दामिनी बंजारे
रायपुर। राजधानी को स्मार्ट सिटी बनाने की सोच के साथ वर्ष 2015 में स्मार्ट सिटी प्रोजेक्ट के तहत करोड़ों की लागत से कई प्रोजेक्ट्स शुरू किए गए। आम लोगों को बेहतर सुविधाएं देने के उद्देश्य से 16 प्रोजेक्ट में काम आरंभ किया गया।

स्मार्ट सिटी मिशन एवं नगर निगम द्वारा शहर में नेकी की दीवार, तेलीबांधा झील शुद्धिकरण और कायाकल्प, शहीद स्मारक, टाउन हॉल, नालंदा परिसर, हेरिटेज वॉक, आनंद समाज पुस्तकालय, बापू की कुटिया, इंटर स्टेट बस टर्मिनल, वाटर एटीएम, आईटीएमएस, साइकिल ट्रैक, मल्टी लेवल पार्किंग, तालाबों का विकास, जवाहर बाजार समेत कई योजनाएं हैं। जो कहीं न कहीं शुरू तो हो चुकी हैं। मगर आज भी ये बदहाल हैं। आज टीआरपी की टीम इस भाग में आपको स्मार्ट सिटी की एक योजना हेरिटेज वॉक की जमीनी हकीकत से आपको रूबरू करवा रही है।
स्मार्ट सिटी के तहत राजधानी की धरोहरों को सहेजने और पर्यटन के रूप में विकसित करने के उद्देश्य से 2018 में 20 लाख की लागत से हेरिटेज वॉक प्रोजेक्ट को शुरू किया था। जिसका मकसद धरोहर को जीर्णोद्धार कर पुनः बेहतर रूप देना है ताकि उन स्थलों पर लोगों की आवाजाही बढ़े।
अधिकारयों की माने तो अब इस पर दोबारा कार्य शुरू करने विभाग ने आदेश जारी किया है। मगर हेरिटेज वॉक प्रोजेक्ट भी अनदेखी की भेंट चढ़ गया। न तो उनका संरक्षण हो पाया और न ही लोगों को लुभाने में यह प्रोजेक्ट सफल हो पाया।
ये स्थल हैं शामिल
हेरिटेज वॉक में बूढ़ातालाब, किले वाले बाबा, बूढ़ेश्वर महादेव मंदिर, शीतला माता मंदिर, महामाया मंदिर, नागरीदास मंदिर, जैतूसाव मठ, जगन्नाथ मंदिर, टूरी हटरी


467 साल पुराना मठ खो रहा अपना रूप
राजधानी रायपुर में महामाईपारा में बना श्री दूधाधारी मठ करीब आज से 467 वर्ष पुराना है। यह मठ शहर के ऐतिहासिक स्मारकों में से एक है। 1554 में राजा रघुराव भाेसले ने महंत बलभद्र दासजी के लिए मठ का निर्माण कराया था। यहां कई देवी-देवताओं की मूर्ति और मंदिर हैं। यहां बालाजी मंदिर, वीर हनुमान मंदिर और राम पंचायतन मंदिर प्रमुख हैं। कहा जाता है यहां के महंत बलभद्र दास हनुमान भक्त थे और अनाज का त्याग कर केवल दूध को आहार के रूप में लेते थे तबसे इस मठ का नाम दूधाधारी पड़ा।
मगर इतना पुराना मठ आज अपने रूप को खोता जा रहा है। विकास का खोखला दावा करने वाली सरकार और शहर को स्मार्ट बनाने की बात करने वाला नगर निगम व स्मार्ट सिटी लिमिटेड तीनों ही इस मठ की साज सज्जा पर ध्यान नहीं दे पाई है। मठ की दीवार से चूना पत्थर गिरने लगा है। वहीं दीवारें क्षतिग्रस्त हो गईं है।


जगन्नाथ मंदिर
इस मंदिर को भी हेरिटेज वॉक में शामिल किया गया है। मंदिर की आकृति पुराने समय की है। करीब 500 साल पुराने मंदिर से हर साल जगन्नाथ की यात्रा निकाली जाती है, लेकिन इसे संरक्षित और आकर्षक बनाने कोई कार्य नहीं किया गया।

