नई दिल्ली। लॉकडाउन में एक ओर लाखों प्रवासी मजदूर परेशान हैं। इन मजदूरों के लिए केंद्र और राज्य सरकार के अलग-अलग दावा कर रहे हैं। केंद्र सरकार और भाजपा नेता ये दावा कर रहे हैं कि उन्हें गृह ग्राम पहुंचाने के लिए रेलवे परिवहन का 85 फीसदी खर्चा केंद्र सरकार उठाती है। साथ ही 15 फीसदी खर्च का वहन राज्य सरकारों को करना होगा। हालांकि इस संबंध में अभी तक सरकार की ओर से कोई आधिकारिक आदेश या निर्देश जारी नहीं किया गया है।

केवल सोशल मीडिया में प्रचार

सोशल मीडिया के जरिये ही भाजपा के कई नेता और प्रवक्ता इसका प्रचार कर रहे हैं। वहीं दूसरी तरफ मजदूरों को इस महामारी में भी करीब-करीब पहले जितना ही किरया देना पड़ रहा है। मंगलवार को यह मामला सुप्रीम कोर्ट में भी उठा था। जजों ने केंद्र सरकार के वकील से सवाल किया कि क्या श्रमिकों के लिए ट्रेन यात्रा का 85 फीसदी हिस्सा केंद्र सरकार दे रही है?

वहीं इस सवाल के संबंध में क्रेंद्र के वकील ने किसी भी तरह का जवाब देने से इंकार कर दिया। सरकार ने यह भी नहीं स्पष्ट किया कि मजदूरों को केंद्र व राज्य सरकार कितनी सब्सिडी दे रही है। प्रवासी मजदूरों से कितनी राशि की वसूली की जा रही है।

किराये के संबंध में खुलासा करने का नहीं मिला निर्देश

आपको बता दें कि समाजिक कार्यकर्ता जगदीप छोकर ने सुप्रीम कोर्ट में जनहित याचिका दायर कर लॉकडाउन में फंसे प्रवासी मजदूरों, छात्रों इत्यादि को कोरोना जांच के बाद उन्हें उनके घर वापस लौटने की इजाजत देने की मांग की थी।

याचिकाकर्ता के वकील प्रशांत भूषण ने जस्टिस अशोक भूषण, संजय किशन कौल और बीआर गवई की पीठ से कहा कि प्रवासियों की स्थिति बेहद दयनीय है और वे किराया वहन करने की स्थिति में नहीं हैं। जस्टिस कौल ने मेहता से सवाल किया कि क्या केंद्र वाकई 85 फीसदी किराये का भुगतान कर रही है? इस पर सॉलिसिटर जनरल कोई जवाब नहीं दिया। साथ ही उन्होंने जवाब दिया कि उन्हें इस बात का खुलासा करने का ‘निर्देश’ नहीं मिला है।

सुप्रीम कोर्ट के तीन जजों की इस पीठ ने याचिका पर लिखित आदेश पारित करते हुए कहा कि याचिकाकर्ता द्वारा फंसे हुए लोगों को घर भेजने की मांग को केंद्र सरकार ने पूरा किया है। हालांकि कोर्ट ने प्रवासी मजदूरों से किराया वसूलने के मामले में किसी प्रकार का आदेश जारी नहीं किया है।

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