा के परिवार के लिए गांधी जयंती का दिन बापू के आशिर्वाद के रुप में आया। उनके घर के चिराग को स्कूल में दाखिला जो मिल गया। कलेक्टर विनीत नन्दनवार के निर्देश पर 07 वर्षीय कारम दुला को नवीन प्राथमिक शाला पटेलपारा, दोरनापाल में कक्षा पहली में प्रवेश दिलाया गया है।
इसके साथ ही बालक को निःशुल्क स्कूल ड्रेस एवं पुस्तक भी प्रदान किया गया है। अब कारम दुला भी स्कूल का बस्ता लिए अपने सहपाठियों संग नियमित रुप से स्कूल जाकर अपना भविष्य गढ़ेगा।

दो दिन पहले ही मिडिया में खबर आयी कि 07 वर्ष का कारम दुल्ला को स्कूल भेजने की बजाय उसे भैंस चराने के लिए लगा दिया गया है। दोरनापाल वार्ड क्रमांक 5 के सात वर्षीय कारम दुला ने बताया कि वह सुबह भैसों को लेकर जंगल चला जाता है, वहां से शाम 5 बजे वापस आता है। वह एक छोटी सी पॉलीथिन में खाना लेकर भी जाता है।
मिडिया के माध्यम से प्रशासन की नजर एक ऐसे बालक पर पड़ी, जिसके माता पिता घर की आर्थिक स्थिति कमजोर होने के कारण अपने लाडले का दाखिला स्कूल में नहीं करवा सके थे। स्कूल जाकर अक्षर ज्ञान सीखने की बजाय वह घर के कामों में हाँथ बटाता और घर के पशुओं को भी चराने निकल जाता।

कलेक्टर के निर्देश पर तत्काल सक्रिय हुए अधिकारी

सुकमा कलेक्टर विनीत नंदनवार के निर्देश पर शिक्षा विभाग द्वारा तत्काल बालक के परिजनों की पड़ताल की गई। इस दौरान पता चला कि कारम दुला के पिता कारम गंगा मूलतः ओडिशा के निवासी हैं जो मजदूरी करने ग्राम पंचायत दुब्बाटोटा के आश्रित ग्राम फायदागुड़ा में अपने ससुर के यहाँ मय परिवार में रहते हैं। बरसात के बाद से उनका परिवार दोरनापाल कोटवारपारा में अस्थाई रुप से निवासरत हैं।

कलेक्टर नन्दनवार के निर्देश पर शिक्षा विभाग द्वारा त्वरित कार्यवाही करते हुए बालक कारम दुला को प्राथमिक शाला में दाखिल किया गया। यहां उसे किताब के साथ स्कूल ड्रेस भी दिया गया। वही उसके परिजनों को समझाइश दी गई कि वे बच्चे को जानवर चराने भेजने की बजाय अब नियमित रूप से स्कूल भेजें।

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