टीआरपी न्यूज डेस्क। पितृ पक्ष भाद्रपद महीने की पूर्णिमा से शुरू होकर पितृ मोक्षम अमावस्या तक 15 दिन का होता है। हिंदू धर्म में पितृ पक्ष बहुत अहम है। इन 15 दिनों में लोग अपने पूर्वजों को याद करते हैं और उनकी आत्मा की शांति के लिए श्राद्ध करते हैं। देश की प्रमुख जगहों जैसे हरिद्वार, गया आदि जाकर पिंडदान करते हैं। इस साल 20 सितंबर से पितृ पक्ष शुरू हो रहा है, जो कि 6 अक्टूबर को खत्म होगा।

पितर पक्ष की अलग-अलग तिथि पर पितरों के अनुरूप श्राद्ध और तर्पण करने का विधान है। आइए जानते हैं कि पितर पक्ष की किस तिथि पर किन पितरों का श्राद्ध करना चाहिए….
1-पितर पक्ष में पूर्णिमा के बाद प्रतिपदा से लेकर अमावस्या तिथि तक 16 तिथियां आती हैं। मान्यता है कि शुक्ल पक्ष या कृष्ण पक्ष की जिस तिथि को व्यक्ति की मृत्यु हुई हो उसका उसी तिथि पर श्राद्घ करना चाहिए। इसके अलावा पितर पक्ष की कुछ महत्वपूर्ण तिथियों पर अलग से श्राद्घ करने का भी विधान है।
2- पितर पक्ष की शुरूआत भाद्रपद मास की पूर्णिमा तिथि के दिन से होती है। जिन व्यक्तियों की मृत्यु पूर्णिमा तिथि को हुई हो उनका श्राद्ध पूर्णिमा या अमावस्या तिथि के दिन ही करना चाहिए।
3- सुहागिन स्त्रियों या माताओं व जिन स्त्रियों की मृत्यु की तिथि ज्ञात न हो उनका श्राद्ध पितर पक्ष की नवमी तिथि को करना चाहिए। इस तिथि को मातृ नवमी या श्राद्ध नवमी के नाम से जाना जाता है।
4- सन्यासियों का श्राद्ध पितर पक्ष की एकादशी व द्वादशी तिथि पर करने का विधान है।
5- त्रयोदशी तिथि पर बच्चों का श्राद्ध किया जाता है।
6- ज्ञात-अज्ञात या जिन पितरों का श्राद्ध उनकी तिथि पर न कर पायें हो तो उनका श्राद्ध अमावस्या तिथि पर करने का विधान है। इस कारण ही इसे सर्व पितृ अमावस्या या महालय अमावस्या भी कहा जाता है।
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