बिलासपुर। हाईकोर्ट (High Court) ने वन अधिकार पट्टों पर रोक लगा दी है। दरअसल काफी समय से जंगल काट कर अपात्रों को बांटे जा रहे वन अधिकार पट्टे बांटे जाने की शिकायतें आ रही थी। इसे देखते हुए अपात्रों को बांटे गये पट्टो को निरस्त करने और बांटने पर रोक की मांग लेकर रायपुर निवासी नितिन सिंघवी द्वारा दायर की गई याचिका को स्वीकारते हुये वन अधिकार पट्टे (Forest rights lease) बांटने पर छत्तीसगढ़ हाईकोर्ट के मुख्य न्यााधीश पी.आर. रामचन्द्रन मेनन तथा न्यायमूर्ति पीपी साहू की बेंच ने दो माह के लिये रोक लगा दी।

याचिका में बताया गया कि वन अधिकार पट्टा प्राप्त करने के लिये ग्रामीणों द्वारा वनों को काट कर वन अधिकार पट्टा प्राप्त किया जा रहा है। सीतानदी अभ्यारण्य (Sitanadi Sanctuary) में वन भैसों के संरक्षण के लिये सर्वोच्च न्यायालय ने टी.एन.गोधावर्मन की याचिका पर वनभैसों को संरक्षण करने तथा वनों में से कब्जों को हटाने और आवश्यक होने पर पट्टा निरस्त करने के आदेश दिये थे। उन्हीं जंगलों में वनों की अवैध कटाई हो रही है।

सरकार द्वारा कोई सकारात्मक पहल नहीं

कोर्ट ने कहा कि इन मुद्दों पर सरकार (Chhattisgarh Government) द्वारा कोई सकारात्मक पहल नहीं की गई है। छत्तीसगढ़ वन विकास निगम (Chhattisgarh Forest Development Corporation) ने भी किये गये कब्जों के संबंध में पत्र लिखा है। राष्ट्रीय बाघ संरक्षण प्राधिकरण ने भी वनों को हो रहे नुकसान को लेकर शीघ्र कार्यवाही करने की रिपोर्ट दी है। कोर्ट ने आदेशित किया कि याचिका में उठाये गये मुद्दों पर शीघ्र सुनवाई आवश्यक है और वन अधिकार पट्टों के वितरण पर दो माह की रोक लगाई गई। साथ ही इस मामले में राज्य शासन को जवाब प्रस्तुत करने हेतु आदेश दिया गया है।

वन अधिकार अधिनियम (Forest Rights Act) के प्रावधानों के अनुसार अगर कोई अनुसूचित जनजाति का 13 दिसम्बर 2005 के पूर्व 10 एकड़ वनभूमि तक कब्जा था तो वह ही वह पट्टा प्राप्त करने की पात्रता रखेगा। जिसके लिये उसे प्रमाण प्रस्तुत करना पड़ेगा। इसी प्रकार अन्य परंपरागत वन निवासियों जो 13 दिसम्बर 2005 के पूर्व वर्ष 1930 से वन क्षेत्रों में रह रहे हैं वे भी पट्टा प्राप्त करने हेतु पात्र होंगे।

वर्तमान स्थिति

– छत्तीसगढ़ में सितम्बर 2018 तक 401551 पट्टे अनुसूचित जनजाति तथा अन्य परम्परागत वन निवासी को बांटे गये।

– छत्तीसगढ़ में वनों का भाग लगभग 42 प्रतिशत है जिसमें से 3412 वर्ग कि.मी. जो कि कुल वन भू भाग का 6.14 प्रतिशत वन अधिकार पट्टे के रूप में बांटा गया।

– निरस्त किये गये वन अधिकार पट्टों पर पुनर्विचार नहीं किया जा सकता। निरस्त किये गये वन अधिकार पट्टों पर पुनर्विचार के नाम पर अपात्रों को पट्टे बांटे जा रहे है। नवम्बर 2015 तक 497438 पट्टों के आवेदनों को निरस्त कर दिया गया था परंतु पुनर्विचार कर के मार्च 2018 तक निरस्त पट्टों की संख्या घटकर 455131 रह गई। जिन पट्टों के आवेदनों को निरस्त किया गया है वे कब्जाधारी अभी भी वन भूमि में काबिज है।

– छत्तीसगढ़ वन विकास निगम लिमिटेड, कवर्धा परियोजना मण्डल के वन क्षेत्र में गूगल मैप के अनुसार वर्ष 2013 और वर्ष 2015 में घना जंगल था, जिसकी वन भूमि 21122 हेक्टर थी, जिसमें से 9.24 प्रतिशत अर्थात 1949 हेक्टर भूमि पर 1510 वन अधिकार पट्टे बांटे गये।

– कक्ष क्र. पी.एफ. 498 पठरिया परिक्षेत्र, छत्तीसगढ़ राज्य वन विकास निगम लिमिटेड में गूगल अर्थ के अनुसार वर्ष 2015 तक घना जंगल था, अतिक्रमणकारियों के द्वारा कब्जा उसके बाद किया गया और 80 हेक्टर भूमि में 43 वन अधिकार पट्टे प्राप्त किये।

याचिकाकर्ता की ओस से उदन्ती सीतानदी टाईगर रिजर्व में हो रही वनों की कटाई संबंधित तस्वीर प्रस्तुत करते हुए बताया गया कि पेड़ो की छाल को नीचे से काट कर उन्हें मार दिया जाता है। पेड़ों को जलाया जाता है। टाईगर रिजर्व क्षेत्र में प्रधानमंत्री आवास योजना (ग्रामीण) के मकान बनाये गये है। वहां कई स्थानों में इंटे-भट्ठे कार्यरत है।

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