केवल सब्जी मार्केट बनकर रह गया टूरी हटरी
पुरानी बस्ती में बना टूरी हटरी स्मार्ट सिटी के हेरिटेज वॉक में शामिल था। शहर की सबसे पुरानी जगह होने के वाबजूद भी यह केवल सब्जी बेचने का बाजार ही बनकर रह गया। स्मार्ट सिटी का बोर्ड लगने के बाद इसे न तो संवारा गया और न ही विकास किया गया। जबकि यहाँ के बारे में जानकारी देने के लिए विशेष खाका तैयार किया गया था। इस जगह का क्या इतिहास है किसके द्वारा टूरी हटरी का निर्माण किया गया ये सब इतिहास के बारे में लोगों को बताए जाने की रूपरेखा भी स्मार्ट सिटी प्रोजेक्ट में थी।
महात्मा गांधी, 1933 नवम्बर 24 को रायपुर आये हुए थे। यह उनका दूसरा छत्तीसगढ़ प्रवास था। इसके पहले कंडेला नहर सत्याग्रह के लिये वह 1920 में भी यहां आ चुके थे। 1933 के समय मे गांधी जी पूरे देश में छूआ-छूत निवारण अभियान चला रहे थे। जिसको लेकर प्रदेश में उन्होंने कई सभाएं ली। रूढ़िवादी सोच को खत्म करने के प्रयास में गांधी जी ने, 24 नवम्बर को टुरी हटरी के हनुमान मंदिर को सभी लोगो के लिये खुलवाया था। तब उस मंदिर पर ऊँची जाति वालो का कब्ज़ा हुआ करता था। साथ ही पास के कुएं में एक वर्ग को पानी लेने की इजाजत नही थी, गांधी जी ने उस कुएं से निषेध वर्ग की बच्ची को पानी पिलाकर सालों पुरानी प्रथा को ख़त्म किया था।

तालाब जैसे हालात हुए महामाया मंदिर के
राजधानी रायपुर का सबसे प्राचीन मंदिर के रूप में विख्यात पुरानी बस्ती का महामाया मंदिर हेरिटेज प्लान में शामिल था। इसके इतिहास की जानकारी के साथ विकास व जीर्णोद्धार की जवाबदेही स्मार्ट सिटी ने ली थी मगर आज तीन साल बीतने के बाद मंदिर की स्थिति पहले से बदतर हो गई है। मंदिर का रंग रोगन तो उतर ही रहा है साथ में बारिश का पानी भी मंदिर में प्रवेश कर रहा है। हालात ऐसे बन जाते हैं कि बरसात में मंदिर का दृश्य तालाब समान हो जाता है। इसे अधिकारियों की लापरवाही कहिए या अनदेखी मगर महामाया मंदिर का हेरिटेज वॉक प्लान भी स्मार्ट सिटी तरीके से पूर्ण नहीं कर पाई।

जैतूसाव मठ
यहां पर भी सिर्फ बोर्ड लगाकर छोड़ दिया गया है। हेरिटेज वॉक के नाम पर सालभर में सिर्फ नाममात्र के लोग ही पहुंचे। बाकी किसी भी तरह से हेरिटेज वॉक को सुधारा नहीं जा सका है।



जवाब देने से मुकर रहे अधिकारी
टीआरपी ने जब हेरिटेज वॉक के संदर्भ में प्रोजेक्ट के अधिकारी से बात की तो वे जवाब देने से मुकरते दिखे। अधिकारी के मुताबिक कहा गया कि इतनी लागत लगी ही नहीं है और प्लान अभी रनिंग है। जबकि 2018 में हेरिटेज वॉक का शुभारंभ किया गया था और इस प्रोजेक्ट में इन स्थानों को चुना गया था उनकी संख्या लगभग तीस है। अब अधिकारी अपनी अनदेखी छुपाने एक दूसरे के सिर पर आरोप-प्रत्यारोप लगा रहे हैं।
नोटः टीआरपी की टीम स्मार्ट सिटी सर्जरी के नाम से आपके समक्ष कई योजनाओं की हकीकत इसी तरह अलग-अलग भागों में लेकर आ रही है। इन योजनाओं के संबंध में जानने के लिए हमसे आगे भी जुड़े रहें और इसकी अगली कड़ी भी जरूर पढ़ें।
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