टीआरपी डेस्क। इंडिया की आयरन लेडी के तौर पर जब भी जिक्र किया जाता है तो इसमें एक नाम ही

जहन में आता है, Indira Gandhi का। कहा तो यहां तक जाता है कि पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी ने

भी उन्‍हें दुर्गा कहा था। लेकिन, इसको लेकर प्रमाणिक तौर पर कुछ नहीं कहा जा सकता है।

 

 

बहरहाल, इसमें कोई शक नहीं है कि इंदिरा गांधी कड़े फैसलों को लेने से कभी पीछे नहीं हटती थीं।

बांग्‍लादेश उनकी ही बदौलत आज एक आजाद मुल्‍क की हैसियत रखता है। इंदिरा गांधी ने ही वहां पर

अपनी सेना भेजने का फैसला लिया था और इसका अंत 80 हजार पाकिस्‍तान सैनिकों की आत्‍म समर्पण

और बांग्‍लादेश की आजादी से हुआ था।

 

आइए जानते हैं उनके महत्वपूर्ण फैसले

आपातकाल

19 नवंबर 1917 में जन्‍मी इंदिरा का बचपन देश की राजनीति के इर्द-गिर्द ही बीता था। यही वजह थी कि उन्‍होंने

इसकी बारिकियों को करीब से जाना समझा। इसकी बदौलत उन्‍हें आगे बढ़कर कड़े फैसले लेने की समझ भी

विकसित हुई। उनके द्वारा लिए गए ये फैसले उनकी दमदार छवि को दिखाते हैं। हालांकि इस दमदार छवि के

उलट उन्‍होंने जो आपातकाल का फैसला किया उसको हर तरफ विरोध हुआ। इसका नतीजा केंद्र में गैर कांग्रेसी

सरकार का बनना था। हालांकि यह सरकार कुछ ही समय में गिर गई थी और देश की जनता ने दोबारा इंदिरा गांधी

पर ही विश्‍वास जताया था।

 

भारत का न्‍यूक्यिलर टेस्‍ट

 

जिस वक्‍त दुनिया के ताकतवर देश भारत को लेकर धमकाने में जुटे थे उस वक्‍त इंदिरा गांधी ने न्‍यूक्यिलर टेस्‍ट

कर दुनिया को आश्‍चर्य में डाल दिया था। इस टेस्‍ट ने भारत को परमाणु ताकत के रूप में स्‍थापित किया था।

हालांकि दुनिया के बड़े मुल्‍क इस हरकत से काफी खफा थे और भारत को उनके कड़े रुख का सामना करना

पड़ा था। लेकिन इससे इंदिरा न तो घबराई और न ही विचलित हुईं। उन्‍होंने लगातार भारत को विकास के पथ

पर अग्रसर रखा। उनके इस फैसले ने दुनिया को यह बता दिया था कि भारत अपने हित के लिए किसी भी कदम

से पीछे नहीं हटने वाला है।

 

ऑपरेशन ब्‍लू स्‍टार

अपने प्रधानमंत्री काल में उन्‍होंने खालीस्‍तान की कमर तोड़ने के लिए जो ऑपरेशन ब्‍लू स्‍टार का फैसला लिया,

वो आसान नहीं था। इंदिरा को कहीं न कहीं इस बात का अंदेशा जरूर रहा होगा कि इसका राजनीतिक स्‍तर पर

क्‍या असर होगा, लेकिन क्‍योंकि पंजाब खालिस्‍तान समर्थकों की जकड़ में कसता जा रहा था। उग्रवाद अपने चरम

पर जा रहा था। लिहाजा, उनके लिए ये फैसला लेना जरूरी हो गया था। स्‍वर्ण मंदिर में सेना का हमला और जरनैल

सिंह भिंडरावाला की मौत इसका ही परिणाम था।

 

बांग्‍लादेश को कराया आजाद

इसको इत्‍तफाक ही कहा जाएगा कि बांग्‍लादेश को आजाद कराने के बाद उन्‍होंने जब 1975 में जमैका में बंगबंधु

शेख मुजीबुर्र रहमान से मुलाकात की थी तब उनकी सुरक्षा को लेकर चिंता जाहिर की थी। लेकिन शेख ने उनकी

बातों को गंभीरता से नहीं लिया था। इसका खामियाजा उन्‍हें अपने पूरे परिवार की जान देकर चुकाना पड़ा था।

ऐसा ही कुछ इंदिरा गांधी के साथ भी हुआ। अपने करीबियों की सलाह न मानकर जो गलती उन्‍होंने की, उसका

खामियाजा भी उन्‍हें अपनी जान देकर चुकाना पड़ा ।

 

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