टीआरपी डेस्क। भारत-चीन सीमा के गलवान घाटी में हुए हिंसक झड़प में भारतीय सेना के 20 जवानों की शहादत के बाद पूरा देश गुस्से में है। इस घटना के बाद पूरे देश में लोग सड़क पर उतरकर प्रदर्शन कर रहे हैं। गलवान घाटी में इस वक्त बेहद तनाव का माहौल बना हुआ है। आइए इन सब के बीच हम जानते हैं कि आखिर क्यों चीन सीमा पर तनाव के बावजूद गोली नहीं चलती?

बीबीसी न्यूज़ की रिपोर्ट के मुताबिक भारत और पाकिस्तान की सीमा पर अक्सर फ़ायरिंग की खबरें आती हैं और आए दिन दोनों पक्षों के जवान भी मारे जाते हैं। जबकि चीन के साथ तनाव होने बावजूद बात हाथापाई से आगे नहीं बढ़ती।

इस संबंध में वरिष्ठ पत्रकार सैबल दासगुप्ता के कथन के मुताबिक भारत और चीन ने समझौतों के तहत तय किया है कि मतभेद कितने भी हों, बॉर्डर पर हम उत्तेजना पर काबू रखेंगे। जब तत्कालीन प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी चीन आए थे, तब दोनों देशों ने आधारभूत राजनीतिक मापदंड तय किए गए थे, जिन्हें बाद में मनमोहन सिंह के कार्यकाल में दोहराया गया।

सैबल के अनुसार , ‘दोनों देशों ने यह तय किया है कि फ्रंटलाइन पर जो भी सैनिक तैनात होंगे, उनके पास या तो हथियार नहीं होंगे और अगर रैंक के हिसाब से अफ़सरों के पास बंदूक होगी तो उसका नोज़ल मोड़कर ज़मीन की तरफ़ किया गया होगा। वहीँ इस तरह का कोई समझौता पाकिस्तान के साथ नहीं हुआ है।

मेजर जनरल (रिटायर्ड) अशोक मेहता के मुताबिक 1975 में आख़िरी बार भारत और चीन के सैनिकों के बीच गोली चली थी। इसमें कोई नुकसान नहीं हुआ था, मगर इसके बाद से अब तक ऐसी घटना नहीं दोहराई गई। वह बताते हैं कि लगातार समझौते करके भारत और चीन ने लाइन ऑफ ऐक्चुअल कंट्रोल पर समस्याओं को बैकबर्नर पर डाल दिया है।

अशोक मेहता के मुताबिक ‘1993 में नरसिम्हा राव के प्रधानमंत्री रहते हुए मेनटेनेंस ऑफ पीस ऐंड ट्रैंक्विलिटी समझौते पर दस्तख़त हुए, उसके बाद 1996 में कॉन्फिडेंस बिल्डिंग मेज़र्स पर समझौता हुआ। इसके बाद 2003, 2005 में भी समझौते हुए। 2013 में बॉर्डर डिफेंस कोऑपरेशन एग्रीमेंट हुआ जो सबसे ताज़ा समझौता है।’