रायपुर। भारत नेट परियोजना के तहत काम कर रहे टाटा प्रोजेक्ट लिमिटेड पर प्रस्तावित जुर्माने को लेकर पिछले कुछ महीनों से छत्तीसगढ़ में काफी चर्चा रही, इसी का खामियाजा भारत नेट परियोजना के 5 अधिकारियों को अपनी नौकरी गवां कर भुगतना पड़ा, हालांकि विभाग यह बता रहा है कि इन कर्मचारियों की सेवा अवधि का अनुबंध समाप्त हो चुका था जिसके चलते इन्हें हटाया गया।

क्या है भारत नेट परियोजना?

देश भर की पंचायतों को ऑप्टिकल फाइबर केबल के माध्यम से इंटरनेट से जोड़ने के लिए मोदी सरकार ने भारत नेट परियोजना शुरू की। इसके तहत छत्तीसगढ़ में टाटा प्रोजेक्ट लिमिटेड को 26 सौ करोड़ रुपए का काम सौंपा गया है। छत्तीसगढ़ में चिप्स के अधीन यह काम जारी है मगर निर्धारित अवधि समाप्त होने के बाद भी यह प्रोजेक्ट खत्म नहीं हो सका जिसके चलते चिप्स द्वारा टाटा प्रोजेक्ट को चेतावनी दी गई और कहा गया कि अगर आपने समय पर काम पूरा नहीं किया है तो आप से जुर्माना वसूला जाएगा।

जुर्माने की खबर हुई लीक….

इस मुद्दे को लेकर मीडिया में यह चर्चा बनी रही की चिप्स ने टाटा प्रोजेक्ट के ऊपर 200 करोड़ से भी ऊपर का जुर्माना लगाया है । इसकी काफी खबरें भीें आई, और विभाग यह सफाई देता रहा कि संबंधित कंपनी को जुर्माना लगाने की चेतावनी दी गई है मगर जुर्माना नहीं लगाया गया है।

पांच लोगों को किया बाहर

इन्हीं चर्चाओं के बीच चिप्स द्वारा अपने पांच कर्मचारियों को बाहर किए जाने की खबरें आईं। इनमें सीनियर मैनेजर विवेक चंद्राकर, केंद्र की आईटी संस्था एसईएमटी के अमरजीत कुमार, क्लस्टर मैनेजर रुपेश ठाकुर , निशांत जैन और किसलय पांडे शामिल है। मिली जानकारी के मुताबिक इन सभी को जो पत्र सौंपा गया है उस पर लिखा है कि आपकी सेवा अवधि समाप्त हो चुकी है, इसलिए यहां आप की सेवाओं की जरूरत नहीं है। सेवा समाप्त किए जाने से पांचों कर्मचारी सदमे में है।

मीडिया से नजदीकी पड़ी महंगी

सूत्र बताते हैं कि मीडिया में टाटा पर जुर्माना लगाए जाने संबंधी खबरें आने पर अधिकारियों ने यह पता लगाना शुरू कर दिया विभाग की खबरें आखिर कौन लीक कर रहा है । बताया जाता है कि पांचो कर्मचारी के नाम सामने आए और यह पता चला कि इनके मीडिया कर्मियों से अच्छे संबंध है । इसे देखते हुए विभाग ने सारा दोष इन पांचों पर थोप दिया और बड़े ही साफगोई से इन सभी को सेवा अवधि समाप्त होने की जानकारी देते हुए हटाने का आदेश थमा दिया गया।

मुझे नहीं मालूम, पत्र में क्या लिखा है

चिप्स के सीईओ समीर विश्नोई इन दिनों छुट्टी पर हैं, दूरभाष से संपर्क करते हुए इस कार्रवाई के संबंध में पूछने पर वे बताते हैं कि उन्हें यह नहीं मालूम है कि सेवा समाप्ति संबंधी पत्र में क्या लिखा है, वे इस संबंध में कार्यालय में उपस्थिति के दौरान है बता सकते हैं।

कुछ भी बोलने से बच रहे हैं प्रभावित!

