छत्तीसगढ़ : थूक और फूंक में फंसी राजनीति

-श्याम वेताल

छत्तीसगढ़ के बस्तर में पिछले दिनों भारतीय जनता पार्टी का चिंतन शिविर हुआ। इस शिविर में राज्य के नेताओं को जीत का फार्मूला देने पहुंचीं प्रदेश प्रभारी पुरन्दरेश्वरी ने कार्यकर्ताओं में जोश भरते हुए कहा कि भाजपा के कार्यकर्ता एक हो जाएं और थूक दें तो राज्य की कांग्रेस सरकार बह जाएगी। इस विवादित बयान के बाद राज्य की राजनीति में हलचल मच गई है।

पता नहीं भाजपा के स्थानीय नेतृत्व के गले में यह बयान कितना उतरा क्योंकि पार्टी के प्रदेश के नेता चुप हैं। लेकिन, कांग्रेस की ओर से स्वयं मुख्यमंत्री ने पलटवार करते हुए कहा है कि मुझे उम्मीद नहीं थी कि भाजपा में जाने के बाद उनकी मानसिक स्थिति इस स्तर पर आ जाएगी।

उन्होंने यह भी कहा कि यदि आसमान पर थूकोगे तो वह खुद पर गिरेगा। इतना ही नहीं, इस विवादित बयान के दो दिन बाद मुख्यमंत्री सहित राज्य मंत्री परिषद् के नौ सदस्यों ने प्रेस कांफ्रेंस कर भाजपा पर बड़ा हमला बोला और कहा कि यह पार्टी छत्तीसगढ़ के लोगों और किसानों से नफरत करती है। किसी पर थूकना अर्थात अपमानित करना होता है। पार्टी को माफ़ी मांगना चाहिए।

उधर, भाजपा के भी नेताओं ने प्रेस के समक्ष उपस्थित होकर अपनी सफाई में कहा कि पुरंदेश्वरी ने थूक शब्द नहीं कहा था, उन्होंने फूंक कहा था और इस मुद्दे पर माफ़ी मांगने का तो कोई सवाल ही नहीं उठता। अब, भाजपा के नेताओं को यह समझाना मुश्किल है कि फूंक मारकर बहाया नहीं जाता, उड़ाया जाता है।

दरअसल, छत्तीसगढ़ में अपने 15 साल के राज को गंवाने के बाद भारतीय जनता पार्टी पहले से ही निराश और बेचैन है, उस पर पार्टी को प्रदेश प्रभारी के रूप में एक ऐसी नेता मिल गई हैं जिन्हें केंद्रीय नेतृत्व ने अभी तक हाशिये पर ही रखा हुआ है। प्रदेश प्रभारी डी. पुरन्दरेश्वरी वर्ष 2014 में कांग्रेस से भाजपा में आईं और फ़िलहाल पार्टी की महासचिव हैं। कांग्रेस में रहते हुए वे केंद्रीय मंत्री भी रही हैं। अभी उन्हें छत्तीसगढ़ में भाजपा की दशा सुधारने के लिए प्रभारी के रूप में नियुक्त किया गया है।

अब सवाल उठता है कि क्या ऐसे बयानों से छत्तीसगढ़ भाजपा की दशा सुधर जाएगी? या कार्यकर्ताओं में जोश भरा जा सकेगा? या यहाँ के नेताओं को जीत का कोई फार्मूला मिल सकेगा? समझ में नहीं आता है कि दूसरे दलों से भाजपा में आने वालों का बिगड़ैल-बोलों के प्रति इतना प्रेम क्यों है? उधर, महाराष्ट्र में नारायण राणे ने मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे को थप्पड़ मारने की बात कहकर अपनी फजीहत करा ली।

आंध्र प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री एन टी रामाराव की बेटी दग्गुबती पुरन्दरेश्वरी के उस विवादित बयान की बात करें तो यह किसी राजनेता के मुँह से निकलने वाली बात नहीं लगती क्योंकि यह सड़क छाप भाषा है और हो सकता है वे ‘थूक’ की जगह और कुछ गन्दा और असंसदीय कहना चाहती हों लेकिन, एक महिला होने के नाते वैसा कुछ न कह सकी हों। उनके इन बोलों से कार्यकर्ताओं का जोश कितना बढ़ा यह तो भविष्य में पता चलेगा लेकिन कांग्रेस के कार्यकर्ता भाजपाइयों को ‘थुक्कड’ जरूर कहने लगे हैं।

राजनीति में भाषा की मर्यादा का हनन दिन प्रतिदिन होता जा रहा है। राजनीति कर रहे लोगों की भाषा में गालियां बस प्रवेश द्वार पर हैं। कभी भी इन्हें गेट पास मिल जाएगा। हाथापाई और मारपीट तो विधानसभाओं में होते देश ने कई बार देखा और सुना है। इस दौरान गालियां भी जरूर दी जाती होंगी लेकिन, सदन में विलोपित करने का विकल्प होता है इसलिए गालियां जनता को सुनने नहीं मिलतीं।

शायद, इसी कारण मध्य प्रदेश विधानसभा ने पिछले दिनों असंसदीय शब्दों की एक पुस्तिका निकाली है जिसमें करीब 300 ऐसे शब्दों और वाक्यों का संग्रह है जिन्हें असंसदीय माना गया है और इन्हें विधानसभा में नहीं बोला जा सकता है। क्या ही अच्छा होता कि ऐसे शब्दों और वाक्यांशों का प्रयोग राजनीति में भी करने की पाबन्दी हो जाय! ऐसा होता तो शायद पुरन्दरेश्वरी के मुँह से ऐसे घटिया शब्द नहीं निकलते।

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