कारोबार ठप रहने के कारण गरीब आबादी में 8 फीसदी की बढ़ोतरी होगी

अभी 81 करोड़ से ज्यादा लोग गरीबी रेखा से नीचे

नई दिल्ली। कोरोनावायरस का संक्रमण रोकने के लिए देश में लॉकडाउन है। लॉकडाउन का आर्थिक प्रभाव कम करने के लिए सरकार हरसंभव कदम उठा रही है। लेकिन, इसके बाद भी कुछ संकेत चिंताजनक हैं।

यूनाइटेड नेशंस यूनिवर्सिटी (यूएनयू) के एक रिसर्च के अनुसार, अगर कोरोना सबसे खराब स्थिति में पहुंचता है तो भारत में 104 मिलियन यानी 10.4 करोड़ नए लोग गरीब हो जाएंगे। यूएनयू ने विश्व बैंक द्वारा तय गरीबी मानकों के आधार पर यह आंकलन किया।

कुल आबादी में गरीबों की संख्या 68 फीसदी हो जाएगी

रिसर्च के मुताबिक, विश्व बैंक के आय मानकों के अनुसार, भारत में फिलहाल करीब 81.2 करोड़ लोग गरीबी रेखा से नीचे जीवन यापन कर रहे हैं। यह देश की कुल आबादी का 60 फीसदी हैं। महामारी और लॉकडाउन बढ़ने से देश के आर्थिक हालात पर विपरीत असर पड़ेगा और गरीबों की यह संख्या बढ़कर 91.5 करोड़ हो जाएगी। यह कुल आबादी का 68 फीसदी हिस्सा होगा।

अगर यह आशंका सच साबित होती है तो देश 10 साल पहले की स्थिति में पहुंच जाएगा। दूसरे शब्दों में कहें तो भारत सरकार द्वारा बीते एक दशक में किए गए उपाय बेकार हो जाएंगे।

विश्व बैंक ने तय किए हैं गरीबी रेखा से नीचे के तीन मानक

विश्व बैंक ने आय के आधार पर देशों को चार भागों में बांटा है। इन देशों में गरीबी रेखा से नीचे रहने वालों के लिए तीन मानक तय हैं।

लोअर मिडिल आय वर्ग: जिन देशों में पर-कैपिटा सालाना औसत राष्ट्रीय आय 1026 डॉलर से 3995 डॉलर (78,438 रुपए से 3 लाख रुपए के बीच) के मध्य है, वो देश इस वर्ग में शामिल हैं। भारत भी इसी वर्ग में शामिल है। इन देशों में 3.2 डॉलर रोजाना (78 हजार रुपए सालाना) से कम कमाने वाले गरीबी रेखा से नीचे माने जाते हैं।

अपर मिडिल आय वर्ग: जिन देशों में प्रति व्यक्ति सालाना औसत आय 3996 डॉलर से 12,375 डॉलर के बीच है। वो देश इस वर्ग में शामिल हैं। इन देशों में 5.5 डॉलर या इससे कम कमाने वाली गरीबी रेखा से नीचे माने जाते हैं।
उच्च आय वर्ग: जिन देशों में प्रति व्यक्ति सालाना औसत आय 13375 डॉलर से ज्यादा है।

वे देश इस वर्ग में शामिल हैं। इन देशों में गरीबी रेखा से नीचे के लोगों के लिए कोई मानक तय नहीं हैं। अर्थात इन देशों में कोई भी व्यक्ति गरीब नहीं है।

निम्न आय वर्ग: पर-कैपिटा सालाना आय 1026 डॉलर से कम वाले देशों को इसमें शामिल किया जाता है। इन देशों में रोजाना 1.9 डॉलर से कम कमाने वाले लोग गरीबी रेखा से नीचे माने जाते हैं।

