टीआरपी न्यूज डेस्क। बीजेपी अगर एनसीपी चीफ शरद पवार की दो शर्तें मान लेती तो महाराष्ट्र में उसकी

सरकार बच सकती थी? सूत्रों की मानें तो बीजेपी को समर्थन देने के लिए पवार ने दो शर्तें रखी थीं। पहली शर्त

थी कि केंद्र की राजनीति में सक्रिय बेटी सुप्रिया सुले के लिए भारी-भरकम कृषि मंत्रालय और दूसरी देवेंद्र

फडणवीस की जगह किसी और को मुख्यमंत्री बनाना। जब यह बात प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के सामने आई तो

वह सरकार बनाने के लिए इन शर्तों को मानने को तैयार नहीं हुए।

 

इस वजह से नहीं बनी बात :

बीजेपी सूत्रों के हवाले से बताया गया है कि पार्टी नेतृत्व को लगा कि अगर महाराष्ट्र में समर्थन हासिल करने के

लिए एनसीपी को कृषि मंत्रालय दे दिया गया, तो फिर बिहार में पुराना सहयोगी जेडीयू रेल मंत्रालय के लिए दावा

ठोक कर धर्मसंकट पैदा कर सकता है। ऐसे में प्रचंड बहुमत के बावजूद दो बड़े मंत्रालय बीजेपी के हाथ से

निकल सकते हैं।

 

फडणवीस को नहीं चाहती थी बीजेपी :

 

सूत्रों ने पवार की दूसरी शर्त के बारे में बताया कि महाराष्ट्र जैसे राज्य में देवेंद्र फडणवीस पांच साल तक बेदाग

सत्ता चलाने में सफल रहे और विधानसभा चुनाव में भी पार्टी ने उन्हें मुख्यमंत्री का चेहरा बनाकर चुनाव लड़ा।

24 अक्टूबर को नतीजे आने के दिन पार्टी मुख्यालय पर कार्यकर्ताओं को संबोधित करते हुए प्रधानमंत्री नरेंद्र

मोदी ने फडणवीस के ही नेतृत्व में सरकार बनने की घोषणा की थी, इसके बाद फडणवीस की जगह किसी

दूसरे को सीएम बनाने की शर्त मानना भी बीजेपी के लिए नामुमकिन था।

 

पवार ने मोदी-शाह को भेजा था संदेश :

 

सूत्रों का कहना है कि इन दोनों मांगों को मानने के लिए शरद पवार ने बीजेपी और मोदी-शाह को संदेश भेजकर

विचार के लिए वक्त दिया था यही वजह है कि नतीजे आने के बाद पवार ने बीजेपी नेतृत्व के खिलाफ ऐसा कुछ

तीखा नहीं बोला था, जिस पर बीजेपी से जवाबी प्रतिक्रिया आने की गुंजाइश रहती। बयानबाजी सिर्फ शिवसेना

और बीजेपी के बीच होती रही।

 

मोदी से मिलने खुद भी पहुंचे थे शरद पवार :

सूत्रों का कहना है कि मांगों पर बीजेपी की तरफ से सकारात्मक रुख न मिलने पर 20 अक्टूबर को जब संसद

भवन में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से शरद पवार मिले तो करीब 45-50 मिनट लंबी बातचीत चली। हालांकि इस

मुलाकात में भी प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, शरद पवार की दोनों मांगों पर राजी नहीं हुए और न ही उन्होंने खुलकर

कुछ कहा। इस बीच 22 नवंबर को रातोंरात शरद पवार के भतीजे अजित पवार ने बागी होकर बीजेपी के साथ

सरकार बनाने की पेशकश कर दी।

 

 

आपको याद होगा कि शुरुआती खबरों में कहा गया कि अजित पवार के साथ 30-35 विधायक टूटकर बीजेपी

के साथ सरकार बनाने के लिए तैयार हैं। यह भी कहा जाने लगा कि इसमें शरद पवार की भी मौन सहमति है।

हालांकि बाद में शरद पवार ने ट्वीट कर बीजेपी के साथ एनसीपी के गठबंधन की बात खारिज करते हुए कहा

कि सरकार में शामिल होने का अजित पवार का फैसला निजी है।

 

आखिर तक पवार को थी उम्मीद :

सूत्र बताते हैं कि शरद पवार को आखिर तक उम्मीद थी कि शिवसेना के साथ छोड़ने के कारण असहाय हुई

बीजेपी उनकी दोनों बड़ी मांगें मान लेगी, मगर ऐसा नहीं हुआ। आखिरकार शरद पवार ने कांग्रेस और शिवसेना

के साथ ही सरकार बनाने का अंतिम कदम उठाया। शरद पवार को मालूम था कि 54 विधायक होने के कारण

उनके दोनों हाथों में लड्डू है। एक तरफ जाने पर उनके सिर पर चाणक्य बनने का सेहरा बंधेगा और बीजेपी

की तरफ जाने पर केंद्र सरकार में भागीदारी सहित अधिकतम लाभ मिलने की गुंजाइश है। शरद पवार को

जब लगा कि बीजेपी उनकी मांगों को नहीं मानने वाली है, तो उन्होंने आखिरकार कांग्रेस-शिवसेना के साथ

पहले से सरकार बनाने को लेकर चल रही बातचीत को ही मुकाम पर पहुंचाने का फैसला किया।

 

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