टीआरपी डेस्क। भारत के स्वतंत्रता संग्राम के महान नायक नेताजी सुभाषचंद्र बोस की आज जयंती है। 23 जनवरी को ही उनका जन्म हुआ था। उन्होंने न सिर्फ देश की आजादी में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई, बल्कि आजाद हिंद फौज का गठन करके अंग्रेजी सेना को खुली चुनौती दी। नेताजी का पूरा जीवन युवाओं के लिए प्रेरक है।

आइए जानते हैं उनके जीवन से जुड़ी कुछ अहम बातें।

दुनिया नेता जी सुभाष चंद्र बोस को कांग्रेस के योद्धा के रूप में जानती है लेकिन उनके जीवन से जुड़े कुछ अनछुए पहलू भी हैं जिन्हें लेकर आज भी रहस्य बरकरार है। लोग नेता जी की प्रेम कहानी से भी कम ही वाकिफ हैं।

ये अनूठी प्रेम कहानी 1934 में शुरू हुई जब सुभाष चंद्र बोस ऑस्ट्रिया की राजधानी विएना में थे। सविनय अवज्ञा आंदोलन के दौरान फरवरी, 1932 में जेल में बंद सुभाष चंद्र बोस की तबीयत ख़राब होने लगी तो ब्रिटिश सरकार ने उनको इलाज के लिए यूरोप भेज दिया हालांकि इलाज का खर्च उनके परिवार को ही उठाना पड़ा।

विएना में इलाज कराने के साथ ही उन्होंने तय किया कि वे यूरोप रह रहे भारतीय छात्रों को आज़ादी की लड़ाई के लिए एकजुट करेंगे।

यहां हुई पहली मुलाकात

इसी दौरान उन्हें एक यूरोपीय प्रकाशक ने ‘द इंडियन स्ट्रगल’ किताब लिखने का काम सौंपा। इसके लिए उन्हें एक सहयोगी की ज़रूरत महसूस हुई, जिसे अंग्रेजी के साथ साथ टाइपिंग भी आती हो। इंटरव्यू के दौरान उम्मीदवार एमिली शेंकल (23) को बुलाया गया और बोस ने इस ख़ूबसूरत ऑस्ट्रियाई युवती को जॉब दे दी।

एमिली ने जून, 1934 से सुभाष चंद्र बोस के साथ काम करना शुरू कर दिया।1934 में सुभाष 37 साल के थे और इस मुलाकात से पहले उनका सारा ध्यान अपने देश को अंग्रेजों से आज़ाद करने पर था।

सुभाष चंद्र बोस के बड़े भाई शरत चंद्र बोस के पोते सुगत बोस ने सुभाष चंद्र बोस के जीवन पर ‘हिज़ मैजेस्टी अपोनेंट- सुभाष चंद्र बोस एंड इंडियाज स्ट्रगल अगेंस्ट एंपायर’ किताब में लिखा है कि एमिली से मुलाकात के बाद सुभाष के जीवन में नाटकीय परिवर्तन आया।

सुगत बोस के मुताबिक इससे पहले बोस को प्रेम और शादी के कई ऑफ़र मिले थे, लेकिन उन्होंने किसी में दिलचस्पी नहीं ली थी लेकिन एमिली की ख़ूबसूरती ने सुभाष पर मानो जादू सा कर दिया था।

नेताजी ने किया ​था प्रपोच

सुगत बोस ने अपनी पुस्तक में एमिली के हवाले से लिखा है, “प्यार की पहल सुभाष चंद्र बोस की ओर से हुई थी और धीरे-धीरे हमारे रिश्ते रोमांटिक होते गए।1934 के मध्य से लेकर मार्च 1936 के बीच ऑस्ट्रिया और चेकेस्लोवाकिया में रहने के दौरान हमारे रिश्ते मधुर होते गए।

“26 जनवरी, 1910 को ऑस्ट्रिया के एक कैथोलिक परिवार में जन्मी एमिली के पिता को ये पसंद नहीं था कि उनकी बेटी किसी भारतीय के यहां काम करे लेकिन जब वे लोग सुभाष चंद्र बोस से मिले तो उनके व्यक्तित्व के कायल हुए बिना नहीं रहे।

खतों में होते थे इजहार

एक-दूसरे को लिखे खतों में दोनों एक दूसरे के लिए जिस संबोधन का इस्तेमाल करते हैं, उससे ये ज़ाहिर होता है। एमिली उन्हें मिस्टर बोस लिखती हैं, जबकि बोस उन्हें मिस शेंकल या पर्ल शेंकल।

” ये हक़ीक़त है कि पहचान छुपा कर रहने की बाध्यता और सैनिक संघर्ष में यूरोपीय देशों से मदद मांगने के लिए भाग दौड़ करने के चलते सुभाष अपने प्यार भरे रिश्ते लेकर अतिरिक्त सतर्कता बरतते होंगे।

लेकिन एमिली को लेकर उनके अंदर कैसा भाव था, इसे उस पत्र से समझा जा सकता है, जिसे आप सुभाष चंद्र बोस का लिखा लव लेटर कह सकते हैं।ये निजी पत्र पहले तो सुभाष चंद्र बोस के एमिली को लिखे पत्र के संग्रह में शामिल नहीं था। इस पत्र को एमिली ने खुद शरत चंद्र बोस के बेटे शिशिर कुमार बोस की पत्नी कृष्णा बोस को सौंपा था।

बोस का एमिली को लिखा लव लैटर

5 मार्च, 1936 को लिखा ये पत्र इस तरह से शुरू होता है। “माय डार्लिंग, समय आने पर हिमपर्वत भी पिघलता है, ऐसा भाव मेरे अंदर अभी है। मैं तुमसे कितना प्रेम करता हूं, ये बताने के लिए कुछ लिखने से खुद को रोक नहीं पा रहा हूं।

जैसा कि हम एक-दूसरे को आपस में कहते हैं, माय डार्लिंग, तुम मेरे दिल की रानी हो, लेकिन क्या तुम मुझसे प्यार करती हो।” इसमें बोस ने आगे लिखा है, “मुझे नहीं मालूम कि भविष्य में क्या होगा। हो सकता है पूरा जीवन जेल में बिताना पड़े, मुझे गोली मार दी जाए या मुझे फांसी पर लटका दिया जाए।

हो सकता है मैं तुम्हें कभी देख नहीं पाऊं, हो सकता है कि कभी पत्र नहीं लिख पाऊं । लेकिन भरोसा करो, तुम हमेशा मेरे दिल में रहोगी, मेरी सोच और मेरे सपनों में रहोगी। अगर हम इस जीवन में नहीं मिले तो अगले जीवन में मैं तुम्हारे साथ रहूंगा।

” इस पत्र के अंत में सुभाष ने लिखा है कि मैं तुम्हारे अंदर की औरत को प्यार करता हूं, तुम्हारी आत्मा से प्यार करता हूं।, तुम पहली औरत हो जिससे मैंने प्यार किया।पत्र के अंत में सुभाष ने इस पत्र को नष्ट करने का अनुरोध भी किया था, लेकिन एमिली ने इस पत्र को संभाल कर रखा।

 

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