रांची। झारखंड में  हेमंत सोरेन  के नए मुख्यमंत्री के तौर पर शपथ के तुरंत बाद राज्य में दो साल पहले

पत्थलगड़ी आंदोलन के दौरान दर्ज सभी मामलों को वापस लिए जाने का फैसला लिया है। इसे लेकर

राज्य के मंत्रिमंडल सचिव का कहना है कि राज्य सरकार के फैसले के अनुसार छोटानागपुर काश्तकारी

अधिनियम और संथाल परगना काश्तकारी अधिनियम में संशोधन का विरोध करने और पत्थलगड़ी करने

के जुर्म में दर्ज किए गए सभी मामलों को वापस लेने का काम शुरू होगा। इससे संबंधित अधिकारियों को

कार्रवाई के निर्देश दे दिए गए हैं।

छत्तीसगढ़ में चला था पत्थलगड़ी आंदोलन

बता दें कि भाजपा शासनकाल के दौरान छत्तीसगढ़ के जशपुर, सरगुजा सहित रायगढ़, बस्तर और कोरिया

जिले में सरकार के फैसले के खिलाफ आदिवासी समाज ने पत्थलगड़ी आंदोलन चलाया था, जिसके बाद

सैकड़ों आंदोलनकारियो के ख्रिलाफ देशद्रोह जैसे संगीन मामले पर केस दर्ज किया गया था। इन मामलों के

आरोपी अभी जमानत हैं।

 

अब उम्मीद की जा रही है कि झारखंड सरकार के इस फैसले का असर छत्तीसगढ़ पर भी दिख सकता है।

आदिवासी समाज इस मामले में मुख्यमंत्री भूपेश बघेल पर पत्थलगड़ी आंदोलन के आंदोलनकारियों पर

दर्ज मामले को वापस लेने का दबाव बढ़ा सकता है।

 

क्या है पत्थलगड़ी और इसकी परंपरा

आदिवासी समुदाय और गांवों में विधि-विधान/संस्कार के साथ पत्थलगड़ी (बड़ा शिलालेख गाड़ने) की परंपरा

पुरानी है। इनमें मौजा, सीमाना, ग्रामसभा और अधिकार की जानकारी रहती है। वंशावली, पुरखे तथा मरनी

(मृत व्यक्ति) की याद संजोए रखने के लिए भी पत्थलगड़ी की जाती है। कई जगहों पर अंग्रेजों या फिर दुश्मनों

के खिलाफ लड़कर शहीद होने वाले वीर सपूतों के सम्मान में भी पत्थलगड़ी की जाती रही है।

 

दरअसल, पत्थलगड़ी उन पत्थर स्मारकों को कहा जाता है जिसकी शुरुआत इंसानी समाज ने हजारों साल पहले

की थी। यह एक पाषाणकालीन परंपरा है जो आदिवासियों में आज भी प्रचलित है। माना जाता है कि मृतकों की

याद संजोने, खगोल विज्ञान को समझने, कबीलों के अधिकार क्षेत्रों के सीमांकन को दर्शाने, बसाहटों की सूचना

देने, सामूहिक मान्यताओं को सार्वजनिक करने आदि उद्देश्यों की पूर्ति के लिए प्रागैतिहासिक मानव समाज ने

पत्थर स्मारकों की रचना की।

 

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