अंतरराष्ट्रीय मानकों को मानें तो 7.6 करोड़ लोग होंगे अति गरीब

यदि गरीब देशों के लिए निर्धारित गरीबी के मानक 1.9 डॉलर रोजाना आय (करीब 145 रुपए) को मानें तो भारत में कोरोना संकट के कारण 15 लाख से 7.6 करोड़ अति गरीब की श्रेणी में शामिल हो जाएंगे। भारत में पर-कैपिटा सालाना आय यानी इनकम 2020 डॉलर (सालाना करीब 1.5 लाख रुपए) है।

कुल आबादी में 22 फीसदी लोगों की आय 1.9 डॉलर प्रतिदिन से कम है। यहां यह बात गौर करने वाली है कि गरीबी रेखा वालों की आय महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार योजना (मनरेगा) के तहत मिलने वाले मानदेय से भी कम है।

सबसे खराब स्थिति में आय और खपत में 20 फीसदी की कमी होगी

यूएनयू ने स्टडी में पर-कैपिटा आय के तीनों मानकों के आधार पर वैश्विक स्तर पर गरीबी बढ़ने और आय व खपत घटने का अनुमान जताया है। शोधकर्ताओं का कहना है कि सबसे खराब स्थिति में वैश्विक स्तर पर आय और खपत में 20 फीसदी की कमी आएगी।

जिन देशों में 3.2 डॉलर से कम आय वाले गरीबी रेखा से नीचे माने जाते हैं, उनमें 8 फीसदी और आबादी गरीबों में शामिल हो जाएगी। रिसर्च के मुताबिक सबसे खराब स्थिति में लोअर मिडिल आय वर्ग वाले देशों में 54.1 करोड़ नए लोग गरीबी रेखा से नीचे आ जाएंगे। इस आर्थिक संकट के कारण पूरी दुनिया में पैदा होने वाले नए गरीबों में हर 10 में से 2 लोग भारत के होंगे।

कम से कम खराब स्थिति में 2.5 करोड़ नए लोग गरीब होंगे

कोरोना संकट की मध्यम खराब स्थिति में वैश्विक स्तर पर आय और खपत में 10 फीसदी की कमी होगी और भारत के करीब 5 करोड़ नए लोग गरीबी रेखा से नीचे आ जाएंगे। वहीं कम से कम खराब स्थिति में 2.5 करोड़ नए लोग गरीबी रेखा से नीचे आए जाएंगे।

वैश्विक स्तर पर गरीबी इन्हीं पैटर्न के आधार पर बढ़ेगी। रिसर्च के मुताबिक, इस महामारी का सबसे ज्यादा असर साउथ एशिया में निम्न और लोअर मिडिल आय वर्ग वाले देशों पर पड़ेगा। रिसर्च में अनुमान जताया गया है कि वैश्विक स्तर पर पैदा होने वाले नए गरीबों में से दो-तिहाई सब-सहारा अफ्रीका और साउथ एशिया के नागरिक होंगे।

भारत के 40 करोड़ लोग और गरीब होंगे: आईएलओ

अंतरराष्ट्रीय श्रम संगठन (आईएलओ) ने इस माह की शुरुआत में भारत में रोजगार पर एक रिपोर्ट जारी की थी। रिपोर्ट के मुताबिक, भारत की टोटल वर्कफोर्स 50 करोड़ है। जिसका 90 फीसदी हिस्सा असंगठित क्षेत्र से है। कोरोना संकट के कारण 40 करोड़ से ज्यादा कामगार और गरीब हो जाएंगे।

रिपोर्ट में ऑक्सफोर्ड कोविड-19 गवर्नमेंट रेस्पॉन्स स्ट्रिन्जेंसी इंडेक्स के हवाले से कहा गया है कि भारत में कोरोना संकट से निपटने के लिए अपनाए जा रहे लॉकडाउन जैसे उपायों से यह कामगार मुख्य रूप से प्रभावित होंगे। इन उपायों के कारण अधिकांश कामगार अपने गांवों को लौटने के लिए मजबूर हो जाएंगे।

यदि आईएलओ का अनुमान सही रहता है तो असंगठित क्षेत्र में बेरोजगारी बढ़ेगी जिससे पर-कैपिटा आय और खपत में कमी होगी। इसी बात का जिक्र यूएनयू के अनुमान में किया गया है।

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