रायपुर। प्रदेश के सरकारी हास्पिटल्स में अब प्रशासनिक दायित्व सीईओ यानि चीफ एग्जीक्यूटिव आॅफिसर संभालेंगे। इसके लिए सरकार बाकायदा इस पद पर योग्य लोगों की नियुक्ति करने जा रही है। तो वहीं सरकार ने ये भी जाहिर कर दिया है कि इस पद के लिए उम्मीदवार का डॉक्टर होना जरूरी नहीं है।

ऐसा इस लिए भी किया जा रहा है कि ज्यादातर अस्पतालों में सुपरिंटेंडेंट स्पेशलिस्ट तो हैं, मगर न तो वो मरीज देखते हैं और न ही कभी आॅपरेशन करते हैं। ऐसे में लोगों को उनकी काबिलियत का लाभ नहीं मिल पाता। उल्टे डॉक्टर्स की कमीं अलग से बनी रहती है। आलम ये है कि प्रदेश में विशेषज्ञ डॉक्टर्स के 50 फीसद से अधिक पद खाली हैं।

सुपरस्पेशलिस्ट डॉक्टर्स को नहीं देंगे प्रशासनिक भार:

कुछ दिनों पहले ही मुख्यमंत्री भूपेश बघेल ने स्वास्थ्य सचिव निहारिका बारिक को इसके लिए निर्देशित किया था। इस पर विभागीय स्तर पर कार्यवाही तेज हो गई है। सीईओ की नियुक्ति होने से अधीक्षक का पद रहेगा या फिर नहीं यह अभी तक स्पष्ट नहीं है, मगर वर्तमान में अधीक्षक का प्रशासनिक दायित्व संभाल रहे स्पेशलिस्ट, सुपरस्पेशलिस्ट डॉक्टर्स को मुक्ति मिल जाएगी।

सचिव ने संचालक स्वास्थ्य सेवाएं को लिखा पत्र:

अब यह पद कैसे सृजित होगा, इसे लेकर सचिव ने संचालक स्वास्थ्य सेवाएं शिखा राजपूत तिवारी को 13 जून को पत्र लिखा है। कहा है- ‘किस पद को समर्पित करके क्या सीईओ का पद लिया जा सकता है? एवं चिकित्सालयों में सीईओ के क्या-क्या कार्य होंगे, बताएं’?

पिछली सरकार में भी बनी थी योजना :

पिछली सरकार के कार्यकाल में तत्कालीन चिकित्सा शिक्षा संचालक प्रताप सिंह (आइएफएस) ने मेडिकल कॉलेज में प्रशासनिक अफसर की नियुक्ति (डीन के ही समकक्ष) की रूपरेखा तैयार की थी, मगर बाद में इस पर कोई खास काम नहीं हुआ। तब डॉक्टर्स ने इसके आंतरिक रूप से विरोध किया था।

ऐसे में देखना ये होगा कि प्रदेश सरकार की ये नई नीति कितनी कारगर साबित होती है। वैसे एक बात तो तय है कि अगर इतनी बड़ी तादाद में स्पेशलिस्ट डॉक्टर्स वापस अपनी सेवाओं पर लौट आते हैं तो नि: संदेह प्रदेश की जनता को एक बड़ी राहत मिलेगी।

 

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