0 शीर्ष अदालत ने कहा- ऐसा कोई कानून नहीं, जो आरोपियों के पोस्टर लगाने की इजाजत देता हो

0 इलाहाबाद हाईकोर्ट ने प्रदर्शनकारियों के पोस्टर लगाने को निजता में गैर जरूरी हस्तक्षेप माना था

नई दिल्ली। उत्तर प्रदेश में नागरिकता संशोधन कानून (सीएए) के खिलाफ प्रदर्शन में हिंसा फैलाने के आरोपियों के पोस्टर लगाने के मामले में गुरुवार को सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई हुई। कोर्ट ने योगी सरकार से पूछा कि किस कानून के तहत आरोपियों के होर्डिंग्स लगाए गए। अब तक ऐसा कोई प्रावधान नहीं, जो इसकी इजाजत देता हो।

यूपी सरकार ने याचिका में इलाहाबाद हाईकोर्ट के उस फैसले को चुनौती दी है, जिसमें कोर्ट ने 9 मार्च को प्रदर्शनकारियों के पोस्टर हटाने का आदेश दिया था। कोर्ट ने सरकार की इस कार्रवाई को निजता में गैर जरूरी हस्तक्षेप करार दिया था।

जस्टिस यूयू ललित और जस्टिस अनिरुद्ध बोस की वेकेशन बेंच ने कहा कि यह मामला काफी अहमियत रखता है, क्या यूपी सरकार को ऐसे पोस्टर लगाने का अधिकार है। अब तक ऐसा कोई कानून नहीं है, जो सरकार की इस कार्रवाई का समर्थन करता हो। राज्य सरकार की ओर से सॉलिसीटर जनरल तुषार मेहता ने कोर्ट से कहा- निजता के अधिकार के कई आयाम हैं।

पोस्टर हटाने के हाईकोर्ट के फैसले में खामियां हैं। ये लोग प्रदर्शन के दौरान हिंसा में शामिल थे। सरकार के पास ऐसी कार्रवाई करने की शक्ति है।

इस पर जस्टिस बोस ने पूछा कि हिंसा के आरोपियों के होर्डिंग्स लगाने की शक्ति कहां मिली हुई है? हम सरकार की चिंता समझ सकते हैं। बेशक दंगाइयों के खिलाफ कार्रवाई की जानी चाहिए और उन्हें दंडित किया जाए। लेकिन कानून में ऐसी कार्रवाई करने का कोई प्रावधान नहीं है।

मेहता ने कहा कि एक आदमी जो प्रदर्शन के दौरान हथियार लेकर पहुंचा हो और हिंसा में शामिल रहा हो। वह निजता के अधिकार का दावा नहीं कर सकता है। प्रदर्शनकारियों के पोस्टर सिर्फ यह बताने के लिए लगाए गए थे कि हिंसा में शामिल आरोपियों पर अभी जुर्माना बकाया है।

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