टीआरपी न्यूज।  पूरी दुनिया इस वक्त जिस बात की चर्चा है वो कोरोना वायरस,हर तरफ मौत अपना तांडव दिखा रही है। ऐसा ही एक दौर 1918 में सामने आया था जब दुनिया के करोड़ो लोग स्पेनिश इन्फ्लुएंजा की वजह से मौत के आगोश में समा गए थे।

इस दौर में राष्ट्रपिता महात्मा गांधी भी स्पैनिश फ्लू (इन्फ्लुएंजा) महामारी की चपेट में आ गए थे तो उन्होंने भी अपने को भीड़ से अलग रखा था। कई दिनों तक गुजरात के साबरमती आश्रम में वह लोगों से अलग रहे और पूर्ण रूप से बैड रैस्ट करने के बाद ही उनकी जान बच पाई थी। इस महामारी में करीब 2 करोड़ भारतीयों की जान चली गई थी और देश की आबादी 7 फीसदी घट गई थी।

ऐसे पाई थी गांधी ने इन्फ्लुएंजा से निजात

महामारी के दौरान गुजरात के साबरमती आश्रम में काफी लोग भी स्पैनिश फ्लू की जद में आ गए थे। महात्मा गांधी की भी फ्लू के कारण हालत गंभीर हो गई थी। इस दौरान वह कई महीने तक बिस्तर पर ही रहे और भोजन में केवल तरल पदार्थ ही लेते थे। आश्रम में फ्लू से पीड़ित लोगों को आइसोलेशन में रखा गया था। खुद भी लोगों भीड़ से काफी समय तक गांधी दूर रहे और धीरे-धीरे उन्होंने इस महामारी से निजात पाई। इस दौरान गांधी के सेहत को लेकर अखबार रोजाना जानकारी देते रहते थे। महामारी के दौरान बीमार पुरूषों की देखभाल औरत कर रही थीं, यही वजह कि महामारी में मरने वालों की संख्या बढ़ती चली गई। भारत के महान कवि निराला की बीवी और कई रिश्तेदारों की जान चली गई थी। महामारी इतनी भयंकर थी कि गंगा नदी के तट पर लाशों के अंबार लग गए थे, क्योंकि महामारी से मरने पर उस समय कई लोग लाशों को नदी में बहा देते थे।

ब्रिटिश इंडिया के सैनिक लाए थे इन्फ्लुएंजा फ्लू

प्रथम विश्व युद्ध के बाद जब ब्रिटिश इंडिया के सैनिक मई 1918 में मुंबई बंदरगाह पर उतरे तो वह अपने साथ इन्फ्लुएंजा फ्लू को भी साथ ले आए थे। इस फ्लू ने मुंबई के साथ-साथ पूरे देश में मौत का ऐसा कहर ढाया कि पूरे देश में एक माह के भीतर ही लाशों के अंबार लग गए। उस समय आमतौर पर जुकाम और बुखार आते थे। यह बीमारी अक्तूबर और नवंबर के गंभीर रुप धारण कर गई थी। मुंबई के तत्कालीन स्वास्थ्य विभाग के अधिकारी जेएस टर्नर ने अपनी रिपोर्ट में लिखा था कि 10 जून, 1918 को बीमार होने पर सिपाहिओं को अस्पताल में भर्ती करवाया गया था, जिन्हें जांच में मलेरिया नहीं पाया गया था। टर्नर ने कहा कि 24 जून तक मुंबई के लोगों की हालत खराब हो चुकी थी। बुखार, हाथ-पांव में जकड़न, फेफड़ों में सूजन और आंखों में दर्द के मरीज बड़ी संख्या में अस्पताल में दाखिल होने लगे। एक ही माह के भीतर बंबई बुखार यूपी और पंजाब के कई हिस्सों में बुरी तरह फैल गया था।

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