दामिनी बंजारे

रायपुर। 10 सितंबर से गणेश पक्ष शुरू हो रहा है और प्रतिवर्ष की तरह राजधानी में गणेशोत्सव की तैयारियां होने लगी हैं। हालांकि इस बार भी कोरोना गाइडलाइंस का पालन करते हुए मूर्तियों की ऊंचाई को एक निश्चित आकार में बनाया जा रहा है। कालीबाड़ी के मूर्तिकार राकेश पुजारी ने बताया की इस बार उनके यहां जो आर्डर आए हैं उनमें 2 फुट से लेकर 5 फुट तक की प्रतिमा बनाईं जा रहीं हैं।
कालीबाड़ी चौक पर इस बार श्रीगणेश का बाल स्वरूप विराजमान किया जाएगा। मूर्तिकार के अनुसार इस बार भगवान शिव अपने त्रिशूल में गणेश जी के बाल रूप को झूला झुला रहे हैं। गौरतलब है की पिछले 35 वर्षों से कालीबाड़ी में गणेश विराजमान होते आ रहे हैं और पहले भव्य पंडाल बनाया जाता था मगर वर्तमान में कोरोना की वजह से बड़ी मूर्ति पर रोक लगी है।

ये रूप रहेंगे खास
कालीबाड़ी के अलावा महामाया मंदिर के पास रिद्धि-सिद्धि के साथ गणेश की मूर्ति विराजमान की जाएगी। वहीं शंकर-पार्वती के साथ लड्डू पकड़े श्रीजी, शेषनाग पर विराजमान, कृष्ण रूप में लंबोदर के रूप में चूहे पर विराजमान तो कहीं राधा-कृष्ण के रूप में भी श्रीगणेश स्थापित किए जाएंगे।
नागपुर से आ रही मिट्टी और रंग
राकेश ने बताया की मूर्ति बनाने के लिए दोमट मिट्टी का उपयोग करते हैं जिसे नागपुर से आई मिट्टी के साथ मिलाकर मूर्ति का रूप देते हैं वहीं रंगों को भी नागपुर से मंगाया गया है। मूर्ति के आकार के अनुसार रंग और मिट्टी को बदला जाता है।

कोरोना का असर आमदानी पर
कोरोना का असर मूर्तिकारों की जेब पर पड़ा है। राजधानी में करीब 40 से 50 मूर्तिकार हैं जिनकी आमदानी गणेश और नवरात्र पर मूर्ति बनाना ही है। साल भर में दो बार ही सीजन आते हैं। मगर पिछले साल जबसे कोरोना शुरू हुआ तबसे इनकी आय पर रोक लग गई है। माना के मूर्तिकार दिनेश प्रजापति ने बताया की पहले बड़ी मूर्तियों के ऑर्डर आते थे। मगर अब सीमित ऑर्डर आने से और छोटी मूर्तियां बनने से पहले की तरह आय नहीं हो पाती। विदित हो कि राजधानी का माना क्षेत्र मूर्तियों को बनाने में जाना जाता है, मगर कोरोनाकाल में मूर्तिकारों की आजीविका प्रभावित हुई है।

व्यापार रुक गया है
मूर्तिकार राकेश पुजारी का कहना है कि कोरोना की वजह से उनकी आमदानी काफी प्रभावित हुई है। 2 वर्षों से उनकी मूर्ति के आर्डर तो आये हैं मगर पहले की तरह बिक्री नहीं है। बात अगर आज से 3 साल की करें तो 2018 में बड़ी मूर्तियों के ऑर्डर आते थे जिनकी ऊंचाई 20 से 25 फ़ीट रहती थी तो उनका पैसा भी ज्यादा मिलता था। करीब 70 से 80 हजार रुपए तक कि मूर्ति मैंने बनाई है। मगर अब एक निश्चित आकार के निर्देश हैं तो बिक्री उतनी नहीं हो पाती। जहां हम लोगों का पूरा व्यापार 8 से 10 लाख रुपए होता था वो आज मुश्किल से 2 लाख हो पाएगा ये भी कहना मुश्किल है।
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