महासमुंद। “स्कूल आ पढे बर, जिनगी ला गढे बर”, इस स्लोगन से शिक्षा विभाग शिक्षा की अलख जगाने का दम भरता है, पर जमीनी हकीकत कुछ और ही है। सरकारी स्कूलों में कहीं शिक्षक नहीं हैं, तो कही स्कूल भवन ही नही है, कहीं स्कूल भवन इतना जर्जर हो चुका है कि बच्चों की जान को खतरा बना रहता है। ऐसी ही कुछ स्थिति ग्राम पतेरापाली की है, जहां संभावित खतरे को देखते हुए पालको ने अपने बच्चो की टीसी लेकर उन्हें स्कूल में भेजना बंद कर दिया है। पिछले 15 अगस्त से बच्चे स्कूल नही जा रहे है। पालको ने जर्जर स्कूल की शिकायत कलेक्टर से की है ।


जिले के सीमांत गांव का है ये हाल
महासमुंद मुख्यालय से 150 किमी की दूरी पर जिले के अंतिम छोर पर बसा है ग्राम पंचायत पतेरापाली। यहाँ की आबादी लगभग 3 हजार है । यहाँ के लोग अत्यंत गरीब है। यह क्षेत्र वनाचंल होने के साथ नक्सल प्रभावित भी है। ग्राम पंचायत पतेरापाली के पांच आश्रित ग्राम सनदरहा, सरगुनाभाठा, गौरबहाल, साहजपानी एवं बाभ्नीद्वार है। पांचो आश्रित ग्रामो की दूरी पतेरापाली से दो से पांच किमी है। पतेरापाली से इन गांवो मे जाने के लिए नाला पार करना पडता है।
पतेरापाली ग्राम पंचायत के आश्रित ग्रामो मे 4 जगहो पर शासकीय प्राथमिक शाला है, पर पतेरापाली मे शाला नही है, बल्कि एक अनुदान प्राप्त प्राथमिक शाला है, जिसमे 35 बच्चे पढ़ाई करते है। यह स्कूल वर्तमान मे जर्जर हो चुका है। छत जगह-जगह से टूटी है और इसके ढहने का खतरा है, स्कूल मे साफ -सफाई करने वाला कोई नही है। स्कूल मे शौचालय नही है और बिजली भी नही है ।

नहीं मिलती है ड्रेस और किताबें
यहां बच्चे स्कूल आने के साथ सबसे पहले स्कूल की सफाई करते है। बच्चो को न तो गणवेश मिलता है न ही पाठ्य पुस्तक। बच्चो के पालको की आर्थिक स्थिति इतनी मजबूत नही है कि वे ड्रेस, कापी आदि खरीद सकें। इस जर्जर स्कूल में कभी भी घटना घट सकती है।
एक साथ इतने बच्चों की ले ली टीसी
इस स्कूल को लेकर पालको ने कई बार शिक्षा विभाग के आला अधिकारियो से शिकायत की, मगर कोई ठोस कार्यवाही नही हुई। आखिरकार थक-हार कर स्कूल के 27 बच्चो के पालको ने टीसी ले लिया है। पालको का कहना है कि गांव मे जब तक शासकीय स्कूल नहीं खुलेगा हम अपने बच्चो को स्कूल नही भेजेगे ।

शिक्षा अधिकारी का ये है कहना
इस पूरे मामले मे प्रभारी जिला शिक्षा अधिकारी हिमांशु भारती अलग ही राग अलाप रहे है। उनका कहना है कि विद्यालय अनुदान प्राप्त है तो सारा इंतजाम वहां की विद्यालय शिक्षण समिति को करना होगा। विभाग केवल वहां कार्यरत शिक्षकों को मानदेय देता है। पालक अगर चाहे तो आसपास के गांवों में संचालित स्कूलों में पढ़ने के लिए अपने बच्चों को भेज सकते हैं।
पेड़ के नीचे वैकल्पिक पढाई
गौरतलब है कि ग्राम पंचायत के जिन आश्रित ग्रामो मे शासकीय प्राथमिक शाला है, वह ग्राम पतेरापाली से दो से पांच किमी की दूरी पर है और वहां जाने के लिए बच्चो को नाले से होकर गुजरना पडता है। यही वजह है कि पालक अपने बच्चो को वहां नहीं भेजना चाहते। बहरहाल पालक अपने बच्चो की टीसी लेकर गांव मे ही एक शिक्षक के माध्यम से पेड के नीचे उन्हें पढा रहे है, लेकिन ऐसा कब तक चलेगा। सरकार द्वारा एक और शाला त्यागी बच्चों को दोबारा स्कूल तक लाने के लिए लाखों रूपये खर्च किये जाते हैं, वहीं इस सुविधाविहीन गांव के बच्चे पढ़ना चाहते हैं तो इनके लिए कुछ इंतजाम तो किया ही जा सकता है। देखना है कि जिला मुख्यालय में बैठे अधिकारी अपने सीमांत गांव में स्थित इस गांव की कब तक सुध लेते हैं।
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