टीआरपी न्यूज ने इस कार्रवाई के संबंध में प्रभावितों की प्रतिक्रिया जाननी चाही तो इन्होंने कोई भी टिप्पणी करने की बजाय यही कहा कि उनकी सेवा अवधि समाप्त होने के चलते उन्हें हटाया गया है, इसके पीछे की वजह टाटा प्रोजेक्ट्स लिमिटेड को लेकर उठे विवाद को बताए जाने के सवाल पर इन्होंने चुप्पी साध ली और आखिर तक यही कहते रहे कि कार्य का अनुबंध समाप्त होने के चलते ही उन्हें हटाया गया है।

टीआरपी ने किया था खुलासा

टाटा प्रोजेक्ट्स लिमिटेड को ठेका पूरा करने में हो रही देरी को लेकर जुर्माने की नोटिस जारी किए जाने का खुलासा सबसे पहले टीआरपी न्यूज ने ही किया था। आपको बता दें कि कि जुर्माने की रकम छोटी मोटी नहीं, बल्कि पूरी 206 करोड़ रुपए थी, जिसके बारे में एस एल आई सी की बैठक में फैसला किया गया था, तब सीईओ एलेक्स पॉल मेनन थे, उन्होंने टाटा प्रोजेक्ट को किए जाने वाले भुगतान में से जुर्माने की राशि काटकर एक अलग खाते में जमा कर दी, मगर मेनन के बाद सीईओ का पदभार संभालने वाले आईएएस अधिकारी के सी देवसेनापति ने अपने अधिकार से एक कदम आगे बढ़ते हुए जुर्माने की राशि वसूलने पर रोक लगा दिया और पूर्व में वसूली गई राशि को भी रिलीज कर दिया। टीआरपी न्यूज की ये खबर काफी चर्चा में रही और आगे चल कर यह मामला राष्ट्रीय मीडिया में भी छाया रहा, जिससे परेशान चिप्स के अधिकारियों ने मामले को निपटाने का दूसरा ही तरीका अपना लिया। इन्होंने प्रोजेक्ट की बरसों से जिम्मेदारी संभाल रहे अधिकारियों को ही निबटा दिया।

बचा लिया गया वरिष्ठ अधिकारियों को

टाटा प्रोजेक्ट के 2600 करोड़ रुपए की भारत नेट परियोजना में हुए घोटाले में ऐसे लोगों को निशाना बनाया गया, जिनकी नौकरी के अनुबंध की अवधि समाप्त हो रही थी, मगर टाटा प्रोजेक्ट को संरक्षण देने वाले वरिष्ठ अधिकारी बचा लिए गए। टाटा से जूर्माना वसूलने का फैसला एस एल आई सी की बैठक में लिया गया, और बाद में जूर्माना नहीं वसूलने और वसूली गई राशि को वापस करने का फैसला अकेले सीईओ ने ले लिया। ऐसा उन्होंने किसी दबाव में किया अथवा लेनदेन के चलते, यह तो वही जानें, मगर हाल ही में की गई कार्रवाई ने एक नई चर्चा छेड़ दी है और विपक्ष को एक मौका से दिया है।

घोटाले का साइड इफेक्ट

चिप्स में हुए इस घोटाले का दुष्परिणाम यह रहा कि यहां के अधिकारियों ने मीडिया कर्मियों से बात करना छोड़ दिया, वहीं चिप्स के कार्यालय में कर्मियों के प्रवेश पर अघोषित बैन लगा दिया गया है। इसी तरह चिप्स द्वारा सूचना के अधिकार का भी कोई जवाब नही दिया जा रहा है। इस कार्यालय में आरटीआई के काफी आवेदन पेंडिंग पड़े हुए हैं, मगर इसका जवाब नही दिया जा रहा है। ऐसा लगता है कि अधिकारी इस बात से डरे हुए हैं कि उन्होंने कोई जानकारी दी तो उन्हें भी कहीं हाशिए पर न डाल दिया जाए।

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