प्रयागराज। इलाहाबाद हाईकोर्ट ने एक महत्वपूर्ण फैसले में कहा है कि अनुकंपा कोटे में नियुक्ति पाने वाली विधवा को पुनर्विवाह करने से नहीं रोका जा सकता। कोर्ट ने कहा कि मृतक आश्रित सेवा नियमावली में यह शर्त है कि जो भी आश्रित के रूप में नियुक्ति पाएगा, वह मृतक के आश्रितों का भरण-पोषण करेगा।

आश्रितों का भरण-पोषण नहीं करता तो उसे नौकरी से हटाया जा सकता है। इस आधार पर यह नहीं कहा जा सकता किश्रित के रूप में नियुक्त व्यक्ति यदि पुनर्विवाह करता है, तो उसे सेवा से हटा दिया जाएगा लेकिन किसी को भी पुनर्विवाह करने के अधिकार से वंचित नहीं किया जा सकता।

कोर्ट ने कहा कि संविधान के अनुच्छेद 21 के तहत प्रत्येक व्यक्ति को अपनी मर्जी से विवाह या पुनर्विवाह करने का अधिकार है, उसके इस अधिकार में कटौती नहीं की जा सकती। यह आदेश न्यायमूर्ति एसपी केशरवानी ने संतोषी की याचिका को स्वीकार करते हुए दिया है। कोर्ट ने याची को उसके देवर के साथ पुनर्विवाह करने की छूट दी है लेकिन कहा है कि वह प्रत्येक महीने अपने वेतन का एक तिहाई हिस्सा अपनी सास को भुगतान करती रहेगी। याची के पति चतुर्थ श्रेणी कर्मचारी थे।

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