– Mohammd Azharuddin Joya
मनमानी सवारियां ठूंसकर मालामाल हो रहे बस मालिक, नियम-कायदे ताक पर

रायपुर। ओवर लोडेड बसें राज्य सरकार को हर साल 9 करोड़ रुपए का चूना सरकार को लगा रही हैं। तो वहीं बसों के केबिन में दस-दस सवारियां भर कर बस मालिक भी चांदी काट रहे हैं। इस पूरे धंधे में अगर कोई शिकार होता है तो वह है आम इंसान। जिससे किराया तो पूरा लिया जाता है मगर उसको जानवर की तरह ठूंसकर गंतव्य तक पहुंचाया जाता है। इसके बावजूद भी परिवहन विभाग के जिम्मेदार अधिकारी चुप्पी साधे बैठे हैं। ऐसे में सवाल तो यही उठता है कि क्या इस राज्य में आम इंसान के जीवन का कोई मोल नहीं है? सरकार और बस मालिक अपने-अपने फायदे के लिए नियम कायदे से खिलवाड़ कर लोगों का जीवन कब तक संकट में डालते रहेंगे?
टीआरपी की टीम ने किया रिसर्च :
टीआरपी संवाददाता ने ऐसी तमाम बसों में सफर कर इसके आंकड़े निकाले हैं। इस पर लगातार जांच करने पर टीम को जो भी फाइंडिंग्स मिली हैं हम उनका ही यहां जिक्र कर रहे हैं। हमारी टीम ने अपने रिसर्च में पाया कि प्रदेश में ऐसी बसों की तादात 5 हजार से ज्यादा है। इन बसों में रोजाना देढ़ से दोगुनी सवारी बैठाई जा रही है। बसों की बैठक, दूरी व सुविधाओं के अनुसार मासिक शुल्क सरकार को बतौर राजस्व देना होता है। सुविधानुसार बस सेवा को साधारण, एक्सप्रेस व डीलक्स तीन अलग-अलग श्रेणियों में बांटा गया है। साधारण सेवा की 15 बैठक वाली कोई बस प्रतिदिन 200 किलोमीटर चलती है तो शासन को 2300 रुपए मासिक दर से राजस्व मिलता है। मतलब प्रति यात्री औसत लगभग 5.11 रुपए प्रतिदिन, इस हिसाब से अनुमानन एक बस में तय सीमा से 10 यात्री भी अधिक होते हैं तो 51.10 रुपए प्रतिदिन केवल एक बस से राजस्व नुकसान होता है। प्रदेश की 5 हजार बसों से 2 लाख 55 हजार 5 सौ रुपए दैनिक और 76 लाख 65 हजार मासिक और 9 करोड़ 19 लाख 80 हजार रुपए सालाना राजस्व नुकसान हो रहा है। ये सबसे कम स्तर की श्रेणी का आंकलन कहता है।
तीज-त्यौहार पर होती है परेशानी:
प्रदेश में होने वाले ज्यादातर हादसे ओवर लोडिंग के चलते होते हैं, मगर इस पर न तो यातायात विभाग कुछ बोलता है और न ही राज्य परिवहन विभाग। सामने ही तीज-त्यौहारों का मौसम आ रहा है। ऐसे में महिलाओं को मायके जाने के नाम पर भी भारी भीड़ होती है। ऐसे में बस चालक और कंडक्टर केबिन में भी लोगों को खड़ा करवा देते हैं। भले ही लोग गर्मी से पसीने-पसीने हुए जा रहे हों मगर उनको हर हालत में पूरे पैसे चाहिए। अगर किसी ने भी कम पैसे देने की जुर्रत की तो उसे बीच रास्ते में ही उतारने घटनाएं भी सामने आ चुकी हैं।
राज्य के अधिकतर क्षेत्र व छोटे गांवों-कस्बों में बस ही यातायात का एकमात्र साधन है। बस के केबिन व स्लीपर बर्थ में भी सवारी बैठाया जाता है।
निर्धारित सवारी का ही बीमा
इस संदर्भ में बीमा कंपनियों के अनुसार बसों की निर्धारित बैठक सीमा के अनुसार ही यात्रियों का दुर्घटना बीमा का प्रावधान है। यदि कोई बस में दुर्घटना होती है तो केवल बस की दर्ज बैठक संख्या के यात्रियों को बीमा का लाभ मिलेगा। ऐसी स्थिति में बस में सवार अन्य अतिरिक्त यात्री नियमानुसार बीमा सुविधा के पात्र नहीं है। दुर्घटना होने पर पुलिस विभाग मामला पंजीबध्द करता है। बीमा का लाभ देने के लिए व्यक्ति का निर्धारण न्यायालय द्वारा किया जाता है। न्यायालय के फैसले के अनुरूप मुआवजा या क्षतिपूर्ति रकम दी जाती है।
वर्जन:
सरकार के नियमों की अनदेखी करने वालों से सख्ती से निपटा जाएगा। वह चाहे कोई भी हों।
विजय कुमार धुर्वे
संयुक्त सचिव
परिवहन विभाग
छत्तीसगढ़ शासन नया रायपुर अटलनगर।
Chhattisgarh से जुड़ी Hindi News के अपडेट लगातार हासिल करने के लिए हमें Facebook पर Like करें और Twitter पर Follow करें
एक ही क्लिक में पढ़ें  The Rural Press की सारी खबरें