उचित शर्मा

छत्तीसगढ़ IAS एसोसिएशन की सालाना बैठक में अफसरों की विदेश यात्रा का मुददा छाया रहा,इससे पहले  मीडिया ने भी अपनी हेडलाइन में इसी खबर को तव्वजों दी थी। लेकिन, सालाना बैठक के बाद IAS एसोसिएशन को जो सधा हुआ बयान सामने आया है उसे छत्तीसगढ़ में तैनात आईएएस अफसरों की परिपक्तवता ही माना  जा सकता है। और इस बयान का स्वागत किया जाना चाहिए। उनका ये गुस्सा स्वाभाविक भी है, लेकिन खुद  के खर्चें पर उनकी विदेश यात्रा जाने पर सवाल उठाया जाना भी उचित नहीं है।

आइए गौर करते हैं उन बातों पर जो बयान में सामने आई हैं.. ‘निजी व्यय पर विदेश जाने का हमें पूरा अधिकार,  मीडिया अफसरों की छवि धूमिल न करे तो बेहतर…, किसी अधिकारी के बारे में तथ्यों की व्याख्या करने के  पहले संबंधित अधिकारी का वक्तव्य भी ले लिया जाए। सीधी से बात है आखिर इसमें गलत क्या है?

ऊपर की चार लाइनों पर गौर करें तो बात पूरी तरह ठीक नजर आती है। जिसमें IAS एसोसिएशन ने न तो कोई सीधे तौर पर कोई टिप्पणी की और अपनी बातों और निजता के अधिकार की बात कहने से कोई परहेज किया है। जाहिर बात है उनकी अपनी जरूरतें हैं,किसी के रिलेटिव विदेशों में हैं तो किसी बच्चे वहां पढ़ाई कर रहे हैं। किसी को मेडिकल की जरूरत है तो उनके विदेश जाने पर भला किसी को आपत्ति क्यों होना चाहिए वो भी तब जब उन्होंने बकायदा सरकार से अनुमति लेकर खुद के खर्च ये या​त्रा की हों।

लोकतंत्र का कायदा है यहां हर किसी के अधिकार पूरी तरह से सुरक्षित हैं। लेकिन इन अधिकारों से साथ कर्तव्य का बोध कराने की IAS एसोसिएशन की जो शैली सामने आई है वो काबिले तारीफ है। एसोसिएशन के सीनियर अफसरों ने ना केवल उन यंग अफसरों की पीड़ा को समझा ​बल्कि ये भी साफ कर दिया कि एसोसिएशन प्रदेश में तैनात अधिकारियों की सेवा में पूर्ण पारदर्शिता और अधिकारियों के जिम्मेदार व्यवहार का पक्षधर है। एसोसिएशन इस बात में भी विश्वास रखता है कि देश की सर्वोच्च सेवा होने के नाते छत्तीसगढ़ के सभी अधिकारी किसी भी तरह की प्रशासनिक या छानबीन के लिए हमेशा तैयार हैं। किंतु मीडिया से इस बात का ख्याल रखने की अपेक्षा है कि किसी अधिकारी की निष्ठा प्रतिष्ठा एवं छवि बेवजह धूमिल ना हो।

अब सोचने की पारी मीडिया की है। असल में लोकतंत्र में न्यायपालिका, कार्यपालिका और विधायिका के बीच अगर कोई सेतु है तो वो मीडिया ही है। ऐसे में किसी खबरों के प्रकाशन से पहले उनकी निष्पक्षता की जांच पड़ताल तो और भी जरूरी है। और डेमो​क्रेसी के इन चारों पायों की बीच अधिकार और कर्तव्य बोध की लक्ष्मण रेखा बनी रहे तो ये रिश्तें प्रदेश के विकास लिए मील के पत्थर साबित होंगे, इस बात से भला कोई कैसे इंकार कर सकता है।

अब उन बातों का जिक्र भी जरूरी है जिन ​मुददों पर ये तूफान उठा था। दरअसल विधानसभा में पूर्व मुख्यमंत्री डॉ रमन सिंह ने आईएएस अफसरों की विदेश यात्रा का सवाल उठाकर इसे हवा दी और मीडिया ने इसे हाथों-हाथों उठा लिया। आपको याद दिला दें कि डा रमन सिंह अपने कार्यकाल के दौरान प्रदेश की अफसरशाही की तारीफ करते नहीं थकते थे। आखिर ऐसा क्या हो गया कि उन्हें ये सवाल उठाना पड़ा ?

आखिर में उन अफसरों के लिए हमारी ओर से भी संदेश है….

बागवा ने खुद ही जलाया है चमन..
बिजलियों का नाम क्यों बदनाम है।