नई दिल्ली। शरणार्थी भारत ही नहीं, दुनिया में बड़ा मसला है। शरणार्थियों के लिए बने संयुक्त राष्ट्र

मानवाधिकार आयोग (United Nation Human Rights Council, UNHRC ) का कहना है कि

दुनियाभर में 1.2 करोड़ लोग दूसरे देशों में शरणार्थी की जिंदगी गुजार रहे हैं।

 

बुनियादी सुविधाएं भी नहीं मिलतीं :

मूल देश में उत्पीड़न या अन्य कारणों से पलायन करने वाले इन शरणार्थियों को शरणदाता  देश में भी

राहत नहीं मिल पाती। वैध दस्तावेज न होने से इन शरणार्थियों को शिक्षा, स्वास्थ्य, आवास, रोजगार संबंधी

लाभ नहीं मिलते।

 

2024 तक संकट का हल संभव नहीं :

यूएनएचसीआर ने वर्ष 2024 तक स्टेटलेसनेस (बिना देश के लोग) की समस्या खत्म करने का लक्ष्य तय

किया है। लेकिन देशों की असहमति से यह संभव होता नहीं दिखता।

पलायन की हालिया बड़ी घटनाएं :

  •  9 लाख रोहिंग्या पलायन के बाद बांग्लादेश और अन्य एशियाई देशों में।
  • 7 लाख शरणार्थी आइवरी कोस्ट में बुर्कीना फासो, माली-घाना से आए।
  • 4.79 लाख थाईलैंड के लोग पड़ोसी देशों में पनाह लेने को मजबूर।
  • 03 लाख से ज्यादा कुर्द सीरिया और आसपास, बिना किसी  नागरिकता के।

अफगानिस्तान बड़े प्रभावित देशों में :

  • 61 लाख का पलायन 2018 में सीरिया-इराक से हिंसा-उत्पीड़न के कारण।

इन देशों में नागरिकता मुश्किल :

  • भूटान में दो पीढ़ियों से निवासी होना चाहिए।
  • कतर में 25 साल रहना जरूरी।
  • यूएई का 30 साल निवासी होना जरूरी।
  • स्विट्जरलैंड में 5 साल की सी-परमिट।
  • चीन में कोई रिश्तेदार होना जरूरी।

